
Panoli, Jhagadia, Ankleshwar GIDC report on fake pipeline
अहमदाबाद।गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य के पनोली, झगडिय़ा व अंकलेश्वर जीआईडीसी की कई इंडस्ट्री की ओर से नर्मदा व अमरावती नदियों में प्रदूषण फैलाए जाने के तहत फर्जी पाइपलाइन के संबंध में रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
न्यायाधीश एम. आर. शाह व न्यायाधीश ए. वाई. कोगजे की खंडपीठ ने फर्जी पाइपलाइन के संबंंध में रिपोर्ट पेश करने का जिम्मा वरिष्ठ वकील शालिन मेहता को दिया है जो इस मामले में अदालत मित्र (एमिकस क्यूरी) बनाए गए हैं। खंडपीठ ने कहा है कि इस मामले में सभी संबंधित स्टेकहोल्डर्स-राज्य सरकार, गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी), गुजरात औद्योगिक विकास निगम (जीआईडीसी), झगडिय़ा इंडस्ट्रीज एसोसिएशन, अंकलेश्वर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन व अन्य एसोसिएशनों की एमिकस क्यूरी के साथ आगामी 28 अप्रेल को बैठक होगी। बैठक में इन सभी स्टेकहोल्डर्स को अपने-अपने सुझाव सुझाव एमिकस क्यूरी को देने होंगे। इसके बाद एमिकस क्यूरी पहली मई को अपनी रिपोर्ट पेश करेगी।
खंडपीठ ने इन इंडस्ट्रीज के फर्जी पाइपलाइन को लेकर किसी तरह की कार्रवाई नहीं कर सकने पर गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) की खिंचाई की।इसमें कहा गया कि यह बात सभी को पता है कि इंडस्ट्री के नियमित-वैध पाइपलाइन हैं और फर्जी पाइपलाइन हैं। इंडस्ट्री फर्जी पाइपलाइन से अपने हानिकारक कचरे-रसायन (एफ्लूएंट) नदी में बहाती है। ऐसा करने से नदी प्रदूषित होती है जिसमें विशेषकर नर्मदा व अमरावती नदियां शामिल हैं। कई बार इंडस्ट्रीज बरसाती नाले से एफ्लूएंट डिस्चार्ज करती है। इसलिए फर्जी लाइपलाइन को लेकर इंडस्ट्री के खिलाफ कोई निर्देश देने से पहले कुछ सबूत चाहते हैं इसके लिए एमिकस क्यूरी की नियुक्ति की गई है। खंडपीठ के अनुसार इससे पहले फर्जी पाइपलाइन का पता लगाने के लिए गत 21 अप्रेल को एक बैठक बुलाई गई थी जिसमें कुछ भी हासिल नहीं हो सका।
न्यायालय ने पूछा कि क्या दंतविहीन बाघ है बोर्ड?
उन्होंने मौखिक टिप्पणी करते हुए जीपीसीबी से कहा कि बोर्ड क्या सिर्फ मॉनिटरिंग व देखरेख अथॉरिटी है। बोर्ड क्या दंतविहीन बाघ है? जब बोर्ड को वैधानिक अधिकार मिले हैं तब बोर्ड कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं करती है। उन्होंने जीपीसीबी से यह भी पूछा कि क्या सभी इंडस्ट्रीज एफ्लूएंट के मामले में नियमों का पालन करते हैं। बोर्ड के पास सभी तरह के निरीक्षण का अधिकार है। पनोली, झगडिय़ा व अंकलेश्वर जीआईडीसी की कई इंडस्ट्री की ओर से प्रदूषण फैलाए जाने के खिलाफ बालूभाई कचाडिया सहित अन्य स्थानीय ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया कि एफ्लूएंट को नदी व गहरे समुद्र में छोड़ा जाता है।
जीपीसीबी ने 250 सीओडी की मात्रा छोडऩे का नियम बनाया है जो कोस्टल डिस्चार्ज के नियमों के अधीन है, लेकिन इंडस्ट्रीज इससे ज्यादा डिस्जार्ज करते हैं। नर्मदा क्लीन टेक लिमिटेड इन तीनों इंडस्ट्रियल एस्टेट के एफ्लूएंट के निष्पादन का काम करती है। इससे पहले खंडपीठ ने जीपीसीबी से इन इंडस्ट्री को डिस्चार्ज नियमों के अमलीकरण को कहा था। साथ ही कहा था कि यदि कोई भी इंड़स्ट्री इन नियमों का पालन नहीं करती है तो जीपीसीबी इस संबंध में क्लोजर नोटिस सहित अन्य कड़े कदम उठा सकती है।
Published on:
04 May 2018 10:22 pm
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