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ग्राहकों की मांग के अनुरूप वनराजसिंह करते हैं खेती

वडोदरा जिले की शिनोर तहसील के बावलिया गांव में वनराज सिंह ने 2008 से की शुरुआत टपक सिंचाई के उपयोग से पानी बचाने के लिए अन्य किसानों को भी कर रहे प्रेरित  

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ग्राहकों की मांग के अनुरूप वनराजसिंह करते हैं खेती

वनराजसिंह चौहान।

राजेश भटनागर/जफर सैयद

वडोदरा. सामान्यतया कोई भी किसान अपनी इच्छा और अनुकूलता से खेती करते हैं और फसलों को बेचने के लिए बाजार तक पहुंचाते हैं लेकिन वडोदरा जिले की शिनोर तहसील के बावलिया गांव के किसान वनराजसिंह चौहान ग्राहकों की मांग के अनुरूप भी नई फसल और सब्जियां उगाकर बेचते हैं। इतना ही नहीं, नर्मदा के जल से सिंचित होने वाले इस क्षेत्र में वे टपक सिंचाई पद्धति का उपयोग करते हुए अन्य किसानों को भी पानी की बचत के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
बावलिया गांव में वर्ष 2008 से ऑर्गेनिक/सजीव खेती करने वाले वनराजसिंह का कहना है कि आम तौर पर की जाने वाली खेती और खेतों में पैदा होने वाली फसलों को बाजार में बेचकर किसान धनराशि कमाते हैं लेकिन वे गांव के लोगों की मांग के अनुरूप अनाज, सब्जियों, फलों, मसालों खेती करते हैं और गांव के लोगों को गांव में ही फसलें बेचकर लोगों को अन्य स्थानों पर या गांव से बाहर खरीदारी करने के लिए जाने से बचा रहे हैं। उनका कहना है कि इन सात्विक खेती वाले कृषि उत्पादों की सीधी मांग होती है और इनकी आपूर्ति सीधे वडोदरा के नियमित ग्राहकों को की जाती है।
शिनोर तहसील में वैसे तो नर्मदा का भरपूर पानी उपलब्ध है और उसी पानी से सिंचाई होती है लेकिन वे पानी बचाने वाली टपक सिंचाई पद्धति से खेती करते हैं। इससे वे ना केवल नर्मदा के पानी का सदुपयोग कर रहे हैं बल्कि गांव के अन्य किसानों को भी पानी बचाने के लिए प्रेरित करते हुए पानी का सीमित उपयोग करने का संदेश दे रहे हैं।
उनके खेत में फूलगोभी, पत्तागोभी, रतालू, गाजर, मूली, लौकी, मेथी, चुकंदर, सहजन (सरगवा-ड्रमस्टिक), धनिया और हरी हल्दी सरीखी सब्जियां और पपीते, अमरूद आदि फलों से हरा-भरा है। इनके अलावा वे सुभाष पालेकर की प्राकृतिक खेती पद्धति का अनुसरण करते हुए गेहूं, चावल, देशी ज्वार और बाजरा आदि अनाज, तुवर, चने, मूंग समेत तीन प्रकार की दालों-कठोल और राई, मेथी व और हल्दी सरीखे मसालों की खेती करते हैं।

स्वयं की पहल पर अपनाई सात्विक खेती

उनका कहना है कि किताबों में पढक़र और अन्य स्रोतों से जानकारी प्राप्त करने के बाद बैक्टीरिया (जीवाणु) लाकर वर्ष 2008 से उन्होंने सजीव-आर्गेनिक खेती के प्रयोग शुरू किए और आंशिक खेती के बाद वर्ष 2012 से वे प्राकृतिक पद्धति का पालन करते हुए प्रकृति के अधीन रहकर संपूर्ण खेती कर रहे हैं। इस नए प्रयोग से वे निराश नहीं हुए हैं। उनके अनुसार खेती के क्षेत्र में ऑर्गेनिक, सजीव, जैविक और प्राकृतिक खेती जैसे शब्द प्रचलित हैं। खेत पर उपलब्ध वनस्पतियों व गाय के गोबर-गौमूत्र से प्राकृतिक खेती की जाती है। ऑर्गेनिक/जैविक खेती में बाहर से लाए गए इनपुट (उपयोगी सामग्री) का उपयोग किया जाता है।

कृषि को पोषित करने के लिए आरंभ की गिर गायों की गौशाला

उन्होंने गिर गायों की गौशाला आरंभ की है जिसमें लगभग 150 गौवंश का पोषण किया जा रहा है। दूध देने वाली 30 गायों का रोजाना प्राप्त होने वाला 150 लीटर दूध भी मांग के अनुरूप ग्राहकों तक पहुंचाया जा रहा है।

गाय पालन और प्राकृति खेती एक ही सिक्के के दो पहलू

वे प्राकृतिक खेती और गाय पालन को एक ही सिक्के के दो पहलू मानते हैं। उनके अनुसार गायों को उनके खेत की प्राकृतिक फसलों से भोजन मिलता है और गायों का गोबर व गौमूत्र उनकी खेती की पुष्टि देते हैं।

मिला आदर्श किसान का सम्मान

वनराजसिंह को प्राकृतिक खेती करने के लिए जिला और राज्य स्तर पर आदर्श किसान पुरस्कार प्राप्त हुआ है। उनका खेत प्राकृतिक खेती के लिए मॉडल (प्रादर्श) फार्म गिना जाता है। वे प्राकृतिक खेती के बारे में जिज्ञासा रखने वाले किसानों को जानकारी और प्रशिक्षण के माध्यम से किसानों को प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

गुजरात के राज्यपाल के हैं प्रशंसक

प्राकृतिक खेती से जुड़े वनराजसिंह और मित्र वर्तमान में प्राकृतिक खेती के प्रयोग करने वाले व इसके समर्थक गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत के प्रशंसक हैं। राज्यपाल ने उन्हें गांधीनगर स्थित राजभवन में बुलाकर प्रयोगों के बारे में जानकारी हासिल करने के साथ ही मार्गदर्शन भी किया। हाल ही आयोजित हुए सुशासन सप्ताह के दौरान वडोदरा जिले के किसानों को उन्होंने प्राकृतिक खेती के बारे में मार्गदर्शन दिया और कृषि महोत्सवों में भी किसानों को वे मार्गदर्शन देते रहे हैं। प्राकृतिक खेती के लिए राज्य सरकार की ओर से प्रोत्साहन दिया जा रहा है।