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Ajmer News: थार का वार…हवा से मरुस्थल ने अजमेर-पुष्कर तक पैर पसारे

राज्य में थार रेगिस्तान पहले बाड़मेर-जैसलमेर और बीकानेर व आसपास के क्षेत्रों तक ही सीमित था, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग और मौसम में बदलाव के कारण बीते 30 सालों में मरुस्थल नागौर, सीकर और अजमेर जिले के अंदरूनी इलाकों तक फैल गया है।

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30 साल में मरुस्थल नागौर, सीकर, अजमेर जिले तक फैला, पत्रिका फोटो

Desert spreads in Ajmer: अजमेर-पुष्कर सहित नागौर-सीकर जिले तक मरुस्थल का फैलाव जारी है। उपजाऊ भूमि में कमी के साथ जैव विविधता पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। बालू रेत और मिट्टी में खारेपन के कारण वृक्ष, झाड़ियां और अन्य प्रकार की वनस्पतियों पर संकट मंडरा रहा है। राज्य में थार रेगिस्तान पहले बाड़मेर-जैसलमेर और बीकानेर व आसपास के क्षेत्रों तक ही सीमित था, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग और मौसम में बदलाव के कारण बीते 30 सालों में मरुस्थल नागौर, सीकर और अजमेर जिले के अंदरूनी इलाकों तक फैल गया है। जानकारों का मानना है कि वायु अपरदन इसकी प्रमुख वजह बन रही है, जिससे धूल भरी हवा मरुस्थल के विस्तार में सहायक हो रही है।

ऐसे बदल रहे हालात

पुष्कर और अजमेर के निकटवर्ती क्षेत्रों में 1995-96 तक रेत के टीबों का फैलाव 5 से 7 किमी तक था। अब पुष्कर सहित अजमेर के माकड़वाली-होकरा, कायड़, जनाना रोड-सीकर रोड क्षेत्रों में रेतीले टीबों का दायरा 20 से 25 किमी तक फैल चुका है। नागौर जिले के सरहद से जुड़े बाड़ी घाटी, खुंडियावास, थांवला और मेड़ता तक 10 से 15 किमी तक रेत के टीबों का दायरा बढ़ गया है।

मिट्टी में बढ़ता खारापन

महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय (एमडीएसयू) सहित कई पर्यावरण विशेषज्ञों ने मरुस्थल और वनों में कार्बन स्थिरीकरण पर शोध किया है। अजमेर, बीकानेर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, जालोर, झुंझुनूं, जोधपुर, नागौर, पाली, बारां, भीलवाड़ा, टोंक सहित कई जिलों के वन क्षेत्र की मिट्टी में खारापन बढ़ रहा है।

फैक्ट फाइल

30 फीसदी उपजाउ ​भूमि कम हो गई
15 फीसदी जामुन की खेती पुष्कर- होकरा में घट गई
40 फीसदी शहतूत, आम, चीक, अंजीर के पेड़ घटे
25 फीसदी स्थानीय वन​स्पतियों में गिरावट आई
30 फीसदी पालक, मूली, गोभी और अन्य सब्जियां की उपज घटी

ये उपाय जरूरी

खेतों में जैविक खाद का उपयोग बढ़ाना।
बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति को प्रोत्साहित करना।
अवैध खनन और वनों की अन्धाधुंध कटाई पर रोक लगाना।
सघन ओरण क्षेत्रों का विकास करना।
मरुभूमि की प्रकृति के अनुसार पौधरोपण करना।
बंजर भूमि में वनस्पतियों का विकास करना।