स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना कुछ इसी तरह की उपेक्षा का दंश सह रही है पीर साहब की बावड़ी। अजमेर-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर गगवाना में स्थित १६वीं सदी में निर्मित रोशन अली शाह दरवेश की बावड़ी मुगलकालीन स्थापत्य कला का एक बेहतरीन नमूना है। यहां ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की जियारत करने वाले जायरीन जियारत से पूर्व स्नान करते थे।
इसी बावड़ी के पानी से दरवेश की दरगाह के आस-पास के खेतों में फसलें लहलहाती थी। लेकिन वक्त के साथ बारिश कम होने और भू-जल स्तर गिरने से यह बावड़ी अब सूखी पड़ी है। ग्रामीणों ने बावड़ी में लोगों के गिरकर चोटिल होने से रोकने के लिए चारों ओर पाइप लगा रखे हैं।
इसी बावड़ी के पानी से दरवेश की दरगाह के आस-पास के खेतों में फसलें लहलहाती थी। लेकिन वक्त के साथ बारिश कम होने और भू-जल स्तर गिरने से यह बावड़ी अब सूखी पड़ी है। ग्रामीणों ने बावड़ी में लोगों के गिरकर चोटिल होने से रोकने के लिए चारों ओर पाइप लगा रखे हैं।
श्रमदान की दरकार कुएं बावडियां आज भले ही पूरी तरह सूख चुकी हैं लेकिन श्रमदान कर इन्हें गहरा करवाया जा सकता है। अच्छी वर्षा होने पर यही कुएं-बावडिय़ां लोगों की प्यास बुझाने के काम आ सकते हैं। इससे इनके न केवल स्वर्णिम दिन लौट सकते हैं बल्कि पिछले साल की तरह कम वर्षा होने पर पर्याप्त पानी नहीं आने पर बीसलपुर बांध पर काफी हद तक निर्भरता भी समाप्त हो सकती है।