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Ajmer – आज उपेक्षित पड़ी पीर साहब की बावड़ी

locationअजमेरPublished: May 20, 2019 08:25:08 pm

Submitted by:

baljeet singh

पुरा महत्व की ऐतिहासिक धरोहर : नियमित हो सार-संभाल तो बुझा सकती है प्यास

Ajmer peer sahab ki bawd- Historical water resource

Ajmer – आज उपेक्षित पड़ी पीर साहब की बावड़ी

बलजीत सिंह. अजमेर.

अजमेर किसी समय परंपरागत जल स्रोतों की दृष्टि से बहुत समृद्ध था। जगह-जगह कुएं, बावडिय़ां, तालाब अकाल सूखा और अल्पवृष्टि के समय जल प्राप्ति का प्रमुख आधार हुआ करता था। पुराने समय में लोग इन जलाशयों को बहुत सजा-संवार कर रखते थे। प्राचीन बावडिय़ां तो अपनी स्थापत्य कला की दृष्टि से पुरा महत्व की ऐतिहासिक धरोहरें हैं। लेकिन जब से अजमेर के लोगों को बीसलपुर बांध से पानी सहज-सुलभ होने लगा लोगों ने न केवल इन स्रोतों को बिसरा दिया बल्कि सुध लेने की बजाय इनकी बेकद्री भी शुरू कर दी। कई कुएं बावडिय़ां और तालाबों को कूड़ेदान बना दिया।
स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना

कुछ इसी तरह की उपेक्षा का दंश सह रही है पीर साहब की बावड़ी। अजमेर-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर गगवाना में स्थित १६वीं सदी में निर्मित रोशन अली शाह दरवेश की बावड़ी मुगलकालीन स्थापत्य कला का एक बेहतरीन नमूना है। यहां ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की जियारत करने वाले जायरीन जियारत से पूर्व स्नान करते थे।
इसी बावड़ी के पानी से दरवेश की दरगाह के आस-पास के खेतों में फसलें लहलहाती थी। लेकिन वक्त के साथ बारिश कम होने और भू-जल स्तर गिरने से यह बावड़ी अब सूखी पड़ी है। ग्रामीणों ने बावड़ी में लोगों के गिरकर चोटिल होने से रोकने के लिए चारों ओर पाइप लगा रखे हैं।
श्रमदान की दरकार

कुएं बावडियां आज भले ही पूरी तरह सूख चुकी हैं लेकिन श्रमदान कर इन्हें गहरा करवाया जा सकता है। अच्छी वर्षा होने पर यही कुएं-बावडिय़ां लोगों की प्यास बुझाने के काम आ सकते हैं। इससे इनके न केवल स्वर्णिम दिन लौट सकते हैं बल्कि पिछले साल की तरह कम वर्षा होने पर पर्याप्त पानी नहीं आने पर बीसलपुर बांध पर काफी हद तक निर्भरता भी समाप्त हो सकती है।
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