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बिजली उत्पादन में कभी आत्मनिर्भर था अजमेर, पुष्कर भी होता था रोशन

हाथीभाटा पावर हाउस में जनरेटर से बनाई जाती थी 3.5 मेगावाट बिजलीकॉपर की डाली गईं थी भूमिगत केबलेंपावर हाउस के कुंए के पानी का भी होता था उपयोग

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Ajmer Discom :

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अजमेर. कोयला की कमी के कारण बिजली का उत्पादन प्रभावित है। गावों से लेकर शहरों तक बिजली कटाती हो रही है। लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। भीषण गर्मी में बिजली गुल होने से दिन में बेचैनी व रात्रि को रतजगा करना पड़ रहा है। आज करीब यही स्थिति सभी जगह नजर आ रही है लेकिन 1930 से 1975 तक अजमेर बिजली के उत्पादन में आत्म निर्भर था। तब हाथीभाटा पावर हाउस में मुंबई की एक अमलगमेट निजी कम्पनी 2 जनरेटिंग सेट के जरिए करीब साढ़े तीन मेगावाट बिजली का उत्पादन करती थी। इससे अजमेर शहर तो रोशन होता ही था। पुष्कर की बिजली आवश्यकता की भी पूर्ति भी होती थी। जनरेटरों को ठंडा करने के लिए हाथाभाटा पावर स्थिति कुंए का पानी उपयोग में लिया जाता था। इस कम्पनी का आजादी के बाद अधिग्रहण कर लिया गया। वर्ष 2001 में सरकारी बिजली कम्पनी के टुकड़े कर विद्युत निगम बना दिए गए। हालांकि अब पावर हाउस में बैडमिंटन हाल बन गया है। कुछ हिस्सा टाटा पावर के पास है। पावर हाउस के कमरों में डिस्कॉम के कई कार्यालय चलते हैं। हॉल में अभी भी ब्रिटेन निर्मित 5 टन की क्रेन अभी भी चालू हालत में है।
दो शिफ्टों में होता था बिजली उत्पादन
निजी कम्पनी से रिटायर हो चुके कर्मचारी बताते हैं कि जनरेटिंग सेट के जरिए शहर में दो शिफ्टों में बिजली का उत्पादन होता था। पहले शिफ्ट रात्रि 9 से सुबह 9 तथा दूसरी शिफ्ट सुबह 9 से रात्रि 9 बजे तक चलती थी। एक शिफ्ट में एक जनरेटर चलाया जाता था। इसके बाद सप्लाई चेंज ओवर कर दूसरा जनरेट चलाया जाता था। चेंज ओवर के दौरान शहर की बिजली दिन में दो मिनट व रात्रि में दो मिनट के लिए बंद होती थी। इसके लिए समय निर्धारित था लोग बिजली चालू बंद होने के दौरान लोग अपनी घडिय़ा मिला लेते थे।
अंडरग्राउंड थी बिजली लाइनें
जब अजमेर में बिजली का उत्पादन होता था उस दौरान 6.9 केवी का सिस्टम विकसित था। शहर में 6.9 केवी तथा एलटी लाइनें भूमिगत डाली गई थीं। केबल लाइन भी कॉपर की थी। सरकारी सिस्टम होने के बाद लाइनों में फाल्ट आने लगा। इसके बाद 11 केवी तथा एलटी लाइनें को शहर में ओवरहेड डाला जाने लगा, लेकिन अब फिर से प्रमुख शहरों व चौराहों पर विद्युत लाइनों को भूमिगत किया जा रहा है।

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