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राजा-महाराजा यूं शानो शौकत से मनाते थे नवरात्र व दशहरा जैसे त्यौंहार , शाही अंदाज में भेजे जाते थे निमंत्रण पत्र

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Before some years kings also celebrate festive in unique style

राजा-महाराजा यूं शानो शौकत से मनाते थे नवरात्र व दशहरा जैसे त्यौंहार , शाही अंदाज में भेजे जाते थे निमंत्रण पत्र

दिलीप शर्मा . अजमेर.


नवरात्र व दशहरा पर्व मनाने का इतिहास कम पुराना नहीं है। इन पर्वों को तत्कालीन रियासतों के शासक भी शानो शौकत से मनाते थे। खास बात यह होती थी कि इन पर्वों में प्रजा व आम लोगों को भी सक्रियता से जोड़ा जाता था। बाकायदा शाही फरमान लेकर दूसरी रियासतों को भेजे जाते थे। तब डाक व्यवस्था नहीं थी ऐसे में हरकारे घोड़ों पर सवार होकर शाही फरमान के अंदाज में निमंत्रण पत्र या बुलावा पत्र लेकर गंतव्य तक जाते थे। निमंत्रण पत्र भी स्वर्णजडि़त होता था। साथ ही इसकी इबारत में आदेश का भी भाव होता था। भारतीय जीवन बीमा निगम से सेवानिवृत्त अधिकारी बी. एल. सामरा के पास भारतीय इतिहास और सांस्कृतिक विरासतों के रूप में कुछ ऐसे ही निमंत्रण पत्रों का संग्रह है।

दशहरे पर लिखा स्वर्ण जडि़त पत्र

विजयदशमी के मौके पर तत्कालीन काशी रियासत के शासक कैप्टन आदित्य नारायण बहादुर ने राजस्थान के कोटा महाराजा ईश्वरी सिंह को लिखा गया स्वर्ण अलंकृत पत्र जिसमें राज्य व प्रजा की समृद्धि का शुभ कामना संदेश भेजा गया है। इसमें कैप्टन आदित्य नारायण बहादुर के हस्ताक्षर अंग्रेजी में है तथा राजकीय मोहर अंकित है। यह पत्र दशहरा पर्व पर लिखा गया है। अश्विन शुल्क दशमी पर लिखे पत्र को दशहरे के उपलक्ष्य में लिखा यह दिन इसलिए भी खास था कि इसी दिन कैप्टन आदित्य नारायण बहादुर ने महाराजा की गद्दी संभाली थी।

मेवाड़ महाराणा नवरात्र पर बुलाते थे धर्मगुरुओं को

मेवाड़ महाराणा नवरात्र के विशेष दरबार लगाते थे। इसमें आमजन के साथ धर्मगुरुओं को भी बुलावा भेजा जाता था। महाराणा घुड़सवारों के जरिए हरकारा भेजते थे। धर्म गुरुओं को शाही अंदाज में बुलाया जाता था। तब कागज व स्याही नहीं हुआ करती थी। ऐसे में देशी बबूल की लकड़ी की लुगदी से निर्मित कागज व उस पर काजल के जरिए लकड़ी की कलम से लिखी इबारत होती थी। इबारत की चमक आज भी बरकरार है।

इबारत में यह लिखा

स्वस्ति श्रीमत उदयपुर सूं लिख्या ने महाराजाधिराज महाराणा फतेहसिंह जी आदेशार्थ आयस (राजपूतों के धर्मगुरु) शिवरावल अवर आसोजी नवरात्र रा नुगता उपर परवाना बांचता श्री हुजूर आवजो। (संवत 1957)


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