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Conference: जिससे मजबूत हो लोकतंत्र वही होती है पत्रकारिता

त्रकारों को इसकी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। सही-गलत को तथ्यात्मक ढंग से उजागर करना चाहिए।

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अजमेर.

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के जरिए संविधान को ठेंगा दिखाया जा रहा है। पत्रकारिता का धर्म है, कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षार्थ आवाज बुलंद करेग। पत्रकारिता (journalism) तथ्यों पर आधारित होती है जबकि साहित्य में कल्पना समाहित होती है। यह बात हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति (vice chancellor) ओम थानवी ने गुरुवार को श्रमजीवी कॉलेज में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में कही।

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साहित्य और पत्रकारिता के सम्बन्ध अतीत एवं वर्तमान विषय पर आयोजित संगोष्ठी में थानवी ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता की राहें भले अलग हों पर दोनों का अहम स्थान है। साहित्यकार (literature) और पत्रकार ही लोकतंत्र के प्रहरी हैं। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर देशभर में आंदोलन और विरोध की स्थिति है। इस कानून के जरिए संविधान को ठेंगा दिखाया जा रहा है। पत्रकारों को इसकी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। सही-गलत को तथ्यात्मक ढंग से उजागर करना चाहिए।

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वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ ने कहा कि भारत में प्रिंट (print) और इलेक्ट्रिॉनिक मीडिया (media) का जबरदस्त विस्तार हुआ है, लेकिन इसमें सामाजिक सोच नदारद है। किसान, गरीब, आदिवासी की आवाज और संवेदना सुनने की नहीं मिलती। कॉरपॉरेट संस्कृति हावी हो रही है। अब सवाल नहीं सेल्फी (selphie) पर जोर रहता है। महात्मा गांधी ने पत्रकारिता को सामाजिक विकास और क्रांति और साहित्य को चेतना का माध्यम बताया था। लेकिन कहीं ना कहीं दोनों प्रभावित हो रहे हैं।

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वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. हेतु भारद्वाज ने कहा कि साहित्य का महत्व सर्वकालिक होता है। पत्रकारिता तात्कालिक प्रभाव छोड़ती है। साहित्य हृदय के भीत घुसकर विस्फोट करता है। पत्रकारिता जागृति फैलाती है। इस दौरान डॉ. अनन्त भटनागर की पुस्तक सत्य सेवा संकल्प का विमोचन किया गया। डॉ. डी. पी. अग्रवला, डॉ. बीना शर्मा, डॉ. एच. पी. गौड़, डॉ. मेघना, डॉ. एस. डी. मिश्रा, शेफाली मार्टिन्स, हरीश कर्मचंदानी, डॉ. पल्लव, डॉ. सुरेश अग्रवाल, आशुतोष पारीक और अन्य ने भी विचार व्यक्त किए। संचालन डॉ. पूनम पांडे, डॉ. विमलेश शर्मा और कालिंदनंदिनी शर्मा ने किया।

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