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Corona Impact: कोरोना का असर, बढ़ सकते हैं स्थानीय स्तर के रोजगार

प्रवासी श्रमिक और कामगार लौट रहे हैं अपने गांव-शहर।

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local employment in india

local employment in india

रक्तिम तिवारी/अजमेर.

कोरोना वायरस संक्रमण और लॉकडाउन से देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था प्रभावित है। विश्व बैंक इसे 2008 से भी बड़ी आर्थिक मंदी मान चुका है। भारत में प्रवासी श्रमिक-कामगार अपने शहरों-गांवों में लौट रहे हैं। लॉकडाउन खुलने और सामान्य स्थिति होने के बाद आर्थिक गतिविधियां शुरू होने में वक्त लगेगा। ऐसी स्थिति में शहरों-गांवों में स्थानीय स्तर के लघु, मझौले और स्थानीय स्तर के रोजगार बढ़ सकते हैं।

कोरोना से भारत, अमरीका, रूस, इटली, ब्रिटेन सहित कई देश प्रभावित हैं। संक्रमितों का आंकड़ा 10 लाख तक पहुंच गया है। दुनिया की आर्थिक गतिविधियों पर जबरदस्त असर पड़ा है। मौजूदा स्थिति में भारत में घरेलू विकास की दर 2.5 से 3.5 प्रतिशत के बीच आंकी गई है।

पलायन कर रहे हैं श्रमिक-कामगार
मुंबई, इंदौर, रांची, जमेशदपुर, पश्चिम बंगाल, पुणे, बेंगलूरू, विशाखापट्टनम, हैदराबाद, जयपुर, सूरत, फिरोजाबाद, आगरा दिल्ली, कानपुर जैसे बड़े शहर औद्योगिक गतिविधियों के केंद्र हैं। यहां भारी उद्योगों, इस्पात, कांच, पीतल, ऑटोमोबाइल, जूट, वस्त्र इकाइयों में श्रमिक, कर्मचारी कार्यरत हैं। लॉकडाउन अवधि में इनका अपने शहरों-गांवों में लौटना जारी है।

बढ़ेंगे स्थानीय स्तर के रोजगार
जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के टूरिज्म एंड हॉस्पिटेलिटी मैनेजमेंट विभागाध्यक्ष प्रो. एन. आर. चौधरी ने पत्रिका को बताया कि लॉकडाउन की एक महीने की अवधि में औद्योगिक और अन्य इकाइयों में कार्यरत 70 प्रतिशत श्रमिक-कार्मिक पलायन कर चुके हैं। मॉडिफाइड लॉकडाउन में सरकार ने औद्योगिक इकाइयां चलाने को कहा है, पर श्रमिकों की कमी और कड़े दिशा-निर्देशों से व्यापार प्रभावित हैं। लॉकडाउन खुलने अथवा सामान्य स्थिति होने के बाद भी छह महीने से एक साल तक स्थानीय स्तर के रोजगार बढ़ेंगे। पूरे विश्व में ही यह प्रभाव दिखेगा।

ये हैं देश में रोजगार के प्रमुख क्षेत्र
भवन निर्माण-45.1 से 64.2 लाख
फॉरमेशन टेक्नोलॉजी: 25 लाख
टेलीकॉम: 35.1 से 37.2 लाख
स्वास्थ्य सेवाएं: 14.1 से 15.3 लाख
रिटेल: 32 से 35 लाख औद्योगिक रोजगार-40 से 50 लाख
पर्यटन-35 से 45.7 लाख
(स्त्रोत: श्रम एवं रोजगार मंत्रालय )

यह हैं खास स्थानीय रोजगार
-भूमि होने पर कृषि आधारित रोजगार
-स्थानीय भवन निर्माण क्षेत्र में बढ़ सकते हैं श्रमिक
-पर्यटक स्थलों पर टैक्सी, ठेले-रेहड़ी संचालन
-राज्य/क्षेत्रीय उद्यमों में कामकाज को तरजीह
-सहकारिता आधारित घरेलू सामग्री निर्माण में भागीदारी
-लघु, मझौले और कुटीर उद्योग में हिस्सेदारी
-फूड, कंप्यूटर, उद्यानिकी, कृषि आधारित स्टार्ट अप


भारत सहित विश्व में रोजगार का पैटर्न निश्चित तौर पर बदलेगा। 35 से 40 प्रतिशत श्रमिक-कामगारों की अपने कम्पनियों-उद्यमों में वापसी मुश्किल है। गांवों-शहरों में स्थानीय रोजगारों में रुझान बढऩा तय है। यह 25 प्रतिशत तक बढ़ेगा।
प्रो. शिव प्रसाद, मैनेजमेंट विभागाध्यक्ष मदस विश्वविद्यालय