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कोराना और मौत से ‘खेलता’ है दिनेश

अकेल करता है कोराना पॉजिटिव का अंतिम संस्कार ये भी है असली कोराना वारियर

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संक्रमण में मरीजों को झोंकने से नहीं चूका निजी अस्पताल प्रबंधन

संक्रमण में मरीजों को झोंकने से नहीं चूका निजी अस्पताल प्रबंधन

भूपेन्द्र सिंह

अजमेर. कोराना corona महामारी का नाम सुनते ही आदमी घबराने लगता है। कोरोना पॉजिटिव corona positive आते ही गली मोहल्लों को सील कर दिया जाता है ताकि कोई अन्य व्यक्ति प्रभावित व्यक्ति अथवा उसके परिवार के सम्पर्क में नहीं आ सके। अस्पताल में इनका अलग ही इलाज किया जाता है। इलाज के दोरान कोरोना पीडि़त की मौत के बाद संक्रमण नहीं फैले इसके लिए शव को परिजनों को भी नहीं दिया जाता। चिकित्सा व नगर निगम nagar nigam कर्मचारी ही मृतक को शमशान लेकर जाते हैं। इससे पूर्व शव वाहन व रास्ते को भी सेनेटाइज किया जाता है ताकि संक्रमण नहीं फैले। निगम कर्मचारी शव को ऋषि घाटी श्मशान ले जाते हैं। यहां शव का अंतिम संस्कार किया जाता है गैस आधारित शवदाह गृह के जरिए।
इस शवदाह गृह का संचालन कर रहे दिनेश कुमार dinesh kumar । दिनेश अपनी जान की परिवाह किए बिना प्रत्येक कोरोना पॉजिटव शव का अंतिम संस्कार करते हैं वह भी अकेले। दिनेश बताते है कि उन्हें एक दो घंटे पहले ही सूचना दे दी जाती है। इसके वे पीपीई किट पहन लेते हैं। शव का अंतिम संस्कार करने के बाद पीपीई किट को जला देते हैं। अब तक 29 शवों का दाह संस्कार गैस शवदाह इसके जरिए कर चुके है। कोरोना वायरस आने से पूर्व 15-16+ शवों का अंतिम संस्कार किया गया जबकि 13 कोरोना से मृत व्यक्तियों का अंतिम संस्कार किया गया। कोरोना पॉजिटिव के अंतिम संस्कार के दौरान दिनेश सभी को बाहर जाने को कह देते हैं। अंतिम संस्कार वो अकेले ही करते हैं। इस महामारी से निपटने के लिए दिनेश भी असली कोराना वारियर से कम नहीं है।

एक से डेढ़ घंटे का समय
दिनेश के अनुसार अंतिम संस्कार में एक से डेढ़ घंटे का समय लगता है। मृतक को अस्पताल में डीप फ्रीजर में रखा जाता है। शव ठंडा होने के कारण डेढ़ घंटे भी लग जाते हैं। हिंदू रीति रिवाज के कर्मकांड कर शव को गैश शवदाह गृह में रखा जाता है। अंतिम संस्कार होने के बाद फूल को परिजनों को सौंप दिया जाता है। जिला प्रशासन शवदाह गृह के लिए गैस सिलेंडर उपलब्ध करवाता है।

नहीं फैलता प्रदूषण
गैस आधारित शव दाह से प्रदूषण नहीं फैलता। धुंए को पहले सेक्शन कर पानी के चैम्बर से गुजारा जाता यहां कार्बन के कण पानी में गिर जाते हैं इसके बाद शेष हवा को 30-40 फिट चिमनी के जरिए आसमान में छोड़ा जाता जो प्रदूषण रहित होती है। आम तौर पर शवों का लकड़ी के जरिए अंतिम संस्कार करने पर चार-पांच लोगों की आवश्कयता पड़ती है समय भी करीब तीन घंटे तक लग जाता है। जबकि गैस आधारित शवदाह गृह में एक ही व्यक्ति की आवश्यकता होती है।

वर्ष 2018 से हो रहा संचालन
पर्यावरण संरक्षण को देखते हुए पर्यावरण संतुलन के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोकने,वातावरण को प्रदूषण रहित रखने के लिए अजमेर विकास प्राधिकरण ने वर्ष 2016 में गैस शवदाह गृह निर्माण का निर्णय लिया गया था। इसके निर्माण पर94.68 लाख रुपए खर्च किए गए। प्राधीकरण ने वर्ष 1 सितम्बर2018 से ऋषिघाटी श्मशान में गैस आधारित शवदाह गृह का संचालन शुरु कर दिया गया। कई महीनों तक इसकी सेवा नि:शुल्क उपलब्ध करवाई गई। बाद में प्रतिशव दाह संस्कार के लिए 2000 रुपए का शुल्क निर्धारित किया गया।

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