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लॉकडाउन इफेक्ट : मिनरल ग्राइंडिंग कारोबार की टूटी कमर, मजदूरों का अकाल, डिमांड व खपत नगण्य

अजमेर जिले के ब्यावर उपखंड में तीस प्रतिशत मिनरल यूनिट का नहीं हुआ संचालन, लॉकडाउन के चलते मजदूर कर गए पलायन, बाजार में उत्पाद की मांग नहीं रही,तनाव में कारोबारी,दूसरे व्यवसाय का तलाश रहे विकल्प

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लॉकडाउन इफेक्ट : मिनरल ग्राइंडिंग कारोबार की टूटी कमर, मजदूरों का अकाल, डिमांड व खपत नगण्य

लॉकडाउन इफेक्ट : मिनरल ग्राइंडिंग कारोबार की टूटी कमर, मजदूरों का अकाल, डिमांड व खपत नगण्य

ajmer अजमेर. कोरोना के चलते लॉकडाउन का मिनरल ग्राइंडिंग के कारोबार पर भी पड़ा है। जिले के ब्यावर उपखंड में करीब एक हजार यूनिट संचालित हैं। इनमें करीब बीस हजार श्रमिक काम करते हैं। प्रतिदिन करीब तीस से 45 हजार टन उत्पादन होता है।

फेल्सपार, क्वाट्र्ज सहित अन्य मिनरल की ग्राइंडिंग कर गुजरात के मोरवी सहित अन्य स्थानों पर भिजवाया जाता है। लॉकडाउन के बाद इस करोबार पर भी असर पड़ा है। तीस प्रतिशत मिनरल यूनिट का संचालन शुरू नहीं हो सका है। लॉकडाउन के बाद श्रमिक पालयन कर गए जो बिहार,पश्चिम-बंगाल,यूपी व एमपी सहित अन्य प्रदेशों के हैं। यह श्रमिक अभी अपने घर से लौटकर नहीं आए हैं। ऐसी सूरत में कई फैक्ट्रियां बंद पड़ी है। अब व्यापारी मिनरल के अलावा अन्य उद्योग में भी संभावनाएं तलाश रहे हैं, ताकि क्षेत्र में मिनरल के साथ ही इससे जुड़ा नया कारोबार शुरू हो सके।

अन्य कारोबार का तलाश रहे विकल्प

सेरेमिक हब में जमीन सहित अन्य बड़े संसाधनों को जुटाना आसान नहीं है। ऐसे में व्यापारी टेबल वेयर इंडस्ट्रीज के विकल्प पर विचार कर रहे हैं। इसके अलावा फेबरिक कपड़ा उद्योग शुरू करने की दिशा में भी जानकारी जुटा रहे हैं। ब्यावर सहित आस-पास के क्षेत्र में फेल्सपार, क्वार्टज सहित अन्य मिनरल की ग्राइंडिंग यूनिट का काम है। मिनरल पाउडर मोरवी, हिम्मतनगर, महाराष्ट्र व भिवाड़ी के अलावा उतरप्रदेश के खुरजा, फिरोजाबाद तक जाता है।

गुजरात के मौरवी में सेरेमिक उद्योग में इसका उपयोग होता है तो उत्तरप्रदेश के खुरजा में कप प्लेट बनाने एवं फिरोजाबाद में चूड़ी बनाने के उद्योग में इसकी खपत है। क्षेत्र में प्रतिदिन तीस से 45 हजार हजार टन प्रतिदिन उत्पादन होता है। इसका प्रतिदिन का करीब 45 लाख का टर्नओवर है।

श्रमिक वापस नहीं आए तो बढ़ेगा संकट

रीको में करीब एक हजार मिनरल यूनिट संचालित है। इनमें करीब सात हजार प्रवासी श्रमिक काम करते हैं। इनमें से अधिकतर श्रमिक पलायन कर चुके हैं। डेढ़ से दो हजार श्रमिक ही यहां पर रुके हुए हैं। इनमें भी अब भी काम गति नहीं पकड़ता है तो और भी पलायन कर सकते हंै। हाल में जहां श्रमिक नहीं मिल रहे है तो बाजार में मांग भी नहीं है। इस कारण व्यापारी स्थितियों का आकलन करने में जुटा है। जानकारों की मानें तो यदि श्रमिक वापस नहीं लौटे तो मिनरल यूनिटों पर ताले लग जाएंगे।

सर्वाधिक प्रवासी मजदूर कार्यरत

मिनरल यूनिट में फैक्ट्री में काम करने वाले श्रमिकों में प्रवासी श्रमिकों की संख्या अधिक है। लॉक डाउन के चलते जो स्थितियां बनी इसके बाद श्रमिकों ने पलायन कर दिया। इस दौरान श्रमिकों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा। अब उद्योग वापस शुरू हो चुके हंै। अब बाहर के श्रमिक नहीं आए हैं। इन्हें लौटने में समय लगेगा। यहीं स्थिति मोरवी के सेरेमिक उद्योग की भी है। वहां पर भी सारी यूनिटें नहीं चल रही है। ऐसे में पाउडर की मांग कम है। इस कारण अब तक उद्योग गति नहीं पकड़ सके हैं।

एक हजार यूनिटें, बीस हजार श्रमिक

ब्यावर क्षेत्र में करीब एक हजार मिनरल यूनिट संचालित हैं। इनमें करीब बीस हजार श्रमिक काम करते हैं। इनमें करीब सात हजार श्रमिक प्रवासी हैं। करीब 13 हजार श्रमिक स्थानीय है। अधिकतर स्थानीय मजदूर लदान का काम करते हैं। कोरोना संक्रमण के चलते आस-पास के क्षेत्र से श्रमिकों की संख्या कम हुई है। प्रवासी श्रमिक भी अपने-अपने क्षेत्रों में लौट गए हैं। यह औद्योगिक क्षेत्र में ही रहते थे एवं वहंी पर काम करते थे। अब इन श्रमिकों के आने तक काम में परेशानी आएगी।

नए उद्योग पर नजर,उम्मीदें कम नहीं

लॉकडाउन के बाद व्यापारियों ने नए उद्योग में संभावनाएं तलाशना भी शुरू किया है। इसमें फेबरिक कपड़े का उद्योग शुरू करने के अलावा खाद्य सामग्री उद्योग में संभावना तलाश रहे हैं। फेबरिक उद्योग अमरीका, स्विट्जरलैंड व जर्मनी सहित अन्य स्थानों पर चल रहा है। इस उद्योग की संभावनाएं है। यहां पर इसके लिए कच्चा माल भी उपलब्ध हो सकता है।

कप-प्लेट व चूड़ी उद्योग से बढ़ेगा रोजगार

ब्यावर क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में कच्ची सामग्री उपलब्ध है। सेरेमिक हब को खड़ा करने में समय लगेगा। ऐसे में टेबल वेयर इंडस्ट्रीज विकसित हो सकती है। इसमें कप प्लेट बनाने एवं चूडिय़ां बनाने का उद्योग शुरू किया जा सकता है। इस उद्योग की स्थापना में लागत कम आएगी। यह इंडस्ट्रीज ग्रामीण क्षेत्र में भी लगाई जा सकती है। इससे प्रदूषण कम फैलता है। इसमें अधिक लोगों को रोजगार मिलता है। इसका बाजार भी अच्छा है। कच्चा माल सहजता से मिलने से क्षेत्र के लिए यह नए उद्योग विकसित हो सकते है। हाल में यह उद्योग उत्तरप्रदेश के खुरजा व फिरोजाबाद में चल रहे है।

विद्युत के स्थायी शुल्क हों माफ

कारोबारियों का कहना है कि वैश्विक महामारी में विद्युत के स्थायी शुल्क में छूट दी जानी चाहिए। अब तक सरकार की ओर से छूट नहीं दी गई है। उद्योग पर लिए लोन की किस्त जमा करवाने में छह माह की छूट मिले। छह माह बाद किस्तें ली जाए तो व्यापार वापस गति पकड़ लेगा।

...तब ही चलेगा सेरेमिक उद्योग

लॉकडाउन के कारण उद्योगों का उत्पादन एवं सप्लाई दोनों ही प्रभावित हुई है। सरकार की मंशा के अनुरूप बैंक के अुनुसार व्यापारियों को तत्काल ऋण दे। इसमें बैंक अपनी शर्तें शामिल नहीं करे। इसके अलावा देश में घर बनाने का काम को गति मिले। इसमें जिनके कच्चे मकान है, उन्हें सरकार पक्के मकान बनाकर दे या मकान बनाने पर अनुदान दे। राशि वापस किस्तों मे लेने की व्यवस्था की जाए। तब ही सेरेमिक उद्योग चल सकेगा।