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गवर्नर साहब…यहां बुरे हैं हिंदी के हाल, यूनिवर्सिटी और सरकार को नहीं फिक्र

तीन साल पहले राजभवन के आदेश से खुला था विभाग। यूनिवर्सिटी में हिंदी की नहीं सुधर रही दशा।

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university hindi dept

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रक्तिम तिवारी/अजमेर.

भले ही हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल है। सामान्य बोलचाल और कामकाज में हम हिंदी इस्तेमाल करते हैं। लेकिन महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में हिंदी को महज ‘ढोया ’ जा रहा है। यूजीसी, सरकार और विश्वविद्यालय को इसकी कतई परवाह नहीं है। तीन साल पहले खुला हिंदी विभाग बदहाल है। ना विभाग में भर्तियां ना दाखिलों का ग्राफ बढ़ पाया है।

वर्ष 1987 में स्थापित महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में विज्ञान, वाणिज्य और कला संकाय के विषयों में कक्षाएं शुरू हुई। यहां राष्ट्रभाषा हिंदी का विभाग खोलने में सरकार अथवा कुलपति ने रुचि नहीं दिखाई। पत्रिका के साल 2014 में खबर प्रकाशित करने पर राज्यपाल कल्याण सिंह ने संज्ञान लिया। उनके निर्देश पर महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में साल 2015 से हिंदी विभाग प्रारंभ हुआ। लेकिन तीन साल से विभाग अपनी पहचान तलाश रहा है।

मैनेजमेंट विभाग के हवाले हिंदी
विश्वविद्यालय में मात्र 18 शिक्षक कार्यरत हैं। यही शिक्षक विभिन्न विभागों का अतिरिक्त कार्यभार संभाले हुए है। फिलहाल हिंदी विभाग मैनेजमेंट विभाग के हवाले है। तीन साल से यह कभी मैनेजमेंट तो कभी जनसंख्या अध्ययन विभाग के शिक्षकों के भरोसे संचालित है। केवल हिंदी दिवस को छोडकऱ विभाग में बड़े आयोजन नहीं हुए हैं।

नहीं हो पाई विभाग में भर्तियां

हिंदी विभाग को खुले तीन साल हो चुके हैं। इसमें शुरुआत से कॉलेज शिक्षा से सेवानिवृत्त शिक्षक कक्षाएं ले रहे हैं। कक्षाएं भी सिर्फ दिखाने के लिए हो रही हैं। विद्यार्थियों की संख्या 10-12 तक ही सिमटी हुई है। ना सरकार ना विश्वविद्यालय ने विभाग में स्थाई प्रोफेसर, रीडर अथवा लेक्चरर की नियुक्ति करना मुनासिब समझा है। विभाग की तरफ से सालाना राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, कार्यशाला, विद्यार्थियों की प्रतियोगिता नहीं कराई जाती है।

....नियमित नहीं हो रही भर्तियां
सरकार और राजस्थान लोक सेवा आयोग कॉलेज में हिंदी व्याख्याताओं की नियमित भर्तियां नहीं कर रहे। साल 2014 की कॉलेज व्याख्याता हिंदी भर्ती के साक्षात्कार और परिणाम वर्ष 2018 में जारी हुए। यही वजह है, कि विद्यार्थियों-युवाओं का हिंदी भाषा में कॅरियर बनाने के प्रति रुझान घट रहा है। स्नातक और स्नातकोत्तर कॉलेज में भी हिंदी भाषा के हाल खराब होने लगे हैं। प्रथम वर्ष में तो विद्यार्थी सिर्फ हिंदी में पास होने के लिए किताब पढ़ते हैं।

घट रहे हैं प्रवेश

विश्वविद्यालय सहित इससे सम्बद्ध कॉलेज में स्नातकोत्तर स्तर पर संचालित हिंदी कोर्स में दाखिले कम रहे हैं। अजमेर के सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय जैसे कुछेक संस्थाओं को छोडकऱ अधिकांश में युवाओं का रुझान हिंदी में एमए करने की तरफ घट रहा है। विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के हाल भी खराब हैं। शिक्षक, भाषा प्रयोगशाला और अन्य संसाधन नहीं होने से विद्यार्थियों की प्रवेश में रुचि कम हो रही है।

हिंदी भाषा...फैक्ट फाइल
-देश की मातृभाषा है हिंदी

-देश में करीब 1 करोड़ लोग बोलते हैं हिंदी
-देवनागरी लिपि है हिंदी का प्रमुख आधार

विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग खोलने का मकसद ही राष्ट्रभाषा को बढ़ावा देना है। केवल हिंदी में पास होने की प्रवृत्ति में बदलाव लाना होगा। विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग को सशक्त बनाने की जरूरत है। इसमें व्याख्यान, काव्य गोष्ठी और अन्य कार्यक्रम नियमित होने चाहिए।
डॉ.एन.के. भाभड़ा पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी