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विश्वविद्यालयों के क्षेत्राधिकार में अंग्रेजी माध्यम के शिक्षक कम हैं। ऐसे में कई विद्यार्थियों को नुकसान हो रहा है।

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students copies evaluation

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रक्तिम तिवारी/अजमेर.

विधि संकाय के विद्यार्थियों से मजाक हो रहा है। लॉ कॉलेज में अंग्रेजी माध्यम के विद्यार्थियों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन इम्तहान में उनकी कॉपियां हिंदी माध्यम के शिक्षक जांच रहे हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती सहित अन्य विश्वविद्यालयों के क्षेत्राधिकार में अंग्रेजी माध्यम के शिक्षक कम हैं। ऐसे में कई विद्यार्थियों को नुकसान हो रहा है।

राज्य में वर्ष 2005-06 में 15 लॉ कॉलेज स्थापित हुए। इनमें अजमेर, भीलवाड़ा, सीकर, नागौर, सिरोही, बूंदी, कोटा, झालावाड़ और अन्य कॉलेज शामिल हैं। शुरुआत में लॉ कॉलेजों में विधि शिक्षकों की स्थिति ठीक रही, लेकिन लगातार सेवानिवृत्तयों से हालात बिल्कुल बिगड़ गए हैं। राज्य में विधि शिक्षा की सांसें फूल रही हैं। इनमें भी अंग्रेजी माध्यम के शिक्षक अंगुलियों पर गिनने लायक भी नहीं हैं।

बढ़ रहे अंग्रेजी माध्यम के विद्यार्थी
अजमेर सहित अन्य लॉ कॉलेज में अंग्रेजी माध्यम के विद्यार्थियों की संख्या बढ़ रही है। 2010-11 तक इनकी संख्या 5-7 फीसदी तक थी। बीते चार-पांच साल में यह आंकड़ा 25 फीसदी तक पहुंच गया है। निजी स्कूल, सरकारी-निजी कॉलेज से अंग्रेजी माध्यम में स्नातक उत्तीर्ण विद्यार्थी लॉ कॉलेज में प्रवेश लेते हैं। इनमें ज्यादातर विद्यार्थियों की अंग्रेजी अच्छी है। वे विधि संकाय की अंग्रेजी की पुस्तकों से पढ़ते हैं। साथ ही परीक्षा के दौरान अंग्रेजी माध्यम ही चुनते हैं।

हिंदी माध्यम के शिक्षक जांचते कॉपी
प्रदेश में विधि शिक्षा में महज 70 व्याख्याता कार्यरत हैं। इनमें से महज 10-12 शिक्षकों को ही अंग्रेजी माध्यम में अध्ययन-अध्यापन का अनुभव है। अधिकांश शिक्षक हिंदी माध्यम से जुड़े हैं। सालाना परीक्षाओं के बाद हिंदी माध्यम के विधि शिक्षक विद्यार्थियों की कॉपियां जांचते हैं। लेकिन कई विद्यार्थियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। जबकि विधि संकाय अथवा वकालत में कई बार अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है।

क्षेत्राधिकार में शिक्षक कम
विश्वविद्यालयों के क्षेत्राधिकार में अंग्रेजी माध्यम के विधि शिक्षकों की संख्या ज्यादा नहीं है। विधि संकाय के हिंदी माध्यम के शिक्षक ही कॉपियां जांच रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि मेयो कॉलेज के एक शिक्षक ने कम नम्बर आने पर सूचना के अधिकार में यह जानकारी मांगी थी। उसमें महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय ने इसका खुलासा किया है। इसके अलावा अंग्रेजी में कॉपियां जांचने वाले शिक्षकों का पैनल भी नहीं बनाया जाता है।