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अजमेर

Lesser Florican: गोडावण की तरह तरस जाएंगे खरमौर देखने के लिए

खरमौर इन्हीं इलाकों के हरे घास के मैदान, झाडिय़ों युक्त ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र में दिखता रहा है।

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अजमेर. प्रदेश में दुर्लभ पक्षी खरमौर (lesser florican) पर जबरदस्त संकट मंडरा रहा है। अंधाधुंध खनन, प्राकृतिक आपदाएं और असंतुलित होते पर्यावरण (environment) ने खरमौर को नुकसान पहुंचाने में जुटे हैं।

अजमेर जिले का सोकलिया, गोयला, रामसर, मांगलियावास और केकड़ी खरमौर के पसंदीदा क्षेत्र है। मूलत: प्रवासी पक्षी कहा वाला खरमौर इन्हीं इलाकों के हरे घास के मैदान (grass field), झाडिय़ों युक्त ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र में दिखता रहा है। भारतीय वन्य जीव संस्थान सहित कई विश्वविद्यालयों-संस्थाओं द्वारा राजस्थान-गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों के सर्वेक्षण (survey) में स्थिति काफी चिंताजनक आई है।

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फैक्ट फाइल..
1980 से 1990 तक थे देश में 4374 खरमौर
2018-19 तक खरमौर की संख्या-250 से 300
10 साल की वन्य जीव गणना में खरमौर की संख्या-0
यदा-कदा मानसून में दिखने वाले खरमौर-3 से 5
राजस्थान के जिले जहां दिखता है खरमौर-4
अजमेर के गांव जहां आता है खरमौर-5

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अनुमान पर चल रही पेड़-पौधों की गणना
अजमेर. वन विभाग से जिले या संभाग में पेड़-पौधों की सही संख्या पूछी जाए तो इसका जवाब ‘अनुमान ’ में ही मिल पाएगा। अव्वल तो विभाग वन्य जीव (wild animal) और प्रवासी पक्षियों (migratory birds) की तरह प्रतिवर्ष पेड़-पौधों की गणना नहीं कराता। तिस पर क्यूआर कोड जैसे कोई वैज्ञानिक नवाचार भी प्रारंभ नहीं किए गए हैं। अजमेर वन मंडल के तहत नागौर, टोंक, भीलवाड़ा और अजमेर जिले का वन्य क्षेत्र आता है।

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विभाग प्रतिवर्ष मानसून के दौरान सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं में पौधरोपण कराता है। इनमें राजस्थान जैव विविधता परियोजना, पर्यावरण वानिकी, वन विकास, राष्ट्रीय झील संरक्षण, नाबार्ड और अन्य योजनाएं शामिल हैं। लेकिन पेड़-पौधों (plants) की सटीक गणना का विभाग के पास वैज्ञानिक तरीका नहीं है।

कागजी रिपोर्ट होती है आधार विभाग मानसून(जुलाई से सितंबर)
अवधि सहित अन्य अवसरों पर पौधरोपण (plantation) करता है। इस दौरान बरसात में कई पौधे जड़ें पकड़ लेते हैं। पर्याप्त बरसात (rain in ajmer) और पानी के अभाव में हजारों पौधे नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा विभाग के पास कई वर्षों पूर्व लगे बड़े पेड़-पौधे भी हैं। अव्वल तो इनकी गणना प्रतिवर्ष नहीं होती। फॉरेस्ट गार्ड, रेंजर और अन्य स्टाफ की कागजी रिपोर्ट ही पेड़-पौधों और वन्य क्षेत्र का अस्तित्व बताती है।

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