1987 में स्थापित महर्षि दयांनद सरस्वती विश्वविद्यालय में शुरुआत से हिंदी विभाग नहीं था। ना सरकार ना कुलपतियों (vice chancellor) ने हिंदी विभाग खोलने की पहल की। राजस्थान पत्रिका ने मुद्दा उठाया तो राज्यपाल कल्याण सिंह ने तत्काल संज्ञान लिया। उनके निर्देश पर तत्कालीन कुलपति प्रो. कैलाश सोडाणी (kailash sodani) ने वर्ष 2015 में हिंदी विभाग स्थापित किया। तबसे विभाग अपनी पहचान ही नहीं बना पाया है।
स्थाई शिक्षक तक नहीं
विभाग में चार साल से स्थाई शिक्षकों की भर्ती नहीं हो पाई है। यहां सिर्फ दिखाने के लिए कामचलाऊ शिक्षक (guest faculty) कक्षाएं ले रहे हैं। चार साल में विद्यार्थियों की संख्या 40 भी नहीं पहुंच पाई है। ना सरकार ना विश्वविद्यालय ने विभाग में स्थाई प्रोफेसर (professor), रीडर (reader) अथवा लेक्चरर (lecturer) की नियुक्ति करना मुनासिब समझा है। विभाग की तरफ से कोई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, कार्यशाला, विद्यार्थियों की प्रतियोगिता नहीं होती है।
विभाग में चार साल से स्थाई शिक्षकों की भर्ती नहीं हो पाई है। यहां सिर्फ दिखाने के लिए कामचलाऊ शिक्षक (guest faculty) कक्षाएं ले रहे हैं। चार साल में विद्यार्थियों की संख्या 40 भी नहीं पहुंच पाई है। ना सरकार ना विश्वविद्यालय ने विभाग में स्थाई प्रोफेसर (professor), रीडर (reader) अथवा लेक्चरर (lecturer) की नियुक्ति करना मुनासिब समझा है। विभाग की तरफ से कोई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, कार्यशाला, विद्यार्थियों की प्रतियोगिता नहीं होती है।
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सरकार और राजस्थान लोक सेवा आयोग (rpsc ajmer) कॉलेज में हिंदी व्याख्याताओं की नियमित भर्तियां नहीं कर रहे। साल 2014 की कॉलेज व्याख्याता हिंदी भर्ती के साक्षात्कार और परिणाम पिछले दिनों जारी हुए हैं। यही वजह है, कि विद्यार्थियों-युवाओं का हिंदी भाषा (hindi language) में कॅरियर बनाने के प्रति रुझान घट रहा है। स्नातक (UG College) और स्नातकोत्तर कॉलेज (PG College) में भी हिंदी भाषा के हाल खराब होने लगे हैं। प्रथम वर्ष में तो विद्यार्थी सिर्फ हिंदी में पास होने के लिए किताब पढ़ते हैं।
सरकार और राजस्थान लोक सेवा आयोग (rpsc ajmer) कॉलेज में हिंदी व्याख्याताओं की नियमित भर्तियां नहीं कर रहे। साल 2014 की कॉलेज व्याख्याता हिंदी भर्ती के साक्षात्कार और परिणाम पिछले दिनों जारी हुए हैं। यही वजह है, कि विद्यार्थियों-युवाओं का हिंदी भाषा (hindi language) में कॅरियर बनाने के प्रति रुझान घट रहा है। स्नातक (UG College) और स्नातकोत्तर कॉलेज (PG College) में भी हिंदी भाषा के हाल खराब होने लगे हैं। प्रथम वर्ष में तो विद्यार्थी सिर्फ हिंदी में पास होने के लिए किताब पढ़ते हैं।
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विभिन्न कॉलेज में स्नातकोत्तर स्तर पर संचालित हिंदी कोर्स (hindi course) में दाखिले कम रहे हैं। अजमेर के सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय जैसे कुछेक संस्थाओं को छोडकऱ अधिकांश में युवाओं (youth)का रुझान हिंदी में एमए करने की तरफ घट रहा है। विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के हाल भी खराब हैं। शिक्षक (teachers), भाषा प्रयोगशाला (language lab) और अन्य संसाधन नहीं होने से विद्यार्थियों की प्रवेश में रुचि (low admisssion) कम हो रही है।
विभिन्न कॉलेज में स्नातकोत्तर स्तर पर संचालित हिंदी कोर्स (hindi course) में दाखिले कम रहे हैं। अजमेर के सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय जैसे कुछेक संस्थाओं को छोडकऱ अधिकांश में युवाओं (youth)का रुझान हिंदी में एमए करने की तरफ घट रहा है। विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के हाल भी खराब हैं। शिक्षक (teachers), भाषा प्रयोगशाला (language lab) और अन्य संसाधन नहीं होने से विद्यार्थियों की प्रवेश में रुचि (low admisssion) कम हो रही है।
read more: Heritage: अजमेर में हैं कई नायाब विरासत, सिर्फ पहचानने की जरूरत विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग खोलने का मकसद ही राष्ट्रभाषा को बढ़ावा देना है। केवल हिंदी में पास होने की प्रवृत्ति में बदलाव लाना होगा। विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग को सशक्त बनाने की जरूरत है।
प्रो. कैलाश सोडाणी, पूर्व कुलपति मदस विश्वविद्यालय
प्रो. कैलाश सोडाणी, पूर्व कुलपति मदस विश्वविद्यालय