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अन्नदाता की ईमानदारी की निशानी है नरवर की ‘तिल की बावड़ी’

नरवर की ऐतिहासिक धरोहर को देखने आते हैं कई लोग

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अन्नदाता की ईमानदारी की निशानी है ‘तिल की बावड़ी’

अन्नदाता की ईमानदारी की निशानी है ‘तिल की बावड़ी’

अजमेर. अजमेर जिले के नरवर में तिल की बावड़ी आज भी प्रसिद्ध है। यह बावड़ी ईमानदारी की नींव पर टिकी हुई है। इस बावड़ी का निर्माण करने के पीछे ना केवल एक किसान की ईमानदारी छिपी है तो एक राजा के जुबान पर काबिज रहने की इबारत लिखी हुई है।

नरवर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य फतहसिंह बताते हैं कि नरवर में तिल की बावड़ी के पीछे घासल जाट की ईमानदारी का वाकया जुड़ा हुआ है। बरसों पूर्व नरवर दरबार में एक किसान घासल जाट (हासल) लगान के रूप में पछेवड़े (चद्दर) में तिल (तिलहन) लेकर पहुंचा। घासल जाट तिल खाली करके चद्दर को समेट कर अपने घर रवाना हो गया। घर पर जब चद्दर को खोला तो उसकी नजर चद्दर पर पड़े एक तिल पर पड़ी और उस तिल को लेकर वापस नरवर राजा के दरबार में पहुंचा और बताया कि यह लगान का एक तिल उसके साथ वापस चला गया, इसे स्वीकार करें। इस पर तत्कालीन राजा उसकी ईमानदारी पर खुश हुए और कहा कि इसे तुम ही ले जाओ।

राजा के हुकम पर वह रवाना तो हो गया मगर मन में घासल ने सोचा कि वह माफी के तिल को अपने घर के काम में नहीं लेगा। वह मेहनती किसान है, माफी का तिल नहीं चाहिए। उसने तिल को संभाल कर रखा और कुछ सालों में एक तिल की खेती कर-करके तिलों की खेती से पैदावार ली और फिर तिल की एक गाड़ी भरकर राजा के पास पहुंचा और कहा कि ये आपके एक तिल से पैदा हुए तिल हैं इन्हें आप स्वीकार करें।

राजा आश्चर्यचकित हुए और दरबार में बैठकर चर्चा की। उन्होंने कहा कि यह किसान की मेहनत है, किसान ने कहा यह आपकी अमानत है, इसके बाद निर्णय किया कि इन तिलों को बेचकर धर्मार्थ के काम में राशि का उपयोग किया जा सकता है। उसके बाद उन तिल की राशि से बावड़ी खुदवाई गई। आज भी नरवर में यह बावड़ी मौजूद है।