पहले खूब बिकती थी
कन्फेक्शनरी के दुकानदार सरदार बलवीर सिंह ने बताया कि उन्होंने 1977 से दुकान पर बैठना प्रारंभ किया था। तब भी lollypop बिकती थी। आज भी lollypop जमकर बिकती है। लॉलीपॉप को देखते ही बच्चों का चेहरा खिल जाता है। बच्चे तो क्या बड़ों के भी मुंह में पानी आ जाता है। वे भी इसे खूब चाव से खाते है। इनमें कॉलेज जाने वाले युवा और अन्य लोग भी शामिल है। बड़े लोग कभी-कभी शौकिया पूरा आनंद लेकर lollypop खाते हैं।
अब फ्लेवर और रंगों में उपलब्ध
अमरीका के न्यू हेवन के जॉज स्मिथ ने 1908 में स्टिक पर कैंडी लगाने का काम किया। इसे लॉलीपॉप नाम दिया गया। 1931 में लॉलीपॉप का ट्रेडमार्क कराया गया। एक समय लॉलीपॉप गोल हुआ करती थी, लेकिन अब इसके कई आकार हो गए हैं। स्क्वॉयर, हार्ट शेप, सर्कल, स्टार, टैडीबेयर सहित कई शेप में लॉलीपॉप आने लगी है। यह खूब पसंद भी आ रही है। इसी तरह कई फ्लेवर भी हैं। मिल्क, ऑरेन्ज, वॉटर मेलन, मैंगों, पाइन एप्पल, स्ट्रॉबरी, मिल्क-चॉकलेट जैसे फ्लेवर में दो से पांच रुपए में बिक रही है। वो भी खट्टे, मीठे चटपटे कई फ्लेवर्स में बेची जा रही है।
कन्फेक्शनरी के दुकानदार सरदार बलवीर सिंह ने बताया कि उन्होंने 1977 से दुकान पर बैठना प्रारंभ किया था। तब भी lollypop बिकती थी। आज भी lollypop जमकर बिकती है। लॉलीपॉप को देखते ही बच्चों का चेहरा खिल जाता है। बच्चे तो क्या बड़ों के भी मुंह में पानी आ जाता है। वे भी इसे खूब चाव से खाते है। इनमें कॉलेज जाने वाले युवा और अन्य लोग भी शामिल है। बड़े लोग कभी-कभी शौकिया पूरा आनंद लेकर lollypop खाते हैं।
अब फ्लेवर और रंगों में उपलब्ध
अमरीका के न्यू हेवन के जॉज स्मिथ ने 1908 में स्टिक पर कैंडी लगाने का काम किया। इसे लॉलीपॉप नाम दिया गया। 1931 में लॉलीपॉप का ट्रेडमार्क कराया गया। एक समय लॉलीपॉप गोल हुआ करती थी, लेकिन अब इसके कई आकार हो गए हैं। स्क्वॉयर, हार्ट शेप, सर्कल, स्टार, टैडीबेयर सहित कई शेप में लॉलीपॉप आने लगी है। यह खूब पसंद भी आ रही है। इसी तरह कई फ्लेवर भी हैं। मिल्क, ऑरेन्ज, वॉटर मेलन, मैंगों, पाइन एप्पल, स्ट्रॉबरी, मिल्क-चॉकलेट जैसे फ्लेवर में दो से पांच रुपए में बिक रही है। वो भी खट्टे, मीठे चटपटे कई फ्लेवर्स में बेची जा रही है।