
The Sword of Play : पाकिस्तान ने अपनाई अजमेर की यह परम्परा
युगलेश शर्मा.
अजमेर. अजमेर (ajmer) के अंदरकोट में मोहर्रम (muharram) की नौ व दस तारीख को द सोसायटी पंचायत अंदरकोटियान की ओर से हाईदौस की रस्म अदा की जाती है। रस्म के दौरान रह-रह कर तोप की आवाज आती है और ढोल-ताशों की गूंज के बीच युवाओं के हाथों में चमचमाती तलवारें (swords) लहराती हैं। इसमें कई युवक जख्मीं होते हैं, लेकिन इन जख्मों की परवाह किए बिना हर कोई अपने आपको हजरत इमाम हुसैन (imam hussain) के लश्कर में शामिल होता हुआ मानकर हाईदौस खेलता रहता है। मोहर्रम की नौ तारीख को यह रस्म कुछ देर के लिए होती है, लेकिन दस तारीख को करीब 3 घंटे तक हाईदौस खेला जाता है।
इसलिए पाकिस्तान में
वर्ष 1947 में विभाजन के वक्त द सोसायटी पंचायत अंदरकोटियान के जो लोग पाकिस्तान (pakistan) चले गए, उन्होंने वहां भी यह परम्परा शुरू कर दी। उनके वशंज आज भी वहां इस परम्परा को निभाते हैं। अजमेर की तरह ही पाकिस्तान के हैदराबाद सिंध में भी मोहर्रम की नौ व दस तारीख को नंगी तलवारों से हाईदौस खेला जाता है। अंदरकोट के खालिद खान ने बताया कि हैदराबाद सिंध के खाता चौक में हाईदौस खेला जाता है।
प्रशासन देता है 100 तलवारें
द सोसायटी पंचायत अंदरकोटियान के ऑडिटर एसएम अकबर ने बताया कि 1947 में पंचायत की तलवारें प्रशासन ने अपने कब्जे में ले ली थीं, तब से हर वर्ष हाईदौस खेलने के लिए प्रशासन पंचायत को तलवारें उपलब्ध कराता है। प्रतिवर्ष 100 तलवारें पंचायत को सौंपी जाती हैं।
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गजट नोटिफिकेशन में शामिल
तत्कालीन मेरवाड़ा स्टेट के 1860 के गजट नोटिफिकेशन में भी हाईदौस का ‘द सॉर्ड ऑफ प्ले’ के नाम से जिक्र किया गया है।
Published on:
09 Sept 2019 01:56 pm
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