
Patrika Bird Fair : परिन्दों से प्रेम हमारी संस्कृति
उमेश कुमार चौरसिया ( गेस्ट राइटर )
अजमेर.
भारतीय संस्कृति में पक्षियों का बहुत महत्व है। भारतीय दर्शन में परिवार और समाज के बाद हृदय को स्पर्श करने वाला सर्वाधिक भावनात्मक संबंध प्रकृति के साथ माना गया है। सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, पर्वत, वन वृक्ष, नदी आदि के साथ-साथ पशु और पक्षियों को भी प्रकृति का महत्वपूर्ण अंग कहा गया है।
पक्षी प्रेम और पक्षी निहारने की बहुत ही सशक्त परम्परा भारतीय समाज में प्राचीनकाल से रही है। विविध पक्षियों को देवताओं के वाहन के रूप में विशेष सम्मान दिया गया है।
विष्णु का वाहन गरुड, ब्रह्मा और सरस्वती का वाहन हंस, कामदेव का तोता, कार्तिकेय का मयूर, लक्ष्मी का वाहन उल्लू, इन्द्र व अग्नि का अरुण कुंच जिसे हम फ्लेमिंगों के नाम से जानते हैं तथा वरुण का चकवाक जिसे शैलडक कहा जाता है।
प्राचीन वेदों में भी पक्षियों का उल्लेख मिलता है। ऋवेद के मंत्र में वृक्ष पर बैठे दो सुपर्णों के रूपक से जीव और आत्मा का अंतर समझाया गया है। अथर्ववेद के मंत्र में नवदंपश्रि को चकवा के जोड़े के समान निष्ठावान रहने का आशीष दिया गया है।
यजुर्वेद की तैश्रिरीय संहिता का तो नाम ही तिश्रिर पक्षी के नाम पर है। इस प्रकार ऋग्वेद में 20, यजुर्वेद में 60 पक्षियों का उल्लेख है। रामायण और महाभारत सहित कई पुराणों में भी कई पक्षियों का सूक्ष्म अवलोकन दिखाई देता है। संस्कृत साहित्य, प्राकृत और पालि साहित्य भी पक्षियों के ज्ञान से समृद्ध है।
क्रौंच पक्षी के वध को देखकर आदिकवि वाल्मीकि ने द्रवित हृदय से क्रौंच के प्रति संवेदना और शिकारी निषाद के प्रति रोष प्रकट करते हुए करुणा से ओत-प्रोत पंक्तियां लिखीं थीं 'मा निषाद प्रतिष्ठानम् त्वम्...!' अर्थात हे निषाद तुम्हें समाज में प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी।
लोक साहित्य में तो पक्षियों को लेकर अनेक कहावतें, कथाएं लोकप्रिय हैं। चातक, चकोर, पपीहा, तोता, मैना, हंस, कबूतर आदि पर कई काव्य व गीत रचनाएं आज भी प्रचलित हैं।
प्यार और शुचिता के प्रतीक हंस को दाम्पत्य जीवन के लिए आदर्श कहा जाता है। जोड़े में से एक की मृत्यु हो जाने पर दूसरा अपना शेष जीवन अकेले ही गुजारता है।
भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर के मोहक पंख श्रीकृष्ण के प्रिय रहे हैं। अतिथि आगमन का और पितृ आत्मा का आश्रय माना जाने वाला कौआ एक सामाजिक पक्षी है। यदि किसी कौए की मृत्यु हो जाए तो उस दिन उसका कोई भी साथी कुछ नहीं खाता और ये सदैव समूह में ही मिल-बांटकर खाते हैं।
रातों को जागने वाले उल्लू को घटनाओं का पूर्वाभास हो जाता है। वाल्मीकि रामायण में उल्लू को मूर्ख के स्थान पर चतुर कहा गया है। पक्षियों में श्रेष्ठ बुद्धिमान कहे जाने वाले गरुड़ के नाम पर ही गरुड़ पुराण है। यह श्रीराम को मेघनाद के मोहपाश से मुक्त कराने वाला महत्वपूर्ण पात्र भी है।
शिव नाम के प्रतीक नीलकंठ पक्षी को देखने मात्र से भाग्योदय हो जाता है। अनेक जातक व पौराणिक कथाओं में कुशल पंडित माना जाने वाला तोता बहुत सुंदर और लोकप्रिय पक्षी है। वास्तुशास्त्र में तोते के चित्र का बड़ा महत्व है। शांति के प्रतीक कबूतर को प्रेम का संदेशवाहक माना गया है।
दिशाओं को पहचानने के कारण राजाओं के समय में महत्वपूर्ण संदेश भेजने में भी कबूतर का उपयोग हुआ करता था। पंचतंत्र की कथाओं में लोकप्रिय बगुला ध्यान, धेर्य और एकाग्रता का प्रतीक है। मनुष्य की मित्र घर-घर में चहचहाने वाली गोरैया को घर में सुख-शांति का द्योतक माना गया है। जहां गौरेया रहती है वहां सदैव समृद्धि होती है यह सर्वमान्य है। संगीत की प्रतीक कोयल की कूक सभी के मन को आनन्द की अनुभूति कराती है।
चरक संहिता, संगीत रत्नाकर और भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में पक्षियों की चारित्रिक विशेषताओं का सुन्दर चित्रण किया गया है। मनुस्मृति व पाराशर स्मृति आदि में पक्षियों के शिकार का निषेध किया गया है।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी पक्षियों के संरक्षण के लिए समुचित निर्देश मिलते हैं। पक्षियों के प्रति संवेदना, प्रेम और संरक्षण की ये बातें उस काल की हैं, जब पशु-पक्षियों को भोजन के रूप में देखा जाता था। आज जब हम देख रहे हैं कि घर-परिवार का हिस्सा मानी जाने वाली गोरैया चिडिय़ा लुप्तप्राय हो गई है, तोते, कबूतर और कौए दिखना कम हो गए हैं।
पक्षियों की चहचहाहट मानो सीमेंट-कंकरीट के शहरों ने लील ली है। ऐसे में जितने पक्षी हमें दिख रहे हैं, जितने पक्षी सुदूर देशों से हमारे शहर में प्रवास करने आ रहे हैं, आइये हम सब मिलकर हमारी भारतीय संस्कृति की परम्परा का निर्वहन करते हुए इन सुन्दर, निरीह, भोले पक्षियों से प्रेम करें और उनके संरक्षण के लिए यथासंभव प्रयत्न करें।
Published on:
18 Jan 2020 11:29 pm
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