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आपको भी हैरान करेगी ये खास स्टाइल, पूरे देश में बजता है इसका डंका

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research work in university

research work in university

अजमेर.

योजनाएं बनाकर कागजों में कैद करना महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय से सीखिए। यहां चारों शोध पीठ में ना नकद पुरस्कार ना शोध कार्यों की शुरुआत हुई है। प्रस्ताव करीब दस महीने से फाइलों में ही घूम रहा है। हालांकि कामकाज में देरी का यह का तरीका पूरे देश में प्रचलित है। प्रस्ताव बनाना और भूल जाना अफसरों और कर्मचारियों की आदत में आ चुका है।

तत्कालीन कार्यवाहक कुलपति प्रो. भगीरथ सिंह की अध्यक्षता में बीते वर्ष सिन्धु शोध पीठ, डॉ. भीमराव अंबेडकर शोध पीठ, सम्राट पृथ्वीराज चौहान शोध पीठ अैार महर्षि दयानन्द सरस्वती शोध पीठ की बैठक हुई थी। सभी शोधपीठ में सालाना व्याख्यान, शोधपत्र लेखन, कार्यशाला, लेखन कार्यक्रम, विषय आधारित प्रश्नोतरी लेख, शोधपत्र, पुस्तक आमंत्रण जैसे प्रस्ताव बनाए गए। लेकिन यह कागजों तक ही सिमटे हुए हैं।

कब शुरू होंगे शोध कार्य

आमजन को शोध और चारों पीठ से जोडऩे के लिए शोध कार्य की शुरुआत होनी है। यहां अपंजीकृत स्वतंत्र एवं वास्तविक शोधकर्ता को नियमित शोध के लिए प्रतिमाह तीन हजार रुपए (१ वर्ष) दिए जाने हैं। इसके लिए शोधकर्ता को १०० रुपए के स्टाम्प पर वास्तविक शोध प्रपत्र प्रस्तुत करने की अनिवार्यता रखी गई है। प्रस्तावित नियमावली तय होने के बाद भी शोध कार्य प्रारंभ नहीं हुए हैं।

इन पुरस्कारों का नहीं अता-पता

झूलेलाल जयंती पर होने वाली कार्यशाला में सिन्धु सभ्यता पर आधारित श्रेष्ठ प्रविष्ठि पर ११ हजार रुपए नकद, प्रशस्ति त्र और सिन्धु रत्न पुरस्कार।

-अम्बेडकर जयंती पर होने वाली संगोष्ठी में डॉ. अम्बेडकर के जीवन, सामाजिक उत्थान पर आधारित श्रेष्ठ प्रविष्ठि को 11 हजार रुपए नकद, प्रशस्ति पत्र और अंबेडकर रत्न पुरस्कार

-सम्राट पृथ्वीराज चौहान जयंती पर होने वाले सेमिनार में पृथ्वीराज चौहान के गौरवशाली इतिहास पर आधारित श्रेष्ठ प्रविष्ठि को 11 हजार रुपए नकद, प्रशस्ति पत्र और पुरस्कार

-दयानंद निर्वाण दिवस पर होने वाली संगोष्ठी में श्रेष्ठ प्रविष्ठि पर 11 हजार रुपए नकद, प्रशस्ति पत्र और आर्य श्रेष्ठ रत्न पुरस्कार (नवम्बर में प्रस्तावित)

स्टूडेंट्स यहां नहीं बन सकते प्लेयर, इन्हें नहीं पसंद है खेलना-कूदना

स्वास्थ्य और कॅरियर के लिहाज से खेलकूद बेहद जरूरी हैं। सरकार भी खेलों को बढ़ावा देने में जुटी है। लेकिन प्रतिवर्ष सैकड़ों टेक्नोक्रेट्स तैयार करने वाले शहर के इंजीनियरिंग कॉलेज इस मामले में पीछे हैं। दोनों कॉलेज में खेल सुविधाओं का अभाव है। विकास शुल्क वसूलने वाला राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय भी ज्यादा ध्यान नहीं दे रहा है

युवाओं के कॅरियर के लिहाज से आउटडोर और इन्डोर खेल जरूरी समझे जाते हैं। इनमें उच्च शिक्षण संस्थान की तरह मेडिकल, इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स भी शामिल हैं। शहर के बॉयज और महिला इंजीनियरिंग कॉलेज खेल सुविधाओं के मामले में स्कूल से भी पिछड़े हैं।