
Road: हर साल बारिश का कहर झेलती हैं यह सडक़ें
हिमांशु धवल
अजमेर. शहर की अधिकांश मुख्य सडकें (road) प्रतिवर्ष बारिश के कारण टूटती हैं। उन्हें बनाने के लिए करोडों रुपए खर्च होते हैं। यह प्रतिवर्ष होने वाली सतत् प्रकिया है। इसके बावजूद अधिकारी और जनप्रतिनिधियों की स्मार्ट सोच का अभाव होने से आज तक इसका स्थायी समाधान नहीं हुआ है। जिन सडक़ों पर बारिश का पानी बहता है उन्हें सीसी (cc) सडक़ बनाकर प्रतिवर्ष खर्च होने वाले करोड़ों रुपए की बचत की जा सकती है।
अजमेर शहर की भौगोलिक बसावट अन्य शहरों (city) से अलग होने और बारिश (rain) के पानी की निकासी नहीं होने से बारिश में सडक़ें दरिया का रूप ले लेती हैं। अधिकांश सडक़ों पर बारिश का पानी (water) भरने और तेज गति से बहकर आने के कारण प्रतिवर्ष सडक़ों का टूटना तय है। रोड पर जगह-जगह गड्ढे होने के कारण कई बार दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। इसके बावजूद उक्त समस्या का आज तक स्थायी समाधान नहीं किया गया। जिन सडक़ों को बारिश (rain) से सर्वाधिक नुकसान (loss) पहुंचता है उसे सीसी सडक़ें बनाकर प्रतिवर्ष होने वाले करोड़ों के नुकसान से बचा जा सकता है। इसके बावजूद इस ओर कोई भी सोचने की जहमत नहीं उठा रहा है।
सडक़ेंबन जाती हैं नाला
शहर की अधिकांश मुख्य सडक़ें बारिश आते ही नाले का रूप ले लेती हैं। कई स्थानों पर साधारण बारिश (rain) होने पर भी एक से दो फीट तक पानी (water) भर जाता है। इसमें मुख्य रूप से दरगाह बाजार और रेलवे स्टेशन रोड की स्थिति सर्वाधिक खराब हो जाती है। इसमें से कई सडक़ें (road) धंस भी रही हैं।
यह है हर साल टूटने वाली सडक़ें
- अंदरकोर्ट से मदार गेट तक की सडक़
- न्यू मैजेस्टिक सिनेमा हॉल से रेलवे स्टेशन तक
- देहली गेट से फव्वारा चौराहा तक
- ऋषि घाटी से रीजनल चौराहा तक
- सर्किट हाउस से आनासागर चौपाटी तक
- मार्टिण्डल ब्रिज से अलवर गेट चौराहा तक
- राजासाइकिल चौराह से मेयो कॉलेज नौ नम्बर तक
- जेएलएन हॉस्पिटल रोड पर पटेल मैदान तक
read more : पानी के तेज बहाव से एक और एनिकट टूटा
एक्सपर्ट व्यू
अजमेर से सेवानिवृत्त हुए अधिक्षण अभियंता सुनील सिंघल का कहना है कि मास्टर प्लान, स्मार्ट सिटी और अमृत योजना सभी में डैनेज सिस्टम को प्राथमिकता दी गई है। मास्टर प्लान बनाते समय सुपर डैनेज सिस्टम भी बनाया जाना चाहिए। इसके लिए डिटेल इंजीनियरिंग की आवश्यकता होती है। सडक़ें काली करने से कुछ नहीं होगा। पानी का बहाव होगा तो सडक़ें फिर से टूटेंगी। इसके लिए इंजीनियरों को पानी में जाकर स्वयं को पोकैट बनाकर उसे नाले से जोडऩा होगा तभी सडक़ों को बचाया जा सकता है।
Published on:
09 Aug 2019 01:01 pm
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