
natural pond destroy in ajmer
रक्तिम तिवारी/अजमेर
अपने ही हाथों एक प्राकृतिक जलस्त्रोत की बर्बादी देखनी है तो महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय (mdsu ajmer) चले आइए। यहां स्टाफ कॉलोनी में बना लघु तालाब विश्वविद्यालय की अनदेखी के बर्बाद हो गया है। ऐसा तब है जबकि बरसात के दौरान पूरे परिसर का पानी नालों और नालियों से इसमें पहुंचता है। अगर इसकी सार-संभाल की जाए तो क्षेत्र में हरियाली (green fields) और पक्षियों के लिए खूबसूरत स्थान बन सकता है।
वर्ष 1998-90 में सरकार ने विश्वविद्यालय के लिए कायड़ रोड पर करीब 750 बीघा भूमि आवंटित की थी। अजमेर-बीकानेर राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों तरफ विश्वविद्यालय की यह जमीन है। इसमें एक तरफ प्रशासनिक और शैक्षिक भवन बने हैं। दूसरी तरफ स्टाफ कॉलोनी, कुलसचिव और परीक्षा नियंत्रक के बंगलों सहित सत्यार्थ सभागार (ऑडिटेरियम) निर्माणाधीन है। इसी कॉलोनी के समीप एक प्राकृतिक तालाब (natural pond) बना है। इसके पीछे की तरफ पाल भी बनी हुई है।
आता है बरसात में पानी
विश्वविद्यालय के शैक्षिक-प्रशासनिक भवनों और परिसर में एकत्रित हुआ बरसात (rain water) का पानी छोटे तालाब में पहुंचता है। वहां तक पानी पहुंचाने के लिए बड़े नाले और नालियां बनी हुई है। प्रशासन ने बेतरतीब निर्माण और अनदेखी से तालाब को भुला दिया है। पिछले तीस साल में ना पर्यावरण विभाग ना जूलॉजी(zoology)-बॉटनी (botony) विभाग ने इसकी तालाब के संरक्षण के प्रयास किए हैं।
हुए जमीन पर अतिक्रमण
तालाब विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार वाली जमीन पर है। लेकिन अभियांत्रिकी विभाग, सामान्य प्रशासन विभाग की अनदेखी से पिछले तीस साल में विश्वविद्यालयत की जमीन पर धड़ल्ले से अतिक्रमण (illegal capture) किए गए। इसमें तालाब वाली जमीन भी शामिल है। तालाब की पाल और विश्वविद्यालय की सटी दीवार के आसपास मकान बन चुके हैं। विश्वविद्यालय ने तालाब और इसके कैचमेंट एरिया (catchment area)को बचाने के कोई प्रयास नहीं किए। अदूरदर्शिता का परिचय देते हुए साल 2010 में प्रशासन ने तालाब से सटी जमीन पर सचिन तेंदुलकर स्टेडियम का शिलान्यास भी करा दिया है।
वरना बन सकता है शानदार स्थल
छोटे तालाब की सार-संभाल की जाए तो यह शानदार प्राकृतिक स्थल (natural place) बन सकता है। यहां विश्वविद्यालय बरसात का पानी एकत्रित कर सकता है। इससे पेड़-पौधों (green plants)के लिए पानी मिल सकता है। इसके अलावा बबूल और ठूंठ पर देशी-प्रवासी पक्षियों के आश्रय स्थल तैयार हो सकते हैं। शोधार्थियों और शहरवासियों के लिए एक प्राकृतिक स्थान उपलब्ध हो सकता है।
रेन वाटर हार्वेस्टिंग भी नहीं
केंद्र और राज्य सरकार ने सभी सरकारी एवं निजी विभागों, आवासीय एवं व्यावसायिक भवनों को बरसात के पानी को संग्रहण (rain water harvesting)करने के निर्देश दिए हैं। कई सरकारी और निजी महकमों और घरों में इसकी शुरुआत हो भी गई है। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय तो इसमें सबसे पीछे है। अधिकारी, कर्मचारी पानी की किल्लत से वाकिफ है, फिर भी छतों के पानी को पाइपों के सहारे भूमिगत टैंक में संरक्षित करने के प्रयास नहीं हो रहे हैं।
सात साल में हुई कम बरसात
(1 जून से 30 सितम्बर)
2012-520.2
2013-540
2014-545.8
2015-381.44
2016-512.07
2017-450
2018-350
Published on:
17 Jul 2019 07:44 am
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