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कुतप काल में शुभ होता है श्राद्ध कर्म

समयावधि पूर्वाह्न 11.36 से दोपहर 12. 24 बजे तक

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कुतप काल में शुभ होता है श्राद्ध कर्म

कुतप काल में शुभ होता है श्राद्ध कर्म

अजमेर. श्राद्ध पक्ष यानी कनागत एक सितम्बर से शुरू हो गए। श्राद्ध में व्यक्ति अपने पितृगणों के निमित श्राद्धकर्म का कार्य करते हैं। धर्म ग्रन्थों में श्राद्ध पक्ष और पितृगणों की विशेष महत्ता बताई गई है। उनकी प्रसन्नता अत्यन्त आवश्यक होती है। पुरोहित कर्म से जुड़े लोगों का कहना है कि श्राद्ध पक्ष में दिन का आठवां मुहूर्त कुतप काल कहलाता है। इसका समय पूर्वाह्न 11.36 से दोपहर 12. 24 बजे तक लगभग होता है। यह श्राद्ध में विशेष प्रशस्त होता है इसमें किया गया श्राद्ध अत्यन्त फलदायक होता है। सूर्य के कन्या राशि में आने के कारण ही आश्विन मास के कृष्णपक्ष का नाम कनागत पड़ गया क्योंकि सूर्य के कन्या राशि में आने पर पितृ पृथ्वी पर आकर अमावस्या तक घर के द्वार पर ठहरते हैं।

12 प्रकार के श्राद्ध

नित्य-श्राद्ध, नैमित्तिक- श्राद्ध , काम्य-श्राद्ध , वृद्धि-श्राद्ध, सापिण्ड-श्राद्ध, पार्वण-श्राद्ध , गोष्ठ-श्राद्ध, शुद्धि-श्राद्ध , कर्माग-श्राद्ध, दैविक-श्राद्ध, औपचारिक-श्राद्ध तथा सांवत्सरिक-श्राद्ध। सभी श्राद्धों में सांवत्सरिक श्राद्ध सबसे श्रेष्ठ है, इसे मृत व्यक्ति की तिथि पर करना चाहिए।

श्राद्ध में 7 महत्वपूर्ण वस्तुएं
दूध, गंगाजल, मधु, तसर का कपड़ा, दौहित्र, कुतप काल(दिन का आठवां मुहूर्त) और तिल।

लोहे का पात्र काम में नहीं ले

श्राद्ध में लोहे के पात्र का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए। सोने,चांदी, कांसे और तांबे के पात्र पूर्ण रूप से उत्तम हैं। केले के पत्ते में श्राद्ध भोजन सर्वथा निषिद्ध है। मुख्य रूप से श्राद्ध में चांदी का विशेष महत्व दिया गया है।


श्राद्धकर्म में ध्यान रखने योग्य बातें

-कम्बल, चांदी, कुशा, काले तिल, गो और दोहित्र की श्राद्ध में विशेष महत्ता बताई गई है।
-श्राद्ध में पिण्ड दान करते समय तुलसी का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। इससे पितृ प्रसन्न होते हैं।

-श्राद्ध में गो निॢमत वस्तुएं जैसे- दूध, दही, घी आदि काम में लेना श्रेष्ठ होता है। सभी धान्यों में जौ, तिल, गेंहू, मूंग, सावा, कंगनी आदि को उत्तम बताया गया है।
-आम, बेल, अनार, बिजौरा, नींबू, पुराना आंवला, खीर, नारियल, खालसा, नारंगी, खजूर, अंगूर, परवल, चिरौंजी, बैर, इन्द्र जौ, बथुआ, मटर, कचनार, सरसों इत्यादि पितृों को विशेष प्रिय होती हैं।