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प्यासों को पानी पिलाने के पुण्य पर आधुनिकता का साया

- शहर में स्थाई प्याऊ हुईं बंद, कई अतिक्रमण की शिकार - बोतलबंद पानी बना लोगों की पसंद - पुराना शहर, हरदेव नगर समेत पूरे शहर में जगह-जगह थीं स्थाई प्याऊ  

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अजमेर

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Dilip Sharma

May 05, 2022

प्यासों को पानी पिलाने के पुण्य पर आधुनिकता का साया

प्यासों को पानी पिलाने के पुण्य पर आधुनिकता का साया

मई का महीना, दोपहर दो बजे का समय। आसमान से मानो आग की बारिश हो रही है, धरती तप रही है। सूनी सडक़ पे चल रहे राहगीरों का गाला सूखा है। ऐसे में उनको ठंडा पानी मिल जाए तो यह उसके लिए अमृत से कम नहीं होगा। राजस्थान के पूर्वी भाग में क्षेत्र में बसे धौलपुर में भीषण गर्मी पड़ती है। पारा 46 डिग्री सेल्सियस पार कर जाता है। गर्म हवा के थपेड़े जानलेवा बन जाते हैं। कभी वक्त था जब धौलपुर में गर्मी के मौसम के शुरू होते मुख्य सडक़ों के किनारे राहगीरों के लिए प्याऊ खुल जाते हैं। एक जमाना था जब प्याऊ में हर तबके का आदमी, चाहे अमीर या गरीब, अपनी प्यास बुझाता था। अब, बदले समय में जब बोतलबंद पानी का जमाना है तो प्याऊ में सिर्फ कुछेक लोग, जो पानी खरीद नहीं सकते, वो ही अपना गाला तर हैं। धौलपुर में कभी गली-गली में स्थाई प्याऊ बनी हुई थीं, अब बदलते वक्त में आधुनिकता की दौड़, अनदेखी और लालच के कारण स्थाई प्याऊ का दौर लगभग समाप्त हो रहा है।

बुजुर्ग बोले- पुण्य का काम

धौलपुर के इतिहास के जानकार शिक्षाविद् अरविंद शर्मा कहते हैं कि पहले धौलपुर में कई रसूखदार लोग थे जो वे खूब प्याऊ लगवाया करते थे। आखिरकार प्यासे लोगों को मुफ्त में पानी पिलाना एक अच्छा और पुण्य का काम मन जाता है। धौलपुर नगर परिषद भी गर्मी के मौसम में अस्थाई याऊ शुरू करती है। वहीं, कुछ समाजसेवी व संगठन भी अस्थाई प्याऊ लगाते हैं।

बदला जमाना, तो बदले हालात

धौलपुर के वयोवृद्ध पंडित दुर्गादत्त शास्त्री कहते हैं कि प्याऊ का पानी एकदम ठंडा और साफ ही नहीं, सुगंधित भी होता था। किसी प्याऊ के पानी में बेला के फूलों की ख़ुशबू होती थी तो कहीं केवड़े की और कहीं गुलाब की। कुछ प्याऊ में तो लोगों को पानी के साथ खाने कुछ मीठा जैसे गुड़ या बताशा भी दिया जाता था। पुराने दिनों को याद करके वे कहते हैं तब बच्चों के लिए गुड़ या बताशा बहुत बड़ी चीज़ होती थी। कड़ी धूप में नंगे पैर बच्चे झुंड बना कर एक प्याऊ से दूसरे प्याऊ छोटे से गुड़ के टुकड़े के लिए दिन भर घूमा करते थे। आज भी कुछ प्याऊ खुलते तो हैं पर उनमें शायद ही कोई रुकता है।

अतिक्रमण का हुईं शिकार

धौलपुर शहर में हरदेव नगर चौराहा, नौगजा, पुराना शहर सिटी कोतवाली स्कूल के सामने, पुराना शहर सब्जी गली के सामने, टाउन चौकी के पास, सब्जी मंडी, इंफेंट स्कूल के पास, तोप तिराहा सहित अनेक स्थानों पर स्थाई प्याऊ थीं। इनमें से अधिकतर अतिक्रमण का शिकार हो गई हैं। कई स्थानों पर तो प्याऊ को दुकान या गोदाम में बदल दिया गया है। वहीं, अधिकतर पर दुकानदारों का कब्जा है।

बोतलबन्द पानी का वैश्विक बाजार

बोतलबंद पानी की पहली कम्पनी 1845 में अमरीका के मैनी शहर में लगी। इस कम्पनी का नाम था ‘पोलैंड स्प्रिंग बॉटल्ड वाटर कम्पनी’ था। 1845 से आज दुनिया में कई हजार कम्पनियां इस धंधे में लगी हुई हैं। बोतलबन्द पानी का यह कारोबार आज 100 अरब डॉलर से अधिक पर पहुंच गया है। भारत में बोतलबन्द पानी की शुरूआत 1965 में इटलीवासी सिग्नोर फेलिस की कम्पनी बिसलरी ने मुम्बई महानगर से की। शुरूआत में मिनरल वाटर की बोतल कांच की बनी होती थी।

गुम हो गया पानी के पुण्य का सरोकार

गर्म दुपहरी में पानी तलाशती आंखों को कुछ कदम चलने पर ठंडा पानी मिल जाए तो यह अमृत से कम नहीं होगा। भीषण गर्मी के इस दौर में उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र में ऐसा हाल हर शहर और कस्बे में देखा जा सकता है। पारा 46 डिग्री सेल्सियस पार कर जाता हो और गर्म हवा जानलेवा बन जाती है। गर्मी के मौसम शुरू होते ही मुख्य सडक़ों के किनारे राहगीरों के लिए अब प्याऊ अपवाद स्वरूप ही देखने को मिलती हैं। मुनाफे की बाजारवादी संस्कृति ने पानी पिलाने के पुण्य के सरोकार को बदल दिया है।

लोगों भी स्वास्थ्य के प्रति सावचेत

अब प्याऊ पर कोई सिर्फ मजबूरी में ही पानी पीना पसंद करता है। पानीजनित बीमारियों को लेकर लोग सावचेत हुए हैं, ऐसे में खुला या नल का पानी पीने वालों की संख्या बेहद कम है। कोरोना के कारण लोगों में भी स्वच्छता के प्रति जागरुकता आई है। ऐसे में स्थाई प्याऊ धीरे-धीरे चलन से बाहर होती चली गईं। अब गर्मी के मौसम में लगने वाली अस्थाई प्याऊ पर जरूर लोगों की आवाजाही रहती है।