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पीछे 300 फीट गहरी खाई, सामने दुश्मन के टैंक… फिर भी नहीं डगमगाए कदम, जंग के चश्मदीद रिटायर्ड कैप्टन रामचंद्र यादव की दास्तां

लद्दाख के 18 हजार फीट ऊंचे रेजांग लॉ में 18 नवंबर 1962 को जो हुआ, वह भारतीय सैन्य इतिहास का स्वर्ण अध्याय है। 87 वर्षीय रिटायर्ड कैप्टन रामचंद्र यादव आज भी उस सुबह को भूल नहीं पाते। रामचंद्र बताते हैं कि मुझे आज भी याद है 18 नवंबर 1962 की वो सुबह।

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कैप्टन रामचंद्र यादव व रेवाड़ी का युद्ध स्मारक जिस पर अंकित हैं 114 शहीद सैनिकों के नाम और शौर्य गाथा

(हरमिंदर लूथरा)

लद्दाख के 18 हजार फीट ऊंचे रेजांग लॉ में 18 नवंबर 1962 को जो हुआ, वह भारतीय सैन्य इतिहास का स्वर्ण अध्याय है। 87 वर्षीय रिटायर्ड कैप्टन रामचंद्र यादव आज भी उस सुबह को भूल नहीं पाते। रामचंद्र बताते हैं कि मुझे आज भी याद है 18 नवंबर 1962 की वो सुबह। मैं लद्दाख के 18 हजार फीट ऊंचे पहाड़ी दर्रा रेजांग लॉ में तैनात था। मैं भारतीय सेना की 13वीं कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी का हिस्सा था और रेडियो ऑपरेटर का जिम्मा संभाल रखा था। हम 120 सैनिक थे।

सभी सैनिक अहीरवाल (यादव) समाज के थे। हमारा नेतृत्व कर रहे मेजर शैतान सिंह (परमवीर चक्र विजेता) ने रात 3.30 बजे हमसे कहा- दुश्मन देश चीन ने हमला कर दिया है। हमारे पीछे 300 फीट गहरी खाई है और सामने दुश्मन के लड़ाकू टैंक। एक और रास्ता यहां से बच निकलने का भी है। बताओ क्या करना चाहिए? सभी सैनिकों ने एक साथ जवाब दिया- दुश्मन का सामना करेंगे, आप हुक्म दीजिए…और फिर इसके बाद हमने मोर्चा संभाल लिया।


हम कई दिन से चाय-बिस्किट पर जिंदा थे। हथियार भी सीमित थे। इसके बावजूद हमने हजारों चीनी सैनिकों का सामना किया और बहादुरी से लड़े। इस भीषण युद्ध में मेजर शैतान सिंह सहित हमारी कंपनी के 114 सैनिक शहीद हो गए… इतना कहते ही 87 साल के रिटायर्ड कैप्टन रामचंद्र यादव की आंखें नम और सांसें फूल जाती हैं। पास ही में खड़ा रामचंद्र का बेटा प्रमोद उन्हें संभालता है। प्रमोद भी सेना से रिटायर हो चुका है। रामचंद्र फिर अपनी बात शुरू करते हैं- मेरी रगों में आज भी वही खून दौड़ रहा है। मौका मिला, तो अपने सा​थियों की शहादत का बदला लूंगा… इतना कहते ही रामचंद्र की बूढ़ी आंखें लाल हो जाती हैं। हाथ की मुटिठ्यां गुस्से से ​भिंच जाती हैं।

युद्ध स्मारक पर अंकित हैं 114 शहीद सैनिकों के नाम और उनकी शौर्य गाथा

रेवाड़ी शहर में धारूहेड़ा चुंगी के पास बने रेजांग लॉ युद्ध स्मारक के तीन तरफ इस शुद्ध में शहीद हुए 114 सैनिकों के नाम और चौथी तरफ इनकी शौर्य गाथा अंकित है। यहां के केयर-टेकर गणेश यादव बताते हैं- हर साल 18 नवंबर के दिन इस स्मारक पर शहीदों की याद में रेजांगला शौर्य दिवस समारोह होता है। शहीदों की याद में भरने वाले इस मेले में वीरांगनाओं का सम्मान किया जाता है। इस बार भी अ​खिल भारतीय यादव महासभा अहीर की ओर से सुबह 9 बजे हवन और 10 बजे से सम्मान समारोह होगा। स्मारक की देख-रेख का जिम्मा रेजांगला (रेजांग लॉ) शौर्य समिति एवं ट्रस्ट का है। समिति के महासचिव नरेश चौहान एडवोकेट बताते हैं कि हमने अपने सैनिकों की वीरता के इतिहास को आज तक संभाल कर रखा हुआ है। वे बताते हैं कि 18 नवंबर को रेजांग लॉ में हुए इस युद्ध के 63 साल पूरे हो जाएंगे।

इस राह से गुजरने वाला हर शख्स यहां माथा टेकता है

हरियाणा-राजस्थान की सीमा से सटे मोहनपुर गांव के मुख्य रास्ते पर एक और बड़ा स्मारक बना हुआ है। बाहर से यह मंदिर जैसा नजर आता है। अंदर शहीद जयसिंह यादव की प्रतिमा लगी है। जयसिंह भी इसी युद्ध में शहीद हुए थे। इस राह से गुजरने वाला हर शख्स यहां माथा टेकता है। गांव की महिलाएं इसकी दहलीज पर सुबह-शाम दीपक जलाती हैं। इस स्मारक से कुछ ही फासले पर शहीद जयसिंह के घर के बाहर दूर से तिरंगा लहराता नजर आ जाता है। जयसिंह के पुत्र ओमप्रकाश यादव वर्तमान में सरपंच हैं। ओमप्रकाश बताते हैं कि जब मेरे पिता शहीद हुए, तब मैं बहुत छोटा था। अक्सर मेरी मां मुझे मेरे पिता की वीरता की कहानियां सुनाती थीं। ओमप्रकाश बताते हैं कि हमारे आसपास के कुछ और गांवों में इसी तरह के स्मारक बने हुए हैं।

रामचंद्र 18 साल 5 माह की उम्र में सैनिक के रूप में वर्ष 1957 में सेना में भर्ती हुए। ये 29 साल कुमाऊ रेजिमेंट में रहे और सितंबर 1985 को कैप्टन के पद से रिटायर हुए। रेवाड़ी से करीब 15 किमी दूर मोहनपुर में अपने दो बेटों व परिवार के साथ रहते हैं। वे भारतीय सेना में बॉक्सिंग व कबड्डी कोच भी रहे।