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किसी भी दल के लिए अलवर जिले के राजनीतिक समीकरण प्रदेश की सत्ता तक पहुंचने में होते हैं अहम

प्रदेश की सत्ता की सीढ़ी पूर्वी राजस्थान से होकर गुजरती है, यही कारण है कि भाजपा व कांग्रेस और तीसरे मोर्चे के दलों के लिए पूर्वी राजस्थान के जिले के खास है।

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राजस्थान की राजनीति में अलवर क्यूं है खास

राजस्थान की राजनीति में अलवर क्यूं है खास


अलवर. राजस्थान की राजनीति में अलवर यूं ही खास नहीं है, बल्कि यहां की सत्ता का गलियारा अलवर से ही गुजरता है। ज्यादातर मौकों पर अलवर में जिस दल का विधानसभा चुनाव में दबदबा रहा, प्रदेश की सत्ता की चाबी भी उसी के हाथ लगी। गत दो विधानसभा चुनाव में यह बात सही भी साबित हो चुकी है।
अलवर जिले को पूर्वी राजस्थान का सिंहद्वार माना जाता है। पूर्वी राजस्थान में अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली आदि जिले शामिल हैं। इन जिलों के विधानसभा चुनाव परिणाम राजनीतिक दलों के लिए खास मायने रखते हैं। पूर्वी राजस्थान में भी अलवर जिला राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, कारण है कि यहां 11 विधानसभा सीटें हैं। अलवर जिले के राजनीतिक समीकरण किसी भी दल के लिए प्रदेश की सत्ता तक पहुंचने में अहम होते हैं। भाजपा, कांग्रेस व तीसरे मोर्चे के नेताओं की नजर भी अलवर की राजनीति पर टिकी रहती है। यही कारण भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एवं तीसरे मोर्चे के नेता हनुमान बेनीवाल, बसपा सुप्रीमो मायावती समेत अन्य दल के नेता चुनाव के दौरान अलवर आते रहे है

2018 में कांग्रेस व 2013 में भाजपा रही भारी

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में अलवर जिले में भाजपा को मात्र दो ही सीटें मिली, जबकि कांग्रेस का यहां दबदबा रहा। कांग्रेस को इस चुनाव में यहां 5 सीटें मिली, बाद में दो बसपा से जीते विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए तथा दो निर्दलीय विधायकों ने भी कांग्रेस का साथ दिया। यानी अलवर जिले से कांग्रेस को 9 विधायकों का सहयोग मिला। इसी प्रकार 2013 के विधानसभा चुनाव में अलवर जिले में कांग्रेस को मात्र एक सीट पर संतोष करना पड़ा, वहीं भाजपा के खाते में 9 सीटें गई। वहीं एक सीट राजपा ने जीती। यानी भाजपा के सरकार बनाने में अलवर से 9 विधायकों का योगदान रहा। यही कारण है कि वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में भी प्रमुख दलों की नजर अलवर के चुनाव नतीजों पर लगी है।