अलवर नगर निगम 272 करोड़ का सफाई बजट प्रस्ताव तैयार कर फंस गया है। सरकार ने संज्ञान लेते हुए नगर निगम आयुक्त से जवाब मांगा है। लेखा कर्मियों के जरिए फाइलें तलब की हैं। ऐसे निगम की ओर से पूर्व में वित्तीय अनुमति के लिए भेजा गया प्रस्ताव भी अटक गया है। निगम जब तक इस प्रस्ताव का जवाब नहीं दे देता, तब तक सरकार इसके लिए कदम नहीं बढ़ाएगी।
वर्तमान में नगर निगम का सफाई खर्च सालाना करीब 15 करोड़ है। अचानक अफसरों ने इसे बढ़ाकर 37 करोड़ से ज्यादा कर दिया। इस तरह 7 साल का सफाई बजट 272 करोड़ का किया गया। इसकी वित्तीय स्वीकृति से लेकर निविदा जारी करने की अनुमति निगम के अफसरों ने डीएलबी से मांगी, लेकिन अब तक स्वीकृति नहीं मिली। जनता की गाढ़ी कमाई सफाई बजट में जा रही थी।
मामले को राजस्थान पत्रिका ने प्रमुखता से प्रकाशित किया। निगम के निवर्तमान पार्षद अजय पूनिया ने यह मामला सरकार तक भेजा। डीएलबी के उप निदेशक विनोद पुरोहित ने नगर निगम आयुक्त को निर्देश दिए हैं कि लगाए गए आरोपों की तथ्यात्मक रिपोर्ट डीएलबी को लेखाकर्मी के जरिए भिजवाएं। डीएलबी ने कहा है कि लगाए गए आरोप सही प्रतीत होते हैं। ऐसे में तत्काल फाइलें भेजें।
चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाया बजट: निगम के पूर्व सभापति अजय अग्रवाल का कहना है कि नगर निगम ने जिस तरह सफाई का बजट 272 करोड़ बनाया है, उसी बजट में 72 करोड़ की कटौती करके मैं 200 करोड़ में निर्धारित अवधि तक शहर को चकाचक करा सकता हूं। निगम ने यह बजट अनावश्यक व चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए तैयार किया है। यह शहर की जनता के साथ धोखा होगा। सरकार व बड़े नेताओं को मिलकर इस बजट प्रस्ताव को रोकना चाहिए। इतना पैसा खर्च करने के बजाय मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित होना चाहिए ताकि शहर स्वच्छ नजर आए।
वर्तमान में सफाई व्यवस्था की अवधि मार्च 2026 तक है। इसी साल नवबर-दिसबर तक निकाय चुनाव होने की संभावना है। इसके पश्चात भी सफाई अवधि के चार माह शेष रहेंगे। 9 माह पूर्व नवीन सफाई बजट की इतनी जल्दबाजी क्यों? ये निगम बोर्ड के गठन के बाद भी इस विषय में विस्तृत चर्चा व निर्णय हो सकता है।
एकीकृत सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सफाई व्यवस्था के लिए जिला कलक्टर की अध्यक्षता में बैठक 10 जून को शाम 4 बजे हुई। उसी दिन प्रस्ताव स्वीकृति के लिए उच्च स्तर पर भेज दिया गया, जबकि इस बैठक की कार्रवाई विवरण 16 जून को जारी किए गए। इससे यह प्रतीत होता है कि यह सपूर्ण प्रकरण पूर्व प्रायोजित है। इससे करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान सरकार को होगा।
आरपीपीटी एक्ट के तहत दो वर्ष से ज्यादा अवधि का टेंडर नहीं दिया जा सकता है, फिर भी 7 वर्ष की अवधि के लिए ठेका देने का प्रस्ताव बना दिया गया।
प्रस्तावित सफाई व्यवस्था के तहत 3 करोड़ 15 लाख रुपए मासिक खर्च के व्यय का अनुमान है, जबकि वर्तमान में संचालित सफाई व्यवस्था 1 करोड़ 20 लाख रुपए में हो रही है।
वर्तमान में निगम में प्रशासक नियुक्त है और प्रशासक केवल कार्य व्यवस्था के लिए होता है, जो कि नीतिगत निर्णय लेने के लिए अधिकृत नहीं है। नीतिगत निर्णय शहर हित में निर्वाचित बोर्ड की ओर से ही न्यायसंगत होगा।
7 वर्षों तक एक ही एजेंसी को कार्य देने से कार्य में लापरवाही, भ्रष्टाचार व भविष्य में जवाबदेही में कमी की संभावना प्रबल हो जाती है।
Published on:
24 Jun 2025 12:24 pm