
अलवर जिले की सबसे लम्बी नदी रूपारेल के बहाव क्षेत्र में होने वाले अतिक्रमणों को हटाने की तैयारी शुरू हो गई है। नदी के बहाव क्षेत्र में पक्के निर्माण, होटल, मकान और अवैध कब्जों को हटाया जाएगा, ताकि बारिश के दौरान पानी के बहाव में रुकावट नहीं आए।
रूपारेल नदी का पानी बारिश के सीजन में भरतपुर की मोती झील तक पहुंचता था, लेकिन अतिक्रमण होने की वजह से सीकरी के पास ही रुक जाता है। नदी किनारे अतिक्रमण को हटाने के लिए जल संसाधन विभाग ने एक करोड़ 45 लाख रुपए से सर्वे करवाने के टेंडर कर दिए है। इसका वर्कऑर्डर देना शेष है।
सर्वे करने वाली टीम नदी के बहाव में होने वाले अतिक्रमणों को चिन्हित करके विभाग को रिपोर्ट करेगी। उसके बाद जलदाय संसाधन विभाग और राजस्व विभाग के सहयोग से अतिक्रमण और नदी के बहाव क्षेत्र में होने वाले अवरोधों को हटाया जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि नदी के बहाव क्षेत्र से 50 मीटर दूरी पर निर्माण कार्य होने चाहिए।
रूपारेल नदी बरसाती नदी है। इस नदी का बारिश के दौरान नटनी के बारां से दो भागों में प्रवाह होता है। इसमें एक भाग जयसमंद बांध में जाता है। दूसरा हिस्सा भरतपुर जाता है। पानी को लेकर रियासतकालीन समझौता है कि इस नदी का 45 प्रतिशत पानी अलवर को और 55 प्रतिशत पानी भरतपुर को मिलेगा। इस नदी के ऊपर जयसमंद बांध, घाट खूंटेटा बांध, लक्ष्मणगढ़ का बांध और सीकरी के बांध में पानी पहुंचता है। पिछले साल अच्छी बारिश होने की वजह से नदी का पानी घाट खूंटेटा बांध से आगे पहुंच गया था।
रूपारेल नदी के प्रवाह क्षेत्र में नटनी के बारां से लेकर गोविन्दगढ़ तक अवैध बजरी की खानें चल रही है, जिसमें बारिश के दौरान पानी का प्रवाह रुकता है। जब एक बार नदी में पानी बहता है तो इसमें बने बजरी के गड्ढों में यह पानी समां जाता है। गौरतलब है कि अलवर में 1100 मिमी से ज्यादा बारिश हुई थी, जबकि अलवर की औसत बारिश 555 मिमी है। पिछले साल रूपारेल नदी का बहाव 7 फीट तक रहा।
Published on:
15 May 2025 11:57 am
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