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चामुंडा माता मंदिर की स्थापना के बाद बसा बीघोता गांव

दो भाइयों ने हैदराबाद से मूर्ति लाकर की मंदिर की स्थापना

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चामुंडा माता मंदिर की स्थापना के बाद बसा  बीघोता गांव

चामुंडा माता मंदिर की स्थापना के बाद बसा बीघोता गांव

अलवर. अलवर जिले की अंतिम सीमा में राजगढ़ पंचायत समिति के गांव बीघोता की स्थापना चामुंडा माता मंदिर की स्थापना के बाद में हुई है। चारों ओर पहाडिय़ें से घिरे चामुंडा माता का मंदिर जन-जन की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां प्रत्येक दिन माता के दर्शनों के लिए अलवर सहित दिल्ली, जयपुर, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, दौसा, करौली, सवाई माधोपुर एवं अन्य जगहों से श्रद्धालु पहुंचते हैं और माता के यहां हर मंगलवार और शनिवार एक या दो सवामणी की जाती है। माता के मंदिर पर वैशाख मास की पूर्णिमा को माता का दो दिवसीय मेला लगता है। ग्रामीणों ने बताया कि चामुंडा माता की मूर्ति स्थापित करवाने वाले दोनों भाइयों में से काला ने बीघोता व भोला ने कुंडला गांव बसाया था। जो दोनों ही गांव आज ग्राम पंचायत मुख्यालय हैं।


मंदिर का इतिहास

बीघोता गांव के बुजुर्ग ग्रामीण सत्यनारायण पांचाल, राधेश्याम मीणा व हजारी लाल मीणा बताते हैं कि यहां स्थित चामुंडा माता का मंदिर लगभग 1471 वर्ष पुराना है। मंदिर में माता की मूर्ति की स्थापना गांव के दो भाई काला एवं भोला ने हैदराबाद से लाकर की थी। उन्होंने बताया कि पहले चामुंडा माता को हीगाला देवी चामुंडा माता के नाम से जाना जाता था। मंदिर में तब से लगातार 24 घंटे देसी घी की अखंड ज्योति जलती रहती है।


गांव की कमेटी के जिम्मे है मंदिर की सार संभाल

बीघोता ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच सुरेश चंद पांचाल एवं समाजसेवी राकेश कुमार मीणा वीरपुर ने बताया कि मंदिर की देखदेख एवं सार संभाल के लिए ग्रामीणों ने एक कमेटी बना रखी है। यह कमेटी मंदिर में आने वाले चढ़ावे से मंदिर का जीर्णोद्धार व मंदिर निर्माण का कार्य करती है। मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं ने कई धर्मशालाएं एवं पानी की टंकी व मंदिर परिसर का विशाल मुख्य द्वार बनवाया है। ग्रामीण बताते हैं कि आज बीघोता गांव की पहचान चामुंडा माता के मंदिर के कारण दूरदराज तक फैली हुई है।