
Dangers in the tigers den at sariska
अलवर.
सरिस्का बाघ परियोजना क्षेत्र में भरने वाले पांडुपोल और लोकदेवता भतृज़्हरि के लक्खी मेले में हर वषज़् बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। ये आस्था का ज्वार है, जो आराध्य तक खिंचा चला आता है, लेकिन इस दौरान वन्यजीवों को होने वाली परेशानी से वन विभाग चिंतित है।
सरिस्का बाघ परियोजना में इस वक्त 14 बाघ-बाघिन हैं, इनमें ज्यादातर की टैरिटरी कालीघाटी, टहला, देवरी, उमरी, सिलीबेरी आदि क्षेत्रों में है। इनमें कालीघाटी क्षेत्र सरिस्का के कोर एरिया में शामिल है और मेले के दौरान इन्हीं स्थानों पर लोगों व वाहनों की आवाजाही ज्यादा रहती है। इससे बाघों को सुरक्षित स्थानों की ओर शरण लेनी पड़ती है। इसलिए वन विभाग को ऐसे प्रयास करने होंगे, जिससे लोगों की आस्था भी बनी रहे और वन्यजीवन पर भी संकट न आए।
क्या-क्या खतरे
1. वनस्पति को : मेले के दौरान सरिस्का स्थित फेंटा की पाल, उमरी तिराहा पर दो पहिया वाहनों की आवाजाही एवं पाकिंज़्ग के चलते जंगल के बड़े भाग में घास व अन्य छोटी वनस्पति को नुकसान पहुंचा।
2. पॉलीथिन व प्लास्टिक से परेशानी
मेले के दौरान प्रसाद व खाद्य सामग्री में पॉलीथिन व प्लास्टिक सामान का उपयोग भी वन्यजीवों के जीवन से खिलवाड़ का कारण बनता रहा है।
3. शिकारियों का भी रहता डर
भीड़ में शिकारियों को पहचानना वनकमिज़्यों के लिए खासा मुश्किल है। पहले भी शिकारी स्थानीय लोगों से मेल मिलाप बढ़ा बाघों का सफाया कर चुके हैं।
4. करीब 15 दिन रहती है आवाजाही : पांडुपोल मेला 3 दिन का रहता है, लेकिन करीब 15 तक लोगों की आवाजाही रहती है। इससे वन्यजीवों को टैरिटरी छोडऩी पड़ती है।
मानसून काल होता मैटिंग समय
जिस वक्त मेला होता है, उसी दौरान ज्यादातर वन्यजीवों का मैटिंग समय माना जाता है। यही कारण है कि मानसून के दौरान ज्यादातर पाकज़् तीन महीने के लिए बंद करने का प्रावधान है। प्रकृति मित्र संघ के निदेशक लोकेश खंडेलवाल का कहना है कि टैरिटरी सुरक्षित होने पर ही एसटी-2, एसटी-9 व 10 शावकों को तभी जन्म दे सकीं। जबकि मानवीय दखल के कारण बाघिन एसटी-3 व 5 अब तक शावक को जन्म नहीं दे सकी है।
सरिस्का में वन्यजीव
बाघ-बाघिन 14
पैंथर 60-70
चीतल 9,000
मोर 22-25 हजार
जरख 100
भीड़भाड़ के चलते जंगल में वन्यजीवों को परेशानी होती है। श्रद्धालुओं की भीड़ से वन्यजीवों को कम से कम परेशानी हो और वनस्पति को नुकसान नहीं हो, इसके सरिस्का प्रशासन प्रबंध करता है।
डॉ. गोविंद सागर भारद्वाज, सीसीएफ सरिस्का बाघ परियोजना
Published on:
31 Aug 2017 06:45 am
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