
मशहूर हॉलीवुड अभिनेता जॉन ट्रावोल्टा को उनकी फिल्मों व अन्य अभिनय के जरिए देखा और सुना होगा। उन्होंने अपने दोनों बच्चों को अनुशासन प्रणाली से ऐसा रूबरू कराया कि एक माह में ही परिणाम चौंकाने वाले आए। बच्चों में सहनशीलता बढ़ी। मोबाइल से लेकर टीवी से दूरी बढ़ गई।
यानी लाइफ डवलपमेंट गजब हुआ। कारण, बच्चों को खेलने के लिए पर्याप्त समय दिया। यही तरीका पेरेंट्स को भी अपनाना होगा, लेकिन उससे पहले अभिभावक खुद अनुशासन प्रणाली से गुजरें। यानी खुद मोबाइल से लेकर टीवी देखने की आदतों में सुधार करें।
यूके की स्टडी के मुताबिक 3 वर्ष की आयु से पहले स्क्रीन के संपर्क में आने वाले बच्चों में प्री-स्कूल आयु तक मायोपिया विकसित होने की आशंका अधिक होती है। मायोपिया एक नेत्र संबंधी स्थिति है, जो दूर की दृष्टि को धुंधला कर देती है। इसे निकट-दृष्टि दोष के रूप में भी जाना जाता है।
अलवर जीडी कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर शैलेंद्र सिंह का कहना है कि उनके विभाग में काउंसिलिंग सेल है। यहां बच्चों से लेकर युवाओं की काउंसिलिंग करते हैं। कुछ समय पहले हर दिन आठ से 10 केस आते थे। बच्चों की काउंसिलिंग की जाती थी। अब भी यह जारी है। काउंसिलिंग का असर भी हुआ। पेरेंट्स ने बच्चों के दाखिले गेम्स में करवाए और काफी हद तक बच्चों ने मोबाइल या अन्य स्क्रीन से दूरी बनाई।
स्क्रीन टाइम निर्धारित करें और उसका पालन करें।
अलग-अलग गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें।
बच्चे के साथ पेरेंट्स एक बॉन्ड बनाएं।
घर में टेक फ्री जोन बनाएं, जहां बच्चे डिजिटल उपकरण नहीं ले जा पाएं।
जीडी कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह का कहना है कि टीवी हो या फिर मोबाइल की स्क्रीन। दोनों ही बच्चों की आंखों पर विपरीत प्रभाव डाल रही हैं। बच्चों को चिड़चिड़ा बना रही हैं। गुस्सा आ रहा है। मानसिक अन्य प्रभाव पड़ रहे हैं।
कहते हैं एक समय में पूरे मोहल्ले के बच्चों की आवाज गलियों से खेलने की आती थी, लेकिन आज पेरेंट्स बाहर ही नहीं निकलते देते। इतना इनसिक्योर क्यों? बच्चों को खेलने दिया जाए या उनका दाखिला खेल मैदान में करवा दिया जाए, तो निश्चित परिणाम एक सप्ताह में देखने को मिलेंगे। बच्चे खुद मोबाइल से दूरी बनाएंगे।
अमरीका की एक स्टडी के मुताबिक किशोर प्रतिदिन औसतन साढ़े आठ घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं। वहीं 8 से 12 साल के बच्चे साढ़े पांच घंटे। चाहे वह स्मार्टफोन चलाएं या लैपटॉप-टैबलेट या फिर टीवी देखें। यह आंकड़े बीमार करते बचपन के हैं। हर अभिभावक चिंतित है, लेकिन पेरेंट्स खुद में सुधार नहीं लाते।
यानी वह खुद भी स्क्रीन पर घंटों बिता रहे हैं। स्टडी ये बताती है कि जो बच्चे कम उम्र में स्क्रीन के संपर्क में आ रहे हैं और जो बच्चे मोबाइल उपकरणों पर ज्यादा समय बिताते हैं, उनमें डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसे व्यवहार संबंधी समस्याएं विकसित होने का खतरा अधिक होता है, जो काफी चिंताजनक है।
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Published on:
17 Mar 2025 12:06 pm
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