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अलवर में मासूम को सीने से चिपका भटकता रहा उसका मामा, अस्पताल का स्टाफ कटवाता रहा चक्कर

दो वर्षीय बालक आर्यन को सामान्य अस्पताल में भर्ती कराने के लिए उसका मामा उसे सीने चिपका कर एक वार्ड से दूसरे वार्ड में चक्कर काटता रहा। अस्पताल का स्टाफ उसे चक्कर कटवाता रहा।

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अलवर

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kamlesh sharma

Aug 25, 2025

alwar hospital news

अस्पताल में भर्ती मासूम। फोटो पत्रिका

अलवर। दो वर्षीय बालक आर्यन को सामान्य अस्पताल में भर्ती कराने के लिए उसका मामा उसे सीने चिपका कर एक वार्ड से दूसरे वार्ड में चक्कर काटता रहा। अस्पताल का स्टाफ उसे चक्कर कटवाता रहा। बाद में एक चिकित्सक के हस्तक्षेप के बाद इस बच्चे को बेड उपलब्ध हो पाया। डीग जिले के नगर कस्बा निवासी अरशद का पुत्र आर्यन स्टैंड पर खड़ी बाइक पर बैठ कर खेल रहा था। संतुलन बिगड़ने से वह सिर के बल जमीन पर गिरा और बेहोश हो गया। परिजन उसे नगर के सरकारी अस्पताल में गए। चिकित्सकों ने उसे अलवर रेफर कर दिया।

आर्यन के पिता व मामा उसे लेकर शुक्रवार को सामान्य अस्पताल की इमरजेंसी में पहुंचे। चिकित्सक ने सिर की सीटी स्कैन कराने को लिख दिया। बाद में चिकित्सक ने बालक आर्यन को मेल मेडिकल वार्ड में भर्ती करने के लिए पर्ची पर लिख दिया। आर्यन को भर्ती कराने के लिए उसका मामा उसे गोद में लेकर संबंधित वार्ड में पहुंचा, तो स्टाफ ने बेड खाली नहीं होने की बात कहकर उसे दूसरे वार्ड में भेज दिया। वहां से उसे फिर से पहले वाले वार्ड में भेज दिया गया। इस दौरान परिजन मासूम को भर्ती करने के लिए गुहार लगाते रहे। करीब एक घंटे तक इधर-उधर चक्कर काटने के बाद ईवनिंग ड्यूटी पर सेवाएं दे रहे एक चिकित्सक के हस्तक्षेप के बाद बच्चे को भर्ती किया गया। शनिवार को इस बालक की हालत में सुधार होने पर अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

नाम की इमरजेंसी अक्सर स्टाफ रहता है गायब

सामान्य अस्पताल की इमरजेंसी का स्टाफ अधिकतर समय गायब रहता है। गंभीर मरीज आने पर चिकित्सक उसे भर्ती के लिए लिख तो देते हैं, लेकिन परिजन की सहायता के लिए कोई स्टाफ कर्मी वहां नहीं रहता। परिजन खुद मरीज को स्ट्रेचर से वार्ड में भर्ती कराने के लिए ले जाते हैं। जबकि इमरजेंसी में गंभीर मरीज को तुरंत भर्ती कर चिकित्सक के आर्ब्जवेशन में इलाज शुरू किया जाना जरूरी है, ताकि उसकी जान बचाई जा सके।

सामान्य अस्पताल की इमरजेंसी सिर्फ एक कमरे तक सीमित है, जहां सिर्फ चिकित्सक का परामर्श ही मिल पाता है। इसमें भी अधिकतर सीनियर चिकित्सकों के ड्यूटी से नदारद रहने के कारण रेजीडेंट चिकित्सक ही दिखाई देते हैं। चिकित्सा परामर्श के बाद मरीजों को स्ट्रेचर पर धक्के खाते हुए पुरानी बिल्डिंग में वार्ड तक पहुंचने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ता है। इसके बाद वहां से भी उसे दूसरे वार्ड में भेज दिया जाता है। ऐसे में व्यवस्थाओं में बदलाव जरूरी है।

सभी वार्ड प्रभारियों को निर्देश दिए हुए हैं कि यदि उनके वार्ड में बेड खाली नहीं है, तो वे दूसरे वार्ड में फोन कर तुरंत मरीज को वहां भर्ती कराएं। मरीज को भर्ती करने में देरी के मामले में संबंधित कर्मचारियों के खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

-डॉ. सुनील चौहान, पीएमओ, जिला अस्पताल