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10 करोड़ पौधे लगाने का रेकॉर्ड, मगर अलवर में 800 पेड़ों पर चल गई आरी

राज्य सरकार के हरियालो राजस्थान अभियान के तहत प्रदेश में 10 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य पूरा होने पर पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री संजय शर्मा ने तीन दिन पहले मुख्यमंत्री से मुलाकात कर उन्हें इस रेकॉर्ड की फोटोप्रति सौंपी।

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प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो - पत्रिका)

राज्य सरकार के हरियालो राजस्थान अभियान के तहत प्रदेश में 10 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य पूरा होने पर पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री संजय शर्मा ने तीन दिन पहले मुख्यमंत्री से मुलाकात कर उन्हें इस रेकॉर्ड की फोटोप्रति सौंपी। अब वन राज्यमंत्री के खुद के शहर अलवर में पेड़ काटे जा रहे हैं। नटनी का बारा से ढाई पैड़ी तक पीडब्ल्यूडी एनएच सड़क चौड़ीकरण का काम कर रहा है। इसके दोनों ओर 14 किमी क्षेत्र में 800 पेड़ आ रहे थे।

इनकी आयु 10 साल से लेकर 90 साल बताई जा रही है। ये पेड़ विभिन्न प्रजातियों के थे। पीडब्ल्यूडी ने अलवर वन मंडल से अनुमति ली और 800 पेड़ों को काटने की हरी झंडी मिल गई। वन विभाग ने इसके बदले 1.40 करोड़ रुपए जमा कराए। उसके बाद कई दिन से पेड़ों की कटाई दिन-रात चल रही है। पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि इसमें तमाम प्रजाति के पेड़ ऐसे थे, जिनको ट्रांसलोकेट किया जा सकता था, लेकिन विभाग ने यह कदम नहीं उठाया।

क्या होता है ट्रांसलोकेट?

ट्रांसलोकेट का मतलब है पेड़ों को दूसरी जगह लगाना या शिफ्ट करना। आमतौर पर किसी प्रोजेक्ट या सड़क निर्माण के दौरान यह प्रक्रिया अपनाई जाती है। पेड़ों को ट्रांसलोकेट करने का अर्थ है उन्हें काटकर दूसरी जगह लगाना, ताकि वे जीवित रह सकें।

हाईकोर्ट ने ये दिए थे आदेश

बहरोड़-नीमराणा मार्ग के चौड़ीकरण के कारण सैकड़ों पेड़ों को काटा जा रहा था। इसी के खिलाफ अलवर के पर्यावरण प्रेमी हाईकोर्ट पहुंच गए थे। वर्ष 2019 में ही हाईकोर्ट ने आदेश जारी किए थे कि 5500 पेड़ों में से जितने पेड़ ट्रांसलोकेट किए जा सकते हैं, करें। उसके बाद वर्ष 2022 में भी हाईकोर्ट ने इसको लेकर आदेश जारी किए थे। पर्यावरण प्रेमियों से कहा था कि वे जरूरत पड़े तो सीधे हाईकोर्ट आएं। पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि कोर्ट के आदेश विभागों के लिए मायने नहीं रखते और ट्रांसलोकेट की जगह पेड़ काट दिए गए।

पीडब्ल्यूडी ने मार्ग चौड़ीकरण की राह में आ रहे पेड़ों की कटाई के लिए अनुमति मांगी थी। बाकी कटाई का कार्य व्यापार मंडल डीएफओ कार्यालय जयपुर से किया जा रहा है। ट्रांसलोकेट विशेष प्रजातियां की होती हैं, ये पेड़ ट्रांसलोकेट नहीं किए जा सकते थे। - राजेंद्र कुमार हुड्डा, डीएफओ अलवर वन मंडल