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कबूतरों से फैल रही सांस की बीमारी, एक्सपर्ट्स ने बताया… फेफड़ों में बन सकते हैं जाले

पुराने दौर में कबूतर चिट्ठियों का आदान प्रदान कर संदेशवाहक के तौर पर काम किया करते थे, लेकिन हाल ही में हुई एक रिसर्च में सामने आया है कि कबूतरों के लगातार संपर्क में रहने से फेफड़े और सांस संबंधी कई तरह की गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।

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पुराने दौर में कबूतर चिट्ठियों का आदान प्रदान कर संदेशवाहक के तौर पर काम किया करते थे, लेकिन हाल ही में हुई एक रिसर्च में सामने आया है कि कबूतरों के लगातार संपर्क में रहने से फेफड़े और सांस संबंधी कई तरह की गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार कबूतरों से अतिसंवेदनशीलता न्यूमोनाइटिस फैलने का भी खतरा रहता है। यह ऐसी स्थिति है, जिसमें फेफड़ों के ऊतकों में सूजन आने से जब आप किसी विशेष पदार्थ को सांस के जरिए अंदर लेते हैं, तो शरीर में एक एलर्जी प्रतिक्रिया होती है। आमतौर पर यह धूल, फफूंद या अन्य पदार्थों के संपर्क में आने से होती है।

सांस लेने में तकलीफ

वहीं, कबूतरों के सम्पर्क में आने से उनके मल और पंखों की धूल में मौजूद एवियन एंटीजन के संपर्क में आने से यह बीमारी होती है। इसमें मरीज को सांस लेने में तकलीफ, खांसी, थकान और बुखार जैसे लक्षण महसूस होने लगते हैं। अगर, इसका समय पर इलाज न कराया जाए, तो यह गंभीर रूप ले सकती है और मरीज को ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ सकती है।


कबूतरों से रेस्पिरेटरी डिजीज उनके अपशिष्ट पदार्थ एवं पंख के इनहेलेशन के द्वारा होती है। इसमें एर्जजन, बैक्टीरिया और फंगई होते हैं। जिससे हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस स्टोप्लाइजमोसिस एवं अन्य फेफड़ों के संक्रमण हो सकते हैँ। इस बीमारी से बच्चे व बुजुर्ग सहित वे लोग अधिक प्रभावित होते हैं, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इसके लक्षण भी अलग-अलग मरीज में हल्के से लेेकर अत्यधिक गंभीर तक हो सकते हैं। वहीं, बीमारी का समय पर इलाज नहीं लिया जाए तो यह गंभीर रूप ले सकती है। -डॉ. भवानी शंकर वर्मा, जनरल फिजिशियन, सामान्य अस्पताल, अलवर

लगातार संपर्क में रहने से हो सकता है खतरा

शोध के अनुसार कबूतरों के सम्पर्क में रहना विशेषकर बंद जगहों पर, फेफड़ों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इसके कारण हाइपरसेंसिटिविटी न्यूनाइटिस नामक बीमारी हो सकती है। जिसका समय पर इलाज नहीं होने पर यह आईएलडी और फाइब्रोसिस में बदल जाती है और स्थायी रूप से नुकसान पहुंचाती है। चिकित्सकों के मुताबिक आईएलडी फेफड़ों की एक गंभीर बीमारी है।

शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह कम

इसके कारण व्यक्ति के शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह कम हो जाता है। साथ ही सांस संबंधी कई समस्याएं होने लगती हैं। इसके अलावा कई बार सूखी खांसी और थकान जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं। वहीं, सिकुड़े हुए फेफड़ों को वापस ठीक तो नहीं किया जा सकता, लेकिन सही समय पर रोग की पहचान करने के बाद नियमित दवा और परहेज की मदद से बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।

हाइपरसेंसेटिव निमोनाइटिस रोग मुख्य रूप से किसान और पक्षी प्रेमी लोगों में पाया जाता है। इस बीमारी में मुख्यत: फेफड़ों में कबूतर की गंदगी, पंखों की धूल में पाए जाने वाले प्रोटीन वाले तत्व से एलर्जिक रिएक्शन होती है, जिसके कारण मुख्यत: खांसी चलना एवं सांस की तकलीफ पैदा होती है। इसके अलावा अन्य लक्षणों में छाती में जकड़न, बुखार होना शरीर में दर्द होना पाया जाता है।

फेफड़े खराब होने की आशंका

इस बीमारी का पता फेफड़ों की हाई रेजोल्यूशन सीटी स्कैन के द्वारा लगाया जाता है। शुरुआती स्टेज में बीमारी का पता लगने पर संबंधित एलर्जी किस वजह से हो रही है, इसका पता करके बीमारी का इलाज आसानी से कर सकते हैं। लंबे समय तक कबूतर की गंदगी, पंखों की धूल के संपर्क में रहने से फेफड़े खराब होने की आशंका भी हो सकती है। -डॉ. विष्णु गोयल, चेस्ट फिजिशियन, सामान्य अस्पताल, अलवर

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