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हर दिन खतरे में नौनिहाल, आखिरकार क्यों है स्कूल व जिला प्रशासन बेखबर

सरकार ने स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर ढेरों नियम तो बना दिए, लेकिन इनकी पालना की ओर किसी का ध्यान नहीं है। इसका नतीजा यह है कि ज्ंयादातर स्कूलों में बाल वाहिनियों की जगह वैन, टैम्पो आदि दौड़ रहे हैं।

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भोपाल

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aniket soni

Aug 03, 2016

सरकार ने स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर ढेरों नियम तो बना दिए, लेकिन इनकी पालना की ओर किसी का ध्यान नहीं है। इसका नतीजा यह है कि ज्ंयादातर स्कूलों में बाल वाहिनियों की जगह वैन, टैम्पो आदि दौड़ रहे हैं। इनमें बच्चों को पशुओं की भांति ठूस-ठूस कर भरा जाता है। ना बस्ता रखने की जगह होती है और ना बैठने की।

अलवर में परिवहन विभाग ने बाल वाहिनी के नाम पर लगभग 1500 वाहनों को परमिट दे रखा है, लेकिन इनमें स्कूलों में चलने वाली बसें नाममात्र की हैं। ज्यादातर स्कूलों में बच्चों को लाने-ले-जाने के काम में प्राइवेट वैन व टैम्पो लगे हैं। इससे नौनिहालों के जीवन को खतरा बना हुआ है।

परिवहन विभाग के अनुसार बच्चों को घर से सुरक्षित स्कूल लाने एवं वापस घर पहुंचाने के काम में लगी बाल वाहिनी का रंग पीला तथा उस पर स्कूल का नाम लिखा होना चाहिए। बाल वाहिनी के चालक के पास वाहन चलाने का कम से कम पांच साल का अनुभव होना चाहिए। बाल वाहिनी चालक का फोटो युक्त पहचान पत्र भी होना चाहिए। इस पर वाहन का पंजीयन क्रमांक एवं चालक के लाइसेंस की जानकारी होनी चाहिए। वाहन पर बालवाहिनी की पट्टिका लगी होनी चाहिए।

नियम में चालक के वर्दी भी निर्धारित की गई है। बालवाहिनी की जगह टैम्पो व वैन में बच्चों के स्कूल जाने के लिए पुलिस व प्रशासन जितने जिम्मेदार हैं, उतने ही उनके अभिभावक भी हैं। बच्चों को स्कूल भेजने से पहले अभिभावक टैम्पों में बच्चों की संख्या आदि पर ध्यान नहीं देते। इसका फायदा टैम्पो व वैन संचालक उठाते हैं। वे चंद पैसों के लालच में क्षमता से अधिक बच्चों को वाहिनियों में बैठाकर स्कूल ले जाते हैं। इससे हमेशा हादसे की आशंका बनी रहती है।

ये हैं हालात

जिले में बाल वाहिनियों के नाम पर दौड़ रहे ज्यादातर वाहनों में गैस किट अथवा सिलेण्डर लगा हुआ है। इससे कभी भी हादसा हो सकता है। इतना ही नहीं इन वाहनों के चालक बच्चों को जल्द स्कूल छोडऩे के फेर में रास्ते के स्पीड़ ब्रेकर व गड्ढ़ों तक को नहीं देखते। इसके चलते कई बार बच्चों के बस्ता, बोतल आदि भी रास्ते में गिर जाते हैं। कई बार छोटे व मासूम बच्चे भी गिरकर घायल हो जाते हैें। मंगलवार को आग में स्वाह हुई स्कूली वैन में भी गैस किट थी। गनीमत यह रही कि हादसे के समय उसमें गैस नहीं थी।

अवैध रीफिलिंग का पनपा कारोबार

स्कूलों में लगी ज्यादातर प्राइवेट वैनों में गैस किट लगी हुई है। इससे शहर में अवैध रिफिलिंग का कारोबार भी पनप रहा है। दरअसल, इन किटों में नियमानुसार भरवाए जाने वाली गैस काफी महंगी पड़ती है। इसकी जगह ज्यादातर वाहन चालक घरेलू गैस सिलेण्डरों से रिफिलिंग करते हैं। इससे अवैध रिफिलिंग का कारोबार भी काफी फलफूल रहा है।

विजयवीर यादव जिला परिवहन अधिकारी अलवर ने बताया कि क्षमता से अधिक बच्चों को लेकर जाने वाली वाहिनियों के खिलाफ समय-समय पर कार्रवाई की जाती है। जिन वाहिनियों का कमर्शियल इस्तेमाल हो रहा है। उन पर जुर्माना लगाया जाता है।

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