
थानागाजी. बुजुर्ग लोग अब भी थानागाजी को गाजीकाथाना ही बोलते हैं। जैसा कि इसके नाम से पता चलता है। बताया जाता है कि मुगल शासकों के दौरान 16वीं शताब्दी के करीब कुछ समय तक थानागाजी क्षेत्र गाजी खां के नियंत्रण में रहा था। इसके चलते कस्बे के नाम थानागाजी पड़ा।
कस्बे के बुजुर्ग बताते हैं कि थानागाजी का किला उस समय छोटे स्वरूप में था। उसमें गाजी खां के साथ उसकी बटालियन रहती थी। 18वीं सदी में अलवर के पूर्व राजा राव प्रतापसिंह ने थानागाजी के किले का निर्माण कराया। अलवर-जयपुर मार्ग पर बने इस किले के चारों तरफ़ परकोटा है। जिसके कांकवाड़ी, दिल्ली और परसावाली तीन द्वार है। किले की सुरक्षा को लेकर चारों तरफ़ कच्ची खाई थी। अरावली पर्वतमाला और सरिस्का के पास होने से यह किला रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था।इतिहास के जानकारों अनुसार गाजी खां ने कस्बे की तहसील के पास पुराने थाने में अपना थाना बनाया था, इसी कारण वर्तमान थानागाजी काे गाजीकाथाना भी कहते हैं। गाजी खां ने किले में बारूद का भंडारण किया था। उसकी रखवाली को बटालियन के साथ रहता था। किले में टांके थे, जहां तोप के लिए गोले बनाए जाते थे। बारूद निकालते समय हुए धमाके से किला खंडहर भी हो गया था। 8 अक्टूबर 1920 के बाद से यह किला खंडहर ही है। कस्बे के पुराने बाज़ार के परसावाली दरवाजे के पास तुर्कियाली कुआं है। जानकारी के अनुसार सन् 1996 में पुरातत्व विभाग ने तुर्कियाली कुएं की ख़ुदाई कराई थी। दुहार चौगान निवासी 62 वर्षीय कैलाश बोहरा ने बताया कि इस कुएं में सैकड़ों मानव कंकाल, परसे और कुल्हाड़ी आदि हथियार बरामद किए थे।
Updated on:
20 Sept 2025 12:41 am
Published on:
20 Sept 2025 12:40 am
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