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Video : किसानों ने औने-पौने दाम पर बेच दिया 80 प्रतिशत गेहूं, अब समर्थन मूल्य पर खरीद

इस बार अन्नदाता पर भगवान की तो खूब मेहरबानी रही लेकिन, सरकार की अनदेखी ने उसकी खुशी छीन ली। अलवर जिले में बम्पर पैदावार के बावजूद समर्थन मूल्य पर खरीद तब शुरू हुई जब 80 प्रतिशत किसान फसल बेच चुका है।

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इस बार अन्नदाता पर भगवान की तो खूब मेहरबानी रही लेकिन, सरकार की अनदेखी ने उसकी खुशी छीन ली। अलवर जिले में बम्पर पैदावार के बावजूद समर्थन मूल्य पर खरीद तब शुरू हुई जब 80 प्रतिशत किसान फसल बेच चुका है।

समर्थन मूल्य तो 1625 रुपए प्रति क्विंटल तय हुआ लेकिन किसानों का गेहूं व सरसों खरीदी ही नहीं गई। किसान को मजबूरी में औने-पौने दामों में उत्पाद बेचना पड़ा। एक मोटे अनुमान के अनुसार किसानों को प्रति क्विंटल 50 से 150 रुपए का नुकसान हुआ है।

वहीं सरसों की फसल बाजार में आए डेढ़ से दो माह हो चुके हैं और गेहूं की फसल भी ज्यादातार किसानों ने करीब 20 से 25 दिन पहले ही निकाल ली। इसके बाद अब राजफैड ने अलवर जिले के 15 केन्द्रों में से मात्र चार केन्द्रों पर गेहूं समर्थन मूल्य पर खरीदना शुरू किया है।

गौरतलब है कि अलवर जिला सरसों उत्पादन का हब है। पिछले साल अलवर जिले में 2 लाख 49 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में सरसों की बुवाई की गई। इस बार रकबा और अधिक था। इसी तरह गेहूं की बुवाई भी 2 लाख 15 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में हुई।

दोनों फसलों का अच्छा पकाव आया और पैदावार भी बम्पर हुई। किसानों की खुशी उस समय खत्म होती गई जब सरकार ने समर्थन मूल्य पर गेहूं व सरसों की खरीद नहीं की। मार्च माह में बेमौसम की बरसात की दस्तक पर किसानों ने सरसों व्यापारियों को सस्ते भाव में बेच दी।

किसानों को नुकसान

जिले की कृषि उपज मंडियों में सरसों 2900 रुपए से 3500 रुपए प्रति क्विंटल जबकि गेहूं 1525 से 1550 रुपए प्रति क्विंटल तक बिका। यदि किसानों को समर्थन मूल्य का भाव मिलता उनकी झोली में करोड़ों रुपए और आते। गेहूं का समर्थन मूल्य 1625 रुपए और सरसों का समर्थन मूल्य 3700 रुपए रखा गया है।

गत वर्ष भी खरीद नहीं

पिछले साल भी जिले के किसानों से इसी तरह का धोखा हुआ था। किसान इन्तजार करते रहे लेकिन समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद देर से हुई। कुछ भाव भी कम रखे गए। इस तरह किसान लगातार दूसरे साल मार झेल रहा है।

दो-दो केबिनेट मंत्री फिर खरीद नहीं

अलवर में दो-दो केबिनेट मंत्री होने के बावजूद किसानों को मायूस होना पड़ा। सरकार ने समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद तब शुरु की है जब किसान अपनी उपज का 80 प्रतिशत माल बेच चुके हैं जबकि सरसों की तो समर्थन मूल्य पर खरीद ही नहीं हुई।

दो बार टेण्डर किए गए

केन्द्र सरकार भारतीय खाद्य निगम के जरिए समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदती हैं। जिसमें नोडल एजेंसी राजफैड है। गेहूं खरीद के लिए दो बार टेण्डर किए हैं। पहली बार टेण्डर में रेट अधिक होने के कारण दुबारा से टेण्डर लिए गए। जिसके कारण विलम्ब होता रहा।

लिख दिया, यहां नहीं आ रहे किसान बेचने

राजफैड के क्षेत्रीय अधिकारी रूप सिंह का कहना है कि अलवर जिले के लक्ष्मणगढ़, राजगढ़, बडौदामेव और रैणी में ही खरीद प्रारम्भ हो पाई है। यहां अभी तक 21 हजार कट्टे ही खरीदे हैं। अलवर, बानसूर, मालाखेड़ा और नारायणपुर में खरीद इसलिए प्रारम्भ नहीं की गई है कि यहां किसान गेहूं बेचने ही नहीं आ रहे हैं। अलवर जिले में अन्य केन्द्रों बहरोड़, रामगढ़, बहरोड़, खैरथल और तिजारा में समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद का अभी तक कोई निर्णय नहीं हो सका है।

चांद किरण यादव किसान नेता ने बताया कि यदि समय रहते किसानों की सरसों और गेहूं की खरीद होती तो उन्हें करोड़ों का लाभ होता। सरकार ने किसानों के हितों का ध्यान नहीं रखा।

अनिल गुप्ता अध्यक्ष केडल गंज व्यापारिक संचालन समिति अलवर ने बताया किइस बार सरसों की समर्थन मूल्य पर खरीद होती तो किसानों को इसका लाभ मिल सकता था। अलवर सरसों की मुख्य पैदावार के रूप में जाना जाता है।

रामपाल जाट राष्ट्रीय अध्यक्ष किसान महापंचायत ने बताया कि न्यूनतम व समर्थन मूल्य को सरकार गारंटेड मूल्य बताती है। लेकिन खरीद केन्द्र भी ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहे हैं। दो माह के लिए खरीद होती है, जबकि साल भर होनी चाहिए। 2013 में अलवर जिले को नोडल केन्द्र बना सभी जीएसएस पर खरीद करना शुरू किया। उसे भी बन्द कर दिया।
रूप सिंह राजफैड के क्षेत्रीय अधिकारी ने बताया किअलवर जिले के चार केन्द्रों पर गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीद शुरु हुई है। सरसों की समर्थन मूल्य पर खरीद के कोई आदेश नहीं मिले हैं।

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