
ambedkar nagar
अम्बेडकर नगर. गरीबी की लाचारी से तो आदमी लड़ कर जीवन यापन कर सकता है, लेकिन गरीबी के साथ साथ अगर शारीरिक लाचारी हो तो जीवन नरक बन जाती है। एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जिसमे अपनी पैदाइश के समय से अपने दोनों पैरों से पूर्ण रूप से विकलांग एक बेटी, जिसकी उम्र 18 साल पूरी हो चुकी है, की लाचारी देखकर कलेजा मुंह को आ जाता है और कोई भी इस बिटिया को देखने के बाद एक बार यही कहेगा कि काश प्रकृति ने इसके साथ ऐसा मजाक न किया होता। बचपन मे जब गांव के सारे बच्चे दौड़ते, कूदते और खेलते रहते थे, तब यह बिटिया जमीन पर घिसटती हुई खुद को कोशा करती थी और आज जब यह 18 साल की बालिग हो चुकी है साथ ही सब कुछ जानने समझने लगी है तो उसके दुखों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
यह कहानी जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर जलालपुर तहसील क्षेत्र के रुकुनुद्दीनपुर मंझनपुर गांव का है, जहाँ की 18 साल की यह बिटिया दीक्षा के दोनों पैर पैदा होने के समय से ही ठीक नही थे। परिवार में गरीबी के कारण उसका इलाज का भी कोई उपाय नही ढूंढा गया, लेकिन उसकी देखभाल उसके माता पिता लगातार करते चले आ रहे हैं। मां बाप की देखभाल इस बेटी को अब ऐसा लगने लगा है, जैसे वह इन पर बोझ बनी हुई है और इसी वजह से वह ऐसी जिंदगी से अच्छी मौत को मानने लगी है।
सरकारी उपेक्षा के कारण परिवार में हताशा
सरकार की तरफ से ऐसे लोग जो शारीरिक रूप से अपंग हैं, उन्हें दिव्यांग की संज्ञा दी गई है और उनके लिए विकलांग पेंशन के साथ साथ अन्य सुविधाएं दिए जाने का निर्देश है, लेकिन इस बिटिया की हालत और परिवार की गरीबी को देखने के बावजूद न तो जनप्रतिनिधियों और न ही प्रशासनिक अधिकारियों को इस परिवार पर कोई तरस आता है। घासफूस और छप्पर के मकान में रहने वाले इस परिवार के पास गरीबी रेखा से नीचे का राशनकार्ड तो जरूर बना है, लेकिन सरकार की आवास, शौंचालय या अन्य किसी योजना का कोई लाभ इस परिवार को नही मिल सका है।
सबसे ज्यादा तकलीफ इस लाचार बिटिया को उस समय होती है, जब पैरों की लाचारी के बावजूद उसे खेतों में खुले में शौंच के लिए जाड़ा गर्मी और बरसात हर मौसम में जाना पड़ता है। दीक्षा खुद ही बताती है कि उसने ग्राम प्रधान से स्वयं कई बार एक शौंचालय के लिए मांग की, लेकिन उनकी तरफ से केवल आश्वासन दिया जाता है।
जातीय व्यवस्था के कारण नहीं मिलता योजनाओं का लाभ
यह कोई आवश्यक नही है कि गरीब केवल दलित और पिछड़ी जातियों में ही हो सकते है। गरीबी की समस्या से तमाम सवर्ण जाति के लोग भी ग्रसित हैं। यही समस्या इस बिटिया के परिवार की भी है। ब्राम्हण जति की इस बिटिया को सरकार की योजनाओं का लाभ केवल इस लिए नही मिल पाता है, क्योंकि सवर्ण होना पात्रता को प्रभावित कर देता है। दीक्षा के पिता सच्चिदानंद उपाध्याय का कहना है कि ब्राम्हण होना ही उनकी सबसे बड़ी समस्या बन गई है और इसी वजह से गरीब होने के बावजूद उन्हें सरकार की तरफ से गरीबों के लिए चलाए जा रहे विभिन्न योजनाओं का लाभ उनके परिवार को नही मिल पा रहा है। उन्होंने बताया कि शौंचालय की मांग के लिए प्रधान और अधिकारियों के कई चक्कर लगाए, लेकिन सिवाय आश्वासन के कुछ नही मिला।
बिटिया की माँ आरती का कहना है कि गरीबी में भी वह बेबस और लाचार बेटी की पूरी देखभाल करती हैं, लेकिन उनको उस समय बहुत तकलीफ होती है, जब उनकी बेटी दीक्षा खुद को मां बाप पर बोझ समझते हुए यह कहती है कि ऐसी जिंदगी से अच्छा है कि उसे मौत आ जाय। आरती बताती हैं कि गांव में बहुत परिवारों को सरकारी अनुदान से शौंचालय मिला है, लेकिन वर्तमान और पिछले दोनों प्रधान से लगातार शौंचालय बनवाने का अनुरोध किये जाने बावजूद उन्हें शौंचालय की सुविधा नही दी गई।
कहाँ हैं सरकार के दावे
सरकार की तरफ से विकलांग पुनर्वास योजना संचालित की जाती है, जिसके तहत शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए पेंशन, विकलांग उपकरण के साथ साथ अन्य सुविधाएं भी दी जाती हैं, लेकिन दीक्षा सरकार की कोई योजना नही पा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नारा है, 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ', लेकिन इस बेटी को कोई सुविधा न मिलना प्रधानमंत्री के नारे का भी मजाक उड़ाता दिखाई पड़ रहा है और शायद इसलिए अपने माँ बाप की यह लाडली खुद को बोझ समझ जिंदगी से बेहतर मौत को समझने लगी है।
Updated on:
04 Jun 2018 12:36 pm
Published on:
04 Jun 2018 12:12 pm
बड़ी खबरें
View Allअम्बेडकर नगर
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
