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डॉक्टर बोले- जब तक महिलाएं पहुंचती हैं तब तक हो चुकी होती है काफी देर, सिर्फ बायोप्सी से ही होती है इस बीमारी की पुष्टि

Breast cancer: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की कार्यशाला में स्तन कैंसर बीमारी पर डॉक्टरों ने की चर्चा, प्रारंभिक अवस्था में ही पहचान कर लिए जाने की दी सलाह

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डॉक्टर बोले- जब तक महिलाएं पहुंचती हैं तब तक हो चुकी होती है काफी देर, सिर्फ बायोप्सी से ही होती है इस बीमारी की पुष्टि

Doctors

अंबिकापुर. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) अंबिकापुर व एनएचएमएमआई रायपुर के संयुक्त तत्वावधान में महिलाओं में होने वाली जानलेवा कैंसर के संबंध में कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में कैंसर विशेषज्ञ द्वारा जानकारी दी गई। प्रतिवर्ष स्तन कैंसर से देश में डेढ़ से दो लाख महिलाएं प्रभावित होती हैं, इससे काफी महिलाओं की मृत्यु इस बीमारी से हो जाती है।

स्तन कैंसर (Breast cancer) महिलाओं में पाये जाने वाला सर्वाधिक कैंसर में एक है। जानकारी के अभाव में महिलाएं जब तक इलाज के लिए आती है, उस समय तक काफी देर हो चुकी होती है। स्तन कैंसर की कोशिका पूरे शरीर में फैल चुकी रहती है।


कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. सिद्वार्थ ने बताया कि कीमोथेरेपी ऐसे स्थिति में कारगर सिद्ध होती है। कैंसर सर्जन डॉ. मउ राय ने स्तन कैंसर का प्रमुख कारण वंशानुगत बताया और कहां यदि किसी भी महिला को स्तन कैंसर है तो उसके परिवार की महिला सदस्य को स्तन कैंसर होने की संभावना ज्यादा रहती है।

स्तन में गठानों को होना, ज्यादा उम्र में बच्चों को जन्म देना, मीनोपॉज (मासिक धर्म का बंद होना) का देर होना जैसी स्थिति में स्तन कैंसर की संभावना रहती है। 40 वर्ष की उम्र से ज्यादा महिलाओं में स्तन कैंसर ज्यादा पाया जाता है। स्वत: स्तन जांच व मेमोग्राफी से इसे आरंभिक अवस्था में पहचान किया जाता है।

महिलाओं को चाहिए कि यदि किसी भी प्रकार की असामान्य परिवर्तन स्तन में महसूस करती है तो चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें, अन्यथा स्तन कैंसर की पहचान में देरी होने पर ये जानलेवा व लाइलाज बीमारी बन जाती है। कार्यशाला में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के 70 से ज्यादा चिकित्सक उपस्थित थे।


बायोप्सी से ही होती है पुष्टि
डॉ. राय ने बताया कि स्तन कैंसर की पुष्टि केवल बायोप्सी (Biopsy) से की जानी चाहिए, अन्य जांच केवल कैंसर की संभावना व्यक्त करते है। स्तन कैंसर के आरंभिक दौर के इलाज में ऑपरेशन द्वारा स्तन निकाल दिया जाता है व मरीज नियमित देखभाल व कीमोथेरेपी पर निर्भर रहता है। धीरे-धीरे मरीज पूर्णत: सामान्य हो जाता है।