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हाथियों से बचाने वाला कोई नहीं, वन विभाग भी पूरी तरह फेल! फिर 11 परिवार हुए बेघर

पिछले 11 दिनों में हाथियों ने 29 घरों को तोडऩे के अलावा करीब 100 हेक्टेयर बर्बाद कर दी फसल

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Elephants broken house

Elephants broken house

अंबिकापुर/लखनपुर. लखनपुर वन परिक्षेत्र में 11वें दिन भी हाथियों का उत्पात जारी रहा। अब तो प्रभावित क्षेत्र के लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि वे हाथियों से बचकर कहां जाएं। हर दिन हाथी घरों व फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं। बुधवार की रात हाथियों ने ग्राम लोसगा में उत्पात मचाते हुए 11 घरों को तहस-नहस कर दिया।

वहीं चार ग्रामीणों की फसल भी बर्बाद कर दी। इधर वन विभाग द्वारा प्रभावितों को चावल का वितरण किया जा रहा है, लेकिन ये ग्रामीणों की परेशानियों को कम करने के लिए नाकाफी है। हाथियों को खदेडऩे में वन अमला पूरी तरह से फेल नजर आ रहा है, इससे ग्रामीणों में काफी आक्रोश है।


लखनपुर वन परिक्षेत्र अंतर्गत ग्राम लोसगा के ग्रामीणों को तीन-चार दिन से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। आधा दर्जन हाथियों का दल जंगल में विचरण कर रहा है। वहीं बुधवार की रात हाथियों का दल लोसगा की बस्ती में घुस आया। हाथियों के आने की सूचना पर पूरा गांव बाहर निकल आया।

हाथियों ने घुरसाय पिता केंदा कोरवा, बाबूलाल पिता लरी कोरवा, राम साय पिता मनसाय कोरवा, खोरा पिता केंदा कोरवा, सुखनाथ पिता बुधु कोरवा, सबल मझवार पिता सोमारू मझवार, प्रेम साय पिता मुनेश्वर, उर्मिला पति सुखदेव व अतबल पिता मनसाया का घर तोड़ डाला, साथ ही अंदर रखा अनाज भी खा गए।

वहीं तुलेश्वर, शंकर, राजेन्द्र व सुलेंद्र की फसल बर्बाद कर दी। प्रभावितों में अधिकांश कोरवा व पंडो जनजाति के लोग हैं। बारिश के मौसम में बेघर होने से इन परिवारों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

वन विभाग द्वारा प्रभावितों को प्लास्टिक व अनाज का वितरण किया जा रहा है। अब तक हाथी ग्राम लब्जी, चोड़ेया, सकरिया, लोसगा व अन्य आसपास के गांव को मिलाकर 29 घर तोड़ चुके हैं। साथ ही लगभग 100 हेक्टेयर फसल को बर्बाद कर दिया है।


रतजगा करना मजबूरी
हाथियों के उत्पात से ग्रामीणों को जीवन-यापन में काफी मुश्किल आ रही है। उन्हें जन-धन की रक्षा के लिए रतजगा करना पड़ रहा है। सुबह भी हाथियों की निगरानी करनी पड़ती है। हालांकि कुछ गांव में वन विभाग द्वारा प्रभावितों को आंगनबाड़ी व स्कूल में रात में ठहराया गया है, लेकिन सिर्फ इन उपायों से ग्रामीणों की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है।