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Freedom fighter: आजादी की लड़ाई में सरगुजा के भी कई वीर सपूतों ने दी है कुर्बानी, जानिए, बाबू परमानंद का क्या रहा योगदान

Freedom fighter: राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता अजय चतुर्वेदी ने सरगुजा संभाग के ६ जिलों से 40 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की खोज कर, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को लिख कर सरगुजा के इतिहास को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्थान दिलाया

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अंबिकापुर. Freedom fighter: स्वतंत्रता दिवस के 77 वीं वर्षगांठ का यह स्वर्णिम दिवस पाने के लिए हमारे देश के अनेक वीर शहीदों (Freedom fighter)ने हंसते-हंसते कुर्बानियां दी हैं। आजादी की लड़ाई में सरगुजा अंचल के वीर सपूतों ने भी कदम से कदम मिलाकर देश को आजाद कराने में अपना सहयोग दिया है। सरगुजा रियासत के सूरजपुर के एक वीर सपूत बाबू परमानंद थे। इन्होंने देश की खातिर महज 18 वर्ष की आयु में ही हंसते-हंसते जेल में प्राण न्यौछावर कर दिए थे।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर शोध कार्य कर रहे जिला पुरातत्व संघ सूरजपुर के सदस्य राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी ने उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के 6 जिलों से 40 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों (Freedom fighter) की खोज कर, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को लिख कर सरगुजा के इतिहास को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्थान दिलाया है।

सरगुजा रियासत के सूरजपुर के एक वीर सपूत बाबू परमानंद थे। इन्होंने देश की खातिर महज 18 वर्ष की आयु में ही हंसते-हंसते जेल में प्राण न्यौछावर कर दिए थे। आजादी के पूर्व वंदे मातरम गीत गाना अपराध माना जाता था।

ऐसे राष्ट्र प्रेमियों को जेल में डाल कर कड़ी यातनाएं दी जाती थी। बाबू परमानंद जी को भी इसी जुर्म में जेल हुई थी। जेल अधिकारियों द्वारा नारे ना लगाने की चेतावनी को भी न मानते हुए अपने सिद्धांतों के साथ कभी भी समझौता नहीं किया। आपको इसी अपराध की कीमत देश के खातिर कुर्बानी देकर चुकानी पड़ी।

नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में योगदान

नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में सरगुजा के तेजो मुर्तुला, वेंकट राव, शिवदास, भास्कर नारायण माचवे, आनंद प्रसाद हलधर और धीरेंद्रनाथ शर्मा का उल्लेखनीय योगदान रहा। इन्होंने अंग्रेज सरकार का विरोध करना, पुलिस बल के सदस्यों में विद्रोह की भावना भडक़ाने आदि कई कार्य किए। इससे इन सभी को गिरफ्तार कर कड़ी कैद की सजा दी गई थी।

जेल में दी गईं कड़ी यातनाएं

व्यक्तिगत सत्याग्रह में सरगुजा अंचल के मेवाराम (Freedom fighter) और ज्ञानी दर्शन सिंह ने अविस्मरणीय योगदान दिया है। मेवाराम को व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण दिनांक 17 अप्रैल 1941 को छह माह की कठोर सजा हुई थी। ज्ञानी दर्शन सिंह को व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण 1 वर्ष का कारावास हुआ था।

रघुनंदन तिवारी आजाद ने 15 जनवरी 1937 में किसान आंदोलन में भाग लिया इसलिए इसी जुर्म में गिरफ्तार कर मई 1937 में 3 माह की कठोर सजा दी गई। राजदेव पांडे को सन् 1931 ई. में विदेशी वस्तु बहिष्कार तथा शराबबंदी आंदोलन में भाग लेने के कारण 23 फरवरी से 9 मार्च 1931 तक गाजीपुर उत्तर प्रदेश में कारावास हुआ था।

जंगल सत्याग्रह मे सरगुजा अंचल के नित्य गोपाल राय और धरम सिंह का महतवपूर्ण योगदान रहा। नित्य गोपाल राय को सन् 1930 ई. में जंगल सत्याग्रह में भाग लेने की जुर्म में 6 माह की कठोर कारावास हुई थी। धर्म सिंह को जंगल सत्याग्रह में भाग लेने के कारण 28 दिन का कारावास हुआ था।

भारत छोड़ो आन्दोलन में ये थे शामिल

भारत छोड़ो आन्दोलन में महली भगत, अनिल कुमार चटर्जी, मौजी लाल जैन, शिव कुमार सिंह, जगदीश प्रसाद नामदेव, चंदिकेश दत्त शर्मा, अमृतराव घाटगे, प्राण शंकर मिश्र, पन्नालाल जैन, भास्कर नारायण माचवे और घुरा साव ने योगदान दिया है। इन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध, विदेशी कपड़ों को जलाना, पुल तोडऩा, रेल पटरियां उखाडऩा आदि कई कार्य किए।

ब्रिटिश हुकमत ने इन्हें जेल में बंद कर कड़ी यातनाएं दी। वहीं आजाद हिंद फौज से जुडक़र उमेद सिंह रावत, नैन सिंह ठाकुर और श्याम सिंह गिल ने देश को आजाद कराने में योगदान दिया।

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आजादी की लड़ाई में समुदाय भी रहे आगे

आजादी की लड़ाई में जाति, धर्म, समुदाय के लोगों ने भी अविस्मरणीय योगदान दिया है। सरगुजा के जनजाति समुदाय के लोगों ने भी अपने देश की खातिर आजादी की लड़ाई में कुर्बानियां दी हैं।

सरगुजा गजेटियर में सरगुजा अंचल से जनजाति समुदाय के 3 स्वतंत्र संग्राम सेनानियों के नाम मिलते हैं। इसमें कुसमी के स्वर्गीय महली भगत, स्वर्गीय राजनाथ भगत और गांधीनगर अंबिकापुर के स्वर्गीय माझी राम गोड़ के नाम शामिल हंै।


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