
कश्मीर और दिल्ली में दरिंदों ने लड़कियों को बेचा
अंबिकापुर। Human Trafficking : छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाकों से लगातार मानव तस्करी के मामले सामने आ रहे हैं। तस्करों द्वारा पैसों का लालच देकर मासूम बच्चियों से लेकर युवतियों तक की तस्करी की जा रही है। सरगुजा जिले के सीतापुर क्षेत्र से मानव तस्करी के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। वर्ष 2004 से 2003 के बीच यहां की 59 बच्चियां मानव तस्करी का शिकार हुईं। मामला पुलिस तक भी पहुंचा।
इस दौरान विभिन्न संगठनों के प्रयास से 41 बच्चियों को वापस लाया गया। लेकिन आज भी 18 बच्चियां वापस नहीं आ पाई हैं। ये कहां और किस हालत में हैं इसकी जानकारी किसी को नहीं है। पीडि़त परिवार बस इस आस में जिंदा है कि आज या कल कोई न कोई खबर जरूर आएगी। मानव तस्करी का दंश पीडि़त परिवार इस कदर झेल रहा है कि कि इनकी आंखों के आंसू भी सूख गए हैं। वर्ष 2004 से 2023 के बीच सीतापुर विकासखंड के 30 गांवों से 59 बच्चियों की तस्करी की गई है। इनमें से 41 बच्चियों को रेस्क्यू करके लाया गया है। हाल ही में 4 बच्चों को श्रीनगर कश्मीर से रेस्क्यू करके लाया गया। वहीं 18 बच्चियों का अभी तक पता नहीं चल पाया है।
पुरानी बातों को कुरेदने पर सिहर उठती हैं बच्चियां
काम की जगह शारीरिक और मानसिक प्रताडऩा, शोषण का शिकार हुई लड़कियों की स्थिति यह है कि पुरानी बात कुरेदने पर वे सिहर उठती हैं। बालिग अवस्था में पहुंच चुकी लड़कियों का बमुश्किल विवाह स्वजन करा पाए हैं। लडक़े-लड़कियों की वापसी में वर्ष 2016 में क्राई मुंबई के सहयोग से क्षेत्र में कार्य कर रही पथ प्रदर्शक संस्था का अहम रोल रहा। जिन गांवों तक संस्था ने अपनी पैठ बनाई है वहां से मानव तस्करों की घुसपैठ खत्म हुई है, लेकिन आसपास के क्षेत्रों से लड़कियों के जाने का सिलसिला जारी है। गरीब परिवार की बच्चियां लंबे समय से दलालों के टारगेट में रहीं। इस कार्य में गांव के लोगों की सहभागिता भी रही है, जो चंद रुपये के प्रलोभन में अपने ही गांव, घर की बेटियों को दलालों के हवाले करते आए हैं। पूर्व में पुलिस व प्रशासन भी मानव व बच्चों की तस्करी को गंभीरता से नहीं लिया। इससे दलाल बेरोकटोक गांव तक पहुंचते रहे। इसके पीछे का कारण कम उम्र के बच्चों के एवज में अच्छा-खासा कमीशन व सीधी कमाई होना है।
सर्वाधिक बच्चियों की बरामदगी दिल्ली से
सीतापुर विकासखंड से गायब हुई 59 बच्चियों में 41 की गांव, घर वापसी का माध्यम पुलिस के साथ ही पथ प्रदर्शक संस्था बना है। दिल्ली से 17, हरियाणा से 2, बिहार से 1, गोवा से 1, मुंबई से 1, उत्तर प्रदेश से 1, रायगढ़ से 1 और अक्टूबर 2003 में 4 बच्चों को श्रीनगर (कश्मीर) से रेस्क्यू करके वापस लाया गया है। 13 लड़कियों को दलाल कहीं बेचने में सफल हो पाते, इसके पहले रेस्क्यू करके इन्हें कब्जे में ले लिया गया। रायगढ़ से 4, चांपा से 1, जशपुर से 1, सीतापुर से 4, कुनकुरी से 2 और मैनपाठ से 1 बच्चे का सूचना मिलने के साथ रेस्क्यू किया गया।
जिस्म के बाजार में भी धकेली गईं लड़कियां
मन में अकाट्य पीड़ा लेकर महानगरों से वापस आई लडक़े-लड़कियों का पथ प्रदर्शक संस्था के साथ समन्वय बनाकर मैदानी क्षेत्र में कार्य कर रहे अनिल कुमार, नीमा बेक सहित अन्य हमदर्द बने हैं। इन्होंने न सिर्फ इनके दर्द को बांटा बल्कि उनके मन की पीड़ा को निकालने का प्रयास भी किया। नीमा बताती हैं कि रेस्क्यू करके लाई गईं 41 लड़कियों में 18 बालिग अवस्था में पहुंच गई थीं। इनका विवाह बमुश्किल हो पाया। वहां से आने के बाद कुछ बच्चियों की स्थिति ऐसी थी कि वे कब मानसिक संतुलन खो बैठेंगी, कहना मुश्किल था। कुछ बच्चियां तो जिस्म के बाजार में धकेल दी गई थीं। सिगरेट तक से दागा गया। इनके अंतर्मन की पीड़ा को निकालने हरसंभव कोशिश उन्होंने की।
Published on:
19 Nov 2023 09:02 am
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