
शहर के संजय पार्क में वन्य प्राणियों को गोद लेने की योजना सिर्फ बोर्ड में ही हो रही सुशोभित
अंबिकापुर। शहर के संजय पार्क में वर्ष 2012-13 में शुरू की गई वन्यप्राणियों को गोद लेने की योजना पूरी तरह से फेल हो गई है। वन प्रबंधन समिति ने वन्यप्राणियों से मानव समुदाय का लगाव हो, इसके लिए इन्हें गोद देने की पहल की थी। इस योजना को शुरू हुए एक दशक बीत रहे हैं, ऐसा कोई ऐसा व्यक्ति या समाज सेवी संगठन सामने नहीं आया है जो किसी वन्यप्राणी को गोद लेकर उसके खाने-पीने में होने वाले व्यय को नियमित वहन करे। पीपुल्स फॉर एनीमल के सदस्यों ने पूर्व में वन्यप्राणियों को गोद लेने में रूचि दिखाई थी जो नियमित नहीं रही। योजना के प्रचार-प्रसार की ओर ध्यान नहीं देने से ऐसे हालात निरंतर सामने आ रहे हैं।
छत्तीसगढ़ शासन वन विभाग के अधीन संजय पार्क में नगरवासियों के स्वस्थ्य मनोरंजन व परिवार के साथ पहुंचने वाले लोगों को बेहतर वातावरण प्रदान करने व्यवस्थाओं में बढ़ोतरी की गई है। यहां रोजाना योगासन के लिए भी शहर के लोग पहुंचते हैं। पार्क में बच्चों के लिए झूले, चिल्ड्रन ट्रेन सहित कई मनोरंजन की सामग्रियां हैं, लेकिन मेंटनेंस के अभाव में दम तोडऩे जैसी स्थिति बन रही है। दरअसल वन प्रबंधन समिति शंकरघाट वर्ष 2000 से पार्क के रख-रखाव पर विशेष नजर रख रहा है। पार्क में स्वच्छ माहौल हो इसके लिए समिति की ओर से डेढ़ दर्जन कर्मचारी रखे गए हैं।
वर्ष 2012-13 से पार्क में रखे जाने वाले पशु-पक्षियों को गोद देने की परिपाटी वन प्रबंधन समिति शंकरघाट ने ही शुरू की है। इसके तहत संबंधित पशु-पक्षी को निर्धारित मासिक खर्च देकर कोई भी व्यक्ति गोद ले सकता है। विडंबना ही कहा जाए वर्ष 2015 में महावीर वार्ड के पीएन सिंह और वर्ष 2016 के नवंबर माह में सीतापुर की अनुराग बाई ने चीतल को गोद लेकर एक माह में इन पर होने वाले खर्च के लिए पांच-पांच सौ रुपए जमा कराए थे।
इसके बाद मानव समुदाय के लिए आकर्षण का केंद्र बने रहने वाले हिरण, कोटरा, खरगोशए,मोर सहित अन्य पशु-पक्षियों को गोद लेने कोई आगे नहीं आया। पीपुल्स फॉर एनीमल्स के सदस्यों ने यहां पलने-बढऩे वाले वन्यप्राणियों को गोद लेने रूचि जरूर दिखाई पर नियमितता नहीं बन पाई। ऐसे में पार्क के वन जीवों को गोद देने की मंशा धरी रह गई। वन प्रबंधन समिति व पार्क प्रभारी का कहना है कि वे यहां आने वाले संपन्न लोगों से पशु-पक्षियों को गोद लेने का आग्रह करते हैं।
इनके द्वारा हामी जरूर भरी जाती है पर कोई भी स्वविवेक से वन्य जीवों के आहार में होने वाले व्यय में सहभागी बनने सामने नहीं आता है। ऐसे में इनके आहार का प्रबंध सहित मूलभूत रखरखाव व कर्मचारियों का मनरेगा जॉब दर से भुगतान पार्क में आने-जाने वाले लोगों के द्वारा दिए जाने शुल्क से किया जाता है।
चीतल-कोटरा के साथ नीलगाय भी
बड़े सिंगों के साथ संजय पार्क में आने वालों को टकटकी लगाए देखते चीतलों का नामकरण वन विभाग की ओर से किया गया है। चंपा, लेदरी, दिलहरन, मनहरन, ढेला, सोनम, दुर्गा, चमेली, रामू आदि नामों से पुकारे जाने वाले चीतलों की उछलकूद होते रहती है। इनके साथ बाड़े में जंगल से भटककर आई एक नीलगाय भी रहती है। समिति के अध्यक्ष कहते हैं कि नीलगाय का जोड़ा होता तो इनकी संख्या में बढ़ती और ये यहां आने वालों के लिए आकर्षण का केंद्र होते।
65 कोटरा-कोटरी का विस्थापन
संजय पार्क में रहने वाले कोटरा-कोटरी की संख्या में अच्छी वृद्धि हुई थी। बाड़े में जगह की पड़ती कमी और इनकी बढ़ती संख्या को देखते हुए उच्च स्तर से मिली विभागीय अनुमति के बाद लगभग 65 कोटरा-कोटरी का विस्थापन इसी वर्ष कोरिया जिला के गुरुघासीदास उद्यान में किया गया है। वर्तमान में यहां पांच कोटरा व 15 नर-मादा हिरण हैं। इसके अलावा कलर बड्र्स, गिनी पिग, उल्लू, खरगोश व डेढ़ दर्जन से अधिक मोर यहां आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। यहां के पशु-पक्षियों की समय-समय पर पशु चिकित्सक स्वास्थ्य जांच भी करते हैं। चिकित्सक के परामर्श के अनुसार इन्हें जरूरी दवाएं और टॉनिक दिया जाता है।
बजट का होना चाहिए प्रावधान
वन प्रबंधन समिति के अध्यक्ष अजीत पांडेय ने कहा कि संजय पार्क में रखे गए पशु-पक्षियों को गोद देने के पीछे वन प्रबंधन समिति का मकसद था कि लोगों का इनसे जुड़ाव हो। गोद लिए गए पशुओं की देखरेख कैसे हो रही है, इससे वे परिचित हों। यहां आने वालों की ओर टकटकी लगाकर देखने वाले पशुओं को गोद लेने के पुनीत कार्य में आमजनों के साथ ही जनप्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों, सक्षम वर्ग व समाज सेवियों को भी भागीदार बनना चाहिए। शासन को रेस्क्यू सेंटर के नाम पर ही सही यहां के लिए बजट का प्रावधान बनाना चाहिए ताकि व्यवस्थाएं और बेहतर हो।
पार्क में लगे बोर्ड को पढक़र लोग पशुओं को गोद लेने के बारे में जानकारी जरूर लेते हैं, लेकिन कोई अपने मन से इन पशुओं पर होने वाले व्यय की राशि देने नहीं आया है। हमारा प्रयास रहता है स्वेच्छा से लोग यहां रखे गए वन्य जीवों के संरक्षक बनें। इसका संचालन समिति के देखरेख में किया जा रहा है। इनके लिए पृथक से किसी प्रकार के फंड की व्यवस्था नहीं है। विनोद सिंह, वनपाल, प्रभारी संजय पार्क
Published on:
19 Nov 2023 08:59 pm
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