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म्यूलर रिपोर्ट के बाद अमरीका में अवमानना की राजनीति, ट्रम्प को कब तक बचाएगा ‘अंकल सैम’ का संविधान

locationनई दिल्लीPublished: May 14, 2019 07:48:00 am

Submitted by:

Anil Kumar

राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ महाभियोग लाने को लेकर अमरीका में राजनीति तेज।
म्यूलर रिपोर्ट के बाद से डेमोक्रेट्स पार्टी ने महाभियोग को लेकर मांग तेज कर दी है।
अमरीका में अभी तक किसी भी राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग सफल नहीं हुआ है।

डोनाल्ड ट्रंप

म्यूलर रिपोर्ट के बाद अमरीका में अवमानना की राजनीति, ट्रम्प को कब तक बचाएगा ‘अंकल सैम’ का संविधान

वाशिंगटन। अमरीकी चुनाव 2016 को प्रभावित करने को लेकर रूस और ट्रंप के बीच मिलीभगत के आरोपों पर अमरीकी कांग्रेस में पेश किए गए विशेष वकील रॉबर्ट म्यूलर की जांच रिपोर्ट के बाद अब सत्ता पक्ष और विपक्ष में घमासान छिड़ गया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ( President Donald Trump ) सके खिलाफ महाभियोग को लेकर भी बहस जारी है। विपक्षी दल डेमोक्रेट्स ( Democrats ) कांग्रेस में म्यूलर रिपोर्ट के आधार पर महाभियोग लाने की मांग लगातार कर रहा है। सदन की स्पीकर नैंसी पेलोसी ( Speaker Nancy Pelosi ) जो कि एक डेमोक्रेट्स हैं, कांग्रेस में कई बार महाभियोग की प्रक्रिया को शुरू करने की बात दर्ज करा चुकी हैं। जबकि सदन की कमिटी आक्रमकता के साथ गवाहों और दस्तावेजों के सम्मन के जरिए ट्रंप की जांच कर रही है। लिहाजा 2020 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर दोनों ही पार्टियों की ओर से महाभियोग को लेकर राजनीतिक खेल खेला जा रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या चुनाव से पहले ट्रंप को महाभियोग का सामना करना पड़ सकता है? या फिर ‘अंकल सैम’ का संविधान ट्रंप को महाभियोग से बचा लेगा?

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किस आधार पर हो सकता है महाभियोग?

बता दें कि अमरीकी संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और सभी सिविल अधिकारियों के खिलाफ महाभियोग ( impeachment ) लाने के लिए कुछ शर्तें निर्धारित की गई हैं। इसमें बताया गया है कि यदि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और सिविल अधिकारियों को उनके पद से हटाना हो तो केवल देशद्रोह, रिश्वत या अन्य उच्च अपराध और दुष्कर्म के मामले में ही हटाया जा सकता है। महाभियोग के लिए सदन के किसी सदस्य द्वारा एक महाभियोग का प्रस्ताव सदन में रखना होता है। जिसपर बहस होती है और फिर संसद सदस्य वोट के जरिए यह तय करते हैं कि आरोपी के खिलाफ जांच होनी चाहिए या नहीं, जिसके आधार पर महाभियोग की कार्रवाई आगे बढेगी। सदन के न्यायिक कमिटी या स्पेशल कमिटी तब आगे जांच करेगी। 435 सदस्यीय सदन में महाभियोग को साधारण बहुमत से अनुमोदित किया जाना चाहिए। यदि सदन ने बहुमत के साथ महाभियोग को मंजूरी दे दी तो फिर इसे सीनेट के पास भेजा जाता है। सीनेट में ट्राइल किया जाएगा। ट्राइल की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की अध्यक्षता में होता है। यहां पर 100-सदस्यीय सीनेट में राष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। बता दें कि मौजूदा समय में सीनेट में 53 रिपब्लिकन, 45 डेमोक्रेट और दो निर्दलीय उम्मीदवार सदस्य हैं। निर्दलीय उम्मीदवार डेमोक्रेट के समर्थन में हैं। अब राष्ट्रपति को हटाने के लिए कम से कम 20 रिपब्लिकन, सभी डेमोक्रेट और दो निर्दलीय उम्मीदवारों को महाभियोग के समर्थन में मतदान करना होगा। तभी ट्रंप के खिलाफ महाभियोग लाया जा सकता है।

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क्या ट्रंप के लाया जा सकता है महाभियोग?

अब सवाल यह उठता है कि क्या डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ महाभियोग लाया जा सकता है। इससे पहले ट्रंप के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव सदन में रखा जा चुका है, लेकिन बहुमत नहीं होने के कारण प्रक्रिया आग नहीं बढ़ सकी। तो ऐसे में सवाल यही है कि क्या फिर से लाने की कोशिश की जा सकती है? डेमोक्रेट्स पार्टी लगातार इसकी मांग कर भी रही है। कुछ दिनों पहले इस मामले को लेकर देश के करीब 500 पूर्व संघीय अभियोजकों ने एक संयुक्त पत्र लिखा था जिसमें म्यूलर रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि ट्रंप के खिलाफ महाभियोग के लिए पर्याप्त सबूत हैं। हालांकि एक बात जो कही गई वह सबसे महत्वपूर्ण है कि चूंकि ट्रंप सत्ता में काबिज हैं और वे राष्ट्रपति पद पर बने हुए हैं इसलिए कार्रवाई नहीं की जा सकती है। पत्र में आगे यह भी कहा गया था कि मौजूदा समय में न्याय विभाग नीति किसी भी वर्तमान राष्ट्रपति के खिलाफ कार्रवाई (अभियोग) करने की इजाजत नहीं देता है।

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इन राष्ट्रपतियों पर लगाया गया महाभियोग

अमरीका में अब तक ऐसे दो मामले देखने को मिलते हैं जिनके खिलाफ सफलतापूर्वक महाभियोग लगाया गया, लेकिन सीनेट में यह मामला अटक गया और फिर दोनों का दोषी करार नहीं दिए जा सके। पहला मामला एंड्रयू जॉनसन का था जिनके खिलाफ 1868 में अमरीकी गृह युद्ध के बाद की स्थिति के दौरान लगाया गया था और दूसरा करीब सवा सौ साल बाद 1998 में बिल क्लिंटन के खिलाफ व्हाइट हाउस के इंटर्न मोनिका लेविंस्की के साथ उनके संबंधों को लेकर लगाया गया था। दोनों ही मामलों में सदन में महाभियोग के लिए सहमति बन गई लेकिन फिर सीनेट में इसे खारिज कर दिया गया। एक अन्य मामले में भी 1974 में सदन के न्यायिक कमिटी ने राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के खिलाफ वाटरगेट स्केंडल को लेकर महाभियोग प्रस्ताव रखा था। हालांकि सदन में इसपर वोट होता उससे पहले ही रिचर्ड निक्सन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

 

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