Hathi Pakhna: महाआरती में महापौर, आईजी-एसपी से लेकर दोनों ही दलों के काफी संख्या में जनप्रतिनिधि व नेता हुए शामिल, आस्था और परंपरा से जुड़ा शहर का गणपति धाम बना भक्ति का केंद्र
अंबिकापुर। महामाया पहाड़ी स्थित हाथी पखना (Hathi Pakhna) गणपति धाम में प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी भव्य महा आरती का आयोजन बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ संपन्न हुआ। भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होकर आराधना में लीन हो गए और पूरा परिसर भक्ति व आस्था से ओतप्रोत हो उठा। महाआरती से पूर्व ऑर्केस्टा टीम द्वारा गणपति बप्पा की महिमा पर आधारित अनेक भक्तिमय गीत प्रस्तुत किए गए। इन गीतों पर श्रद्धालु झूम उठे और वातावरण भक्ति रस में सराबोर हो गया।
महाआरती (Hathi Pakhna) के समय पूरे धाम परिसर में गगनभेदी घोष, शंखनाद और घंटा-घडिय़ालों की ध्वनि से माहौल गुंजायमान हो उठा। दीप प्रज्ज्वलन और आरती की अलौकिक छटा ने समूचे स्थल को आस्था और भक्ति का अद्वितीय केंद्र बना दिया।
महाआरती के दौरान श्रद्धालुओं ने बड़ी आस्था और भक्तिभाव से भगवान गणपति बप्पा (Hathi Pakhna) की आरती उतारी और गणपति बप्पा मोरया के जयकारों से पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया। महा आरती के उपरांत प्रसाद वितरण किया गया।
महाआरती (Hathi Pakhna) में महापौर मंजूषा भगत, जिला पंचायत सदस्य दिव्या सिंह सिसोदिया, आदित्येश्वर शरण सिंहदेव, सभापति हरमिंदर सिंह टिन्नी, आईजी दीपक कुमार झा, एएसपी अमोलक सिंह ढिल्लो, अरुणा सिंह, एचएस जायसवाल, राजीव अग्रवाल, निलेश सिंह, अध्यक्ष शैलेश सिंह शैलू, गोल्डी बिहाड़े,
द्वितेन्द्र मिश्रा, जनमेजय मिश्रा, रूपेश दुबे, संतोष दास, विकास पाण्डेय, जितेंद्र सोनी, शशिकांत जायसवाल, शरद सिन्हा, अंशुल श्रीवास्तव, अनीश सिंह, जतिन परमार, मैंगो यादव, प्रियंका चौबे, नीलम राजवाड़े, अजय सिंह सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु विशेष रूप से उपस्थित रहे।
हाथी पखना (Hathi Pakhna) गणपति धाम धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक महत्व का अद्वितीय संगम है। यह स्थल महामाया पहाड़ी पर लगभग 68 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है, जहां प्राकृतिक हरियाली और शांत वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव कराता है। धाम का धार्मिक महत्व इस तथ्य से है कि यहां मां महामाया के प्राचीन मंदिर के साथ स्वयंभू गणेश प्रतिमा विराजमान है, जो पूरे सरगुजा संभाग का एकमात्र स्वयंभू गणपति स्थल है।
ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान हाथियों के प्रशिक्षण केंद्र के रूप में सरगुजा रियासत से जुड़ा रहा है और भगवान श्रीराम के वनगमन से संबंधित कथाओं से भी इसका संबंध बताया जाता है। पूजन परंपराओं में यहां की पवित्र मिट्टी का गणेश प्रतिमा स्थापना (Hathi Pakhna) से पूर्व उपयोग अब भी जारी है। वर्तमान में वन विभाग की देखरेख में यह स्थल हरित तीर्थ के रूप में संरक्षित है और भविष्य में इसे धार्मिक-पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना है।