अमरोहा

यूपी में बड़ा घोटाला! छह जिलों में नौकरी और 3 करोड़ सैलरी, सिस्टम में छुपा धोखाधड़ी का खेल

UP News: यूपी के स्वास्थ्य विभाग से चौंकाने वाला मामला सामने आया है। जहां अर्पित सिंह ने छह जिलों में नौ साल तक एक्स-रे टेक्नीशियन की नौकरी की और 3 करोड़ से ज्यादा की सैलरी हड़प ली।

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Sep 09, 2025
यूपी में बड़ा घोटाला! AI Generated Image

X-ray technician 6 districts 3 crore salary fraud in UP: यूपी के स्वास्थ्य विभाग से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरे सिस्टम की पोल खोल दी। अर्पित सिंह नाम का शख्स नौ साल तक छह अलग-अलग जिलों में नौकरी करता रहा और 3 करोड़ से ज्यादा की सैलरी निकाल ली। इस पूरे खेल में वही नाम, वही पिता और वही पता था, लेकिन आधार नंबर अलग-अलग थे। विभाग को नौ साल तक इस बात का पता नहीं चला।

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कब और कैसे हुआ खुलासा

2016 में एक्स-रे टेक्नीशियन की 403 भर्ती हुई थी। नौ साल तक सब सामान्य रहा। हाल ही में विभाग ने मानव संपदा पोर्टल पर मिलान किया तो खुलासा हुआ कि अर्पित सिंह अलग-अलग जिलों में काम कर रहा था।

अर्पित सिंह की छह पहचान

  • हाथरस: मुरसान सीएचसी पर तैनात
  • बलरामपुर: तुलसीपुर सीएचसी में पोस्टिंग
  • रामपुर: बिलासपुर सीएचसी से जिला क्षय रोग कार्यालय तक काम किया
  • बांदा: नरैनी सीएचसी पर 2017 से तैनात, मामला खुलते ही फरार
  • शामली और अमरोहा: दोनों जिलों में रिकॉर्ड पर अर्पित सिंह एक्स-रे टेक्नीशियन

हर जगह वही नाम, पिता और पता, लेकिन अलग-अलग आधार नंबर।

कितना पैसा हड़पा गया

एक एक्स-रे टेक्नीशियन को औसतन 50 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता है। ऐसे में 1 साल में 6 लाख रुपये और नौ साल में 54 लाख रुपये। छह जिलों में काम करने के कारण कुल रकम 3 करोड़ 24 लाख रुपये हो गई। सरकारी खजाने को करोड़ों की चपत लगी और विभाग को नौ साल तक भनक तक नहीं लगी।

एफआईआर और जांच का दायरा

घोटाले के खुलासे के बाद डीजी हेल्थ रतन पाल सुमन ने विशेष जांच कमेटी बनाई। जांच डॉ. रंजना खरे के नेतृत्व में हुई। रिपोर्ट के आधार पर लखनऊ की वजीरगंज कोतवाली में एफआईआर दर्ज की गई। फिलहाल पुलिस आरोपी अर्पित सिंह की तलाश में जुटी है।

सिर्फ अर्पित नहीं, कई और नाम जांच में

जांच में कई और लोगों के नाम सामने आए हैं।

  • अंकुर (मैनपुरी) – दो जगह मानव संपदा पोर्टल में दर्ज
  • अंकित सिंह (हरदोई) – पांच जिलों में एक्स-रे टेक्नीशियन के रूप में काम

इन मामलों पर भी जांच जारी है और जल्द ही एफआईआर दर्ज होने की संभावना है।

वसूली और कार्रवाई की चुनौती

इस मामले में सबसे बड़ी चुनौती सिर्फ आरोपी की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि हड़पे गए पैसे की वसूली है। फर्जी आधार और बैंक अकाउंट होने की वजह से वसूली आसान नहीं होगी। कई सालों की कानूनी प्रक्रिया की संभावना है।

भर्ती प्रक्रिया पर उठे सवाल

यह मामला 2015-16 में हुई 403 भर्ती से जुड़ा है। उस समय समाजवादी पार्टी की सरकार थी। अब जब जांच हो रही है, तो भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता और अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। क्या यह सिर्फ एक जालसाजी थी या सिस्टम के भीतर से मदद भी मिली थी, यह जांच का अहम हिस्सा होगा।

जनता और कर्मचारियों की प्रतिक्रिया

मामला सामने आते ही सोशल मीडिया पर चर्चा छा गई। लोग सवाल उठा रहे हैं कि नौ साल तक विभाग को कैसे पता नहीं चला। कर्मचारियों का कहना है कि इस तरह के घोटाले उनकी मेहनत पर पानी फेरते हैं और विभाग की छवि को धूमिल करते हैं।

एफआईआर दर्ज, जांच तेज

फिलहाल एफआईआर दर्ज हो चुकी है और जांच तेज़ी से चल रही है। असली चुनौती अब आरोपियों की गिरफ्तारी और हड़पे गए पैसे की वसूली है। साथ ही भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर विश्वास बहाल करना भी प्राथमिकता होगी।

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