Karila Mela Ashoknagar- रंगमंचमी पर लगता करीला मेला, अशोकनगर कलेक्टर, एसपी ने तैयारियां का जायजा लिया
Karila Mela Ashoknagar- मध्यप्रदेश में यूं तो अनेक भव्य मेले लगते हैं लेकिन अशोकनगर के करीला मेले की बात ही कुछ और है। जिले के प्रसिद्ध तीर्थस्थल मां जानकी माता मंदिर करीला धाम में लगने वाले इस मेले में करीबन 25 लाख लोग आ जुटते हैं। मेला रंगपंचमी पर लगता है जहां लव-कुश का जन्मोत्सव मनाया जाता है। करीला धाम का मेला, बुंदेलखंड के प्रसिद्ध राई नृत्य के लिए भी जाना जाता है। यहां हजारों की संख्या में नृत्यांगनाएं मशालों की रोशनी में नृत्य करती हैं। करीला मेले की ख्याति और भव्यता को देखते इस बार प्रशासन अभी अलर्ट हो गया है। यहां आनेवाले लाखों श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए 80 दिन पहले से ही तैयारियां शुरु कर दी गई हैं।
करीला मेले की तैयारियों को लेकर कलेक्टर आदित्य सिंह और पुलिस अधीक्षक राजीव कुमार मिश्रा बुधवार को करीला धाम पहुंचे। दोनों अधिकारियों ने व्यवस्थाओं, तैयारियों का जायजा लिया। जिले के विभिन्न विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक कर उन्हें आवश्यक दिशा-निर्देश भी दिए।
वार्षिक करीला मेला इस बार आगामी 8 मार्च 2026 को रंगपंचमी के अवसर पर आयोजित होगा। मेले को लेकर जिला प्रशासन ने अभी से कमर कस ली है। 80 दिन पहले ही कलेक्टर-एसपी सक्रिय हो गए। उन्होंने बैठक में जिले के अधिकारियों से कहा कि व्यवस्थाओं में कोई चूक नहीं होनी चाहिए।
कलेक्टर एवं एसपी ने विभिन्न मार्गों पर प्रस्तावित पार्किंग स्थलों का भी जायज़ा लिया। पार्किंग के लिए टेंडर प्रक्रिया शीघ्र प्रारंभ करने के निर्देश दिए। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के साथ-साथ वीआईपी मूवमेंट की सुचारू व्यवस्था सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिए।
कलेक्टर आदित्य सिंह ने मंदिर परिसर में चल रहे निर्माण कार्यों को समय सीमा में पूर्ण करने का कहा। इसके साथ ही पेयजल, प्रकाश व्यवस्था और साफ-सफाई के पुख्ता इंतजाम करने के निर्देश दिए। कलेक्टर ने परिसर में पसरे अतिक्रमण को हटाने के भी सख्त निर्देश अधिकारियों को दिए, ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
बैठक के दौरान अधिकारियों को स्पष्ट संदेश दिया गया कि करीला मेला जिले की धार्मिक आस्था से जुड़ा आयोजन है, इसलिए व्यवस्थाएं ऐसी हों कि लाखों श्रद्धालु सुरक्षित, सुविधाजनक और श्रद्धा के वातावरण में मेले का आनंद ले सकें। प्रशासन की इस सक्रियता से साफ है कि इस बार करीला मेला बेहतर व्यवस्थाओं और सुव्यवस्थित संचालन के साथ आयोजित करने की पूरी तैयारी की जा रही है।
करीला मेला रंगपंचमी पर लगता है। लव-कुश के जन्म का उत्सव मनाने इस दिन 25 लाख से अधिक श्रद्धालु जुटते हैं। बिना किसी मंच के पथरीले व ऊबड़खाबड़ कांटों भरे मैदान में हजारों की संख्या में महिलाएं बुंदेलखंड का प्रसिद्ध राई नृत्य करती हैं। खुले में ही मशालों की रोशनी में नृत्यांगनाएं नृत्य कर लव-कुश के जन्म का उत्सव मनाती हैं। इससे पूरा क्षेत्र रातभर नगड़िया की थाप और घुंघरुओं की आवाज से गूंजता रहता है। इस प्रकार करीला मेले में दुनिया का सबसे अनोखा रंगमंच सजता है।
माना जाता है कि यह रामायण काल का महर्षि वाल्मीकि आश्रम है। मंदिर के ठीक पीछे गुफा में महर्षि वाल्मीकि का धूना है। इसमें साल में एक बार सिर्फ रंगपंचमी पर धूना का सामान रखा जाता है और गुफा को बंद कर दिया जाता है। इसके बाद भी वर्षभर यह धूना जलता रहता है।
मान्यता है कि जब भगवान राम ने सीताजी का त्याग किया था तो वे यहीं महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रुकीं। इसी स्थान पर लव-कुश का जन्म हुआ। लव-कुश की शिक्षा भी यहीं हुई, उन्होंने यज्ञ का घोड़ा भी यहीं पकड़ा था।
खास बात यह है कि करीला धाम दुनिया का ऐसा अनोखा मंदिर है जहां पर भगवान राम के बिना मां जानकी की पूजा होती है। मंदिरों में आमतौर पर सीताजी की प्रतिमा भगवान राम और राम दरबार के साथ स्थापित होती हैं लेकिन करीला मंदिर में ऐसा नहीं है। मुख्य मंदिर में मां जानकी लव-कुश और महर्षि वाल्मीकि के साथ विराजित की गई हैं।