Rajasthan News: 'राजस्थान का जलियांवाला बाग' के नाम से मशहूर मानगढ़ धाम आदिवासी बलिदान और स्वाधीनता संग्राम की गौरवशाली गाथा का प्रतीक है।
Rajasthan News: 'राजस्थान का जलियांवाला बाग' के नाम से मशहूर मानगढ़ धाम आदिवासी बलिदान और स्वाधीनता संग्राम की गौरवशाली गाथा का प्रतीक है। यह धाम आज भी राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा पाने के लिए तरस रहा है। वर्षों से उठ रही इस मांग के बावजूद यह ऐतिहासिक स्थल अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि राजस्थान के स्कूलों की कक्षा-5 की किताब में गलत तथ्य जोड़ा गया है, जिसमें दावा किया गया है कि मानगढ़ धाम को 2022 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जा चुका है। यह गलत जानकारी आदिवासी समाज के लिए निराशाजनक है।
दरअसल, मानगढ़ धाम राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है। 17 नवंबर 1913 को हुए भीषण नरसंहार का साक्षी है। इस दिन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ आंदोलन कर रहे लगभग 1500 आदिवासियों को गोलियों से भून दिया गया था। गोविंद गिरी के नेतृत्व में चले इस आंदोलन ने आदिवासी समाज की एकता और स्वाधीनता की भावना को दर्शाया।
यह स्थल आदिवासियों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल है, जिसे 'राजस्थान का जलियांवाला बाग' कहा जाता है। इसके बावजूद, इस स्थल को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देने की मांग आज तक अधूरी है।
बता दें, NCERT की किताब जो राजस्थान बोर्ड के स्कूलों में पढ़ाई जा रही है। इस किताब की कक्षा-5 की पर्यावरण अध्ययन (EWS) की किताब में 'हमारे प्रेरक' नामक अध्याय में गोविंद गिरी और मानगढ़ धाम के नरसंहार की कहानी को शामिल किया गया है। यह अच्छा कदम है, क्योंकि यह नई पीढ़ी को आदिवासी बलिदान की गाथा से परिचित कराता है।
हालांकि, अध्याय के अंत "क्रांतिकारी गोविंद गुरु- जीवन परिचय" परिशिष्ठ में लिखा गया है कि मानगढ़ धाम को 2022 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है, जो पूरी तरह गलत है। यह गलती न केवल तथ्यात्मक भूल है, बल्कि आदिवासी समुदाय की भावनाओं के साथ खिलवाड़ भी है।
बताते चलें कि 1 नवंबर 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानगढ़ धाम का दौरा किया था। उनके दौरे से पहले यह उम्मीद जगी थी कि मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा मिलेगा। पीएम ने यहां आदिवासियों के बलिदान को याद करते हुए उनकी शहादत को नमन किया और इस स्थल के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया।
लेकिन राष्ट्रीय स्मारक की घोषणा न होने से आदिवासी समुदाय में मायूसी छा गई थी। यह पहला मौका नहीं था जब यह मांग अनसुनी रही। पिछले कई वर्षों से स्थानीय लोग, सामाजिक संगठन और राजनीतिक दल इस मांग को उठाते रहे हैं।
गौरतलब है कि इस साल लोकसभा सत्र में उदयपुर के बीजेपी सांसद डॉ. मन्नालाल रावत ने मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग को जोरदार तरीके से उठाया था। उन्होंने लोकसभा में नियम 377 और शून्यकाल के तहत भी इस मुद्दे को उठाया, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
इस दौरान उन्होंने कहा था कि 1908 से 1913 तक चले मानगढ़ आंदोलन ने औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ आदिवासियों की एकता और साहस को दर्शाया। इस आंदोलन में सनातनी भक्तों ने अपनी शहादत दी, लेकिन उनकी गाथा विश्व पटल पर उतनी चर्चा में नहीं आई, जितनी होनी चाहिए थी।
वहीं, डॉ. रावत ने 18 अगस्त 2025 को केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से मुलाकात कर इस मांग को दोहराया था। जिसके बाद केन्द्रीय मंत्री ने आश्वासन दिया था कि इसको लेकर जल्दी ही बैठक की जाएगी। लेकिन अभी तक मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा नहीं मिला है।
मालूम हो कि मानगढ़ धाम का महत्व केवल ऐतिहासिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी है। बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जैसे जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों के अलावा मध्य प्रदेश और गुजरात के आदिवासी समाज में भी इस स्थल का विशेष महत्व है। यही वजह है कि यह स्थल राजनीतिक दलों के लिए भी आकर्षण का केंद्र रहा है।
दो साल पहले विश्व आदिवासी दिवस पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित कई दिग्गजों ने यहां आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। वहीं, बीजेपी ने भी पिछले साल भव्य आयोजन किया, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी के साथ कई राज्यों के राज्यपाल और मुख्यमंत्री शामिल हुए। वहीं, अक्तूबर 2024 में 'आदि गौरव सम्मान समारोह' में शामिल होने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी यहां पहुंची थी। बता दें, पहली बार भारत का कोई राष्ट्रपति इस धाम पर पहुंचा था।
बताते चलें कि भारत आदिवासी पार्टी (BAP) ने भी इस स्थल को अपनी सियासी रणनीति का हिस्सा बनाया है। पार्टी ने भील प्रदेश की मांग पूरी होने पर मानगढ़ धाम को राजधानी बनाने का ऐलान किया है।
स्कूली किताब में गलत तथ्य जोड़े जाने से आदिवासी समाज में नाराजगी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह गलती न केवल ऐतिहासिक तथ्यों के साथ अन्याय है, बल्कि यह नई पीढ़ी को गलत जानकारी देकर उनके इतिहास को कमजोर करने की कोशिश है। सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि इस गलती को तुरंत सुधारा जाए और मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दिया जाए।