Rajasthan : मिसाल। लावारिस लाश को हिंदू रीति से अंतिम विदाई देने में मदद करते हैं। बस एक सूचना पर उस लावारिस शव का सहारा बन जाते हैं। इतना करने के बावजूद गुमनामी में काम करना पसंद करते हैं। कौन ये देवदूत।
Rajasthan : भिखारी हो या अज्ञात बीमार, लावारिस की मौत की सूचना पर बांसवाड़ा में युवाओं की एक टोली दौड़कर तुरंत पहुंचती है। अपने खर्च से अंत्येष्टि का जिम्मा उठाने वाली यह टोली परायों से अपनापन रखकर बाकायदा हिंदू संस्कृति के अनुरूप अंत्येष्टि करती है। इनकी अन्य सेवा कार्य भी जिले में मिसाल बन रहे हैं। शहर में कॉलेज रोड से सटी बाबा बस्ती में वागड़ बने वृंदावन संस्था की गोशाला से जुड़ी यह टीम बीते 7 साल से मौन सेवा का क्रम चला रही है। नरेश पाटीदार, ज्योतिष टेलर जितेंद्र राठौड़, ओम जोशी, नयन वसीटा और शुभम नागर आदि युवाओं की इस टीम ने प्रतिमाह औसतन तीन व बीते अक्टूबर से अब तक 10 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया
अनुराग जैन बताते हैं कि बांसवाड़ा में लावारिस लोगों की मौत पर कंधा और मुखाग्नि देने वाला कोई नहीं मिलने की समस्या रही है। कुछ वर्ष पहले एक मौका आया, जब एमजी अस्पताल की मोर्चरी में डीप फ्रीजर बंद पड़े थे। लावारिस शव खुले में पड़ा रहा। वैसे तीन दिन में पुलिस पोस्टमार्टम करवा नगर परिषद से ऐसे शवों की अंत्येष्टि करवाती है, लेकिन वारिस नहीं मिलने और अनदेखी से 12 दिन पड़े रहने से एक शव सड़ गया। तब शव की दुर्दशा देखा तो मन व्यथित हो गया, बस उस समय से यह काम करने के लिए टीम बनाकर खुद करने की ठानी।
अनुराग जैन बताते हैं कि अंतिम संस्कार के समय सनातन संस्कृति और परपंरागत कायदों का सभी युवा पालन करते हैं। अमूमन एक व्यक्ति की अंत्येष्टि में चार-पांच क्विंटल लकड़ी लगती है, लेकिन निरंतर चिताएं तैयार करते-करते टीम के युवा इतने सिद्धहस्त हो गए हैं कि वे मात्र सवा क्विंटल लकड़ी और सौ-सवा सौ कंडों से चिता सजाकर अंत्येष्टि कर देते हैं।
लावारिसों की अंत्येष्टि के लिए सक्रिय युवाओं की टोली का सेवा-समर्पण वाकई अनुकरणीय है। जब-तब ये युवा बिना स्वार्थ के इस सेवा में जुटते दिखलाई देते हैं। लोगों को ऐसे कार्यों में सहयोग के लिए आगे आना चाहिए।
सुनील दोसी, अध्यक्ष, मोक्षधाम विकास समिति, कागदी बांसवाड़ा
हर महीने दो-तीन ऐसे लावारिस शव पड़े होने की सूचना पर टीम पहुंचकर सेवाएं देने लगी। यह सिलसिला चलता रहा। कोविड काल में अस्पताल में मृतकों का आंकड़ा किसी दिन पांच तो किसी दिन 17 तक भी पहुंचा। उन 28-29 दिनों में जिनके बेटे और रिश्तेदार मौजूद होते हुए भी अंत्येष्टि के लिए आगे नहीं आए तो नगर परिषद के कार्मिकों के साथ संस्कार प्रकल्प की टीम ने बड़ी संख्या में मृतकों की अंत्येष्टि की।
मानव सेवा-माधव सेवा प्रकल्प में भूले-भटके मनोरोगियों का पुनर्वास होता है। मनोरोगियों को प्रभुजी संबोधन के साथ नहला धुलाकर, कपड़े-रहने के इंतजाम कर टीम उपचार में मदद करती है। स्मृति वापस आने पर नाम-पता जानकर टीम उनके परिजनों का पता लगवाती है और उन्हें घर पहुंचाया जाता है। अ
स्पताल में लावारिस हाल में लाए गए घायलों-बीमारों या देहात के अनभिज्ञ लोगों की मदद के लिए सेवा सारथी प्रकल्प में एक कार्यकर्ता को हेल्प डेस्क पर लगाया हुआ है। सेवा सारथी उनकी मदद के साथ दिव्यांग जरूरतमंदों की जानकारी भी जुटाकर देता है, जिससे उसे कैलिपर और अन्य उपकरण उपलध कराए जाते हैं।