बरेली

आला हजरत की हवेली पर पनाह लेते थे क्रांतिकारी, विक्टोरिया का टिकट उल्टा चिपकाकर जताई थी नफ़रत, तब हुआ कुछ ऐसा…

आलमी शान के मज़हबी रहनुमा इमाम अहमद रज़ा ख़ां बरेलवी (आला हजरत) को दुनिया इस्लामी तालीम और इल्म की रोशनी फैलाने के लिए याद करती है, लेकिन उनकी पहचान सिर्फ़ एक मज़हबी पेशवा की ही नहीं बल्कि एक सच्चे देशभक्त की भी रही है। उन्होंने अंग्रेज़ी हुकूमत का डटकर विरोध किया और हमेशा हिंदुस्तान की आज़ादी के हक़ में खड़े रहे।

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Aug 19, 2025
दरगाह आला हजरत (फोटो सोर्स: पत्रिका)

बरेली। आलमी शान के मज़हबी रहनुमा इमाम अहमद रज़ा ख़ां बरेलवी (आला हजरत) को दुनिया इस्लामी तालीम और इल्म की रोशनी फैलाने के लिए याद करती है, लेकिन उनकी पहचान सिर्फ़ एक मज़हबी पेशवा की ही नहीं बल्कि एक सच्चे देशभक्त की भी रही है। उन्होंने अंग्रेज़ी हुकूमत का डटकर विरोध किया और हमेशा हिंदुस्तान की आज़ादी के हक़ में खड़े रहे।

आला हजरत को अंग्रेज़ों से बेहद नफरत थी, वह अपने घोड़े आज़ादी के सिपाहियों को दे देते थे ताकि वे जंग-ए-आज़ादी में शामिल हो सकें। कई क्रांतिकारी उनकी हवेली में पनाह लेते थे। कहा जाता है कि अंग्रेज़ों की मलिका विक्टोरिया की तस्वीर वाले टिकट को आला हजरत कभी सीधा नहीं लगाते थे, बल्कि हमेशा उल्टा चिपकाते थे ताकि उसका अपमान हो। इसी बगावत से खफा होकर अंग्रेज अफसरों ने उनका सिर कलम करने पर पांच सौ रुपये का इनाम तक घोषित कर दिया था।

आला हजरत का जन्म 14 जून 1856 को बरेली के मोहल्ला जसौली में हुआ था। उनके पूर्वज कंधार (अफगानिस्तान) से हिंदुस्तान आए और रूहेलखंड में बस गए। उनके वालिद मुफ्ती नकी अली खां भी अंग्रेजों के कट्टर विरोधी थे। कई बार अंग्रेज फौज ने उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की लेकिन असफल रहे।

आला हजरत ने अंग्रेज़ों के खिलाफ फतवे जारी किए और लोगों को उनके कार्यक्रमों में शामिल न होने की ताकीद की। उनका कहना था कि फिरंगी व्यापार के बहाने आए और हमारे मुल्क पर हुकूमत करने लगे। यह हमारे साथ गद्दारी है। उनकी तकरीरों का असर इतना था कि बड़ी तादाद में लोग अंग्रेजों से दूरी बनाने लगे।

वह अंग्रेजी अदालतों में मुकदमेबाजी के खिलाफ थे। उनका मानना था कि मुकदमों में करोड़ों रुपये स्टांप और फीस पर खर्च होते हैं। उन्होंने मुसलमानों के बीच के झगड़ों को अपनी समझदारी से हल किया और अदालतों का रुख करने से बचाया। उनकी लिखी गई सैकड़ों किताबें आज भी इस्लामी मसलों का हल पेश करती हैं।

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