पश्चिमी राजस्थान के दिग्गज जाट नेता पूर्व सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी का निधन हो गया। सोनाराम 4 बार बाड़मेर-जैसलमेर से सांसद और एक बार बायतु से विधायक रहे थे। वे किसानों की मजबूत आवाज के तौर पर जाने जाते थे, जानिए उनसे जुड़ी 10 बड़ी बातें...
Colonel Sonaram Choudhary: बाड़मेर-जैसलमेर क्षेत्र के कद्दावर जाट नेता और पूर्व सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी का बुधवार देर रात दिल्ली के अपोलो अस्पताल में निधन हो गया। 85 वर्षीय कर्नल को शाम को सीने में दर्द के बाद भर्ती करवाया गया था, जहां रात 11 बजे के बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ में जन्मे कर्नल सोनाराम ने भारतीय सेना में 25 वर्ष तक सेवा की और 1971 के युद्ध में पूर्वी मोर्चे पर योगदान दिया। साल 1994 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आए। साल 1996 से 2004 तक वे लगातार तीन बार कांग्रेस से बाड़मेर-जैसलमेर के सांसद रहे।
बता दें कि साल 2008 में बायतु से विधायक बने। 2014 में भाजपा में शामिल होकर चौथी बार सांसद बने और चर्चा में आए। हालांकि, 2019 में टिकट कटने के बाद वे नाराज हो गए और 2023 में फिर कांग्रेस में लौट आए।
सैन्य सेवा और शुरुआत : कर्नल सोनाराम चौधरी ने एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज जोधपुर से बीई की डिग्री हासिल की और फेलो (एफआईई) की उपाधि प्राप्त की। साल 1966 में उन्होंने भारतीय सेना जॉइन की और पूर्वी मोर्चे पर 1971 के भारत-पाक युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। करीब 25 साल सेना में सेवाएं देने के बाद वे कर्नल के पद से 1994 में सेवानिवृत्त हुए और राजनीति की ओर कदम बढ़ाया।
पहला चुनाव और कांग्रेस से जुड़ाव : सेवानिवृत्ति के बाद वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए। साल 1996 में उन्होंने पहली बार बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और शानदार जीत हासिल की। यहीं से किसानों की आवाज और एक सशक्त जननेता के रूप में उनकी राजनीतिक यात्रा शुरू हुई।
लगातार जीत का सिलसिला : 1996 के बाद उन्होंने लगातार 1998 और 1999 में भी बाड़मेर-जैसलमेर से कांग्रेस टिकट पर जीत दर्ज की। हालांकि, साल 2004 के लोकसभा चुनाव में वे जसवंत सिंह जसोल के पुत्र मानवेंद्र सिंह से हार गए, लेकिन कांग्रेस में उनकी पकड़ और किसानों के बीच प्रभाव कायम रहा।
विधानसभा की ओर रुख : कांग्रेस ने 2008 के चुनाव में उन्हें बाड़मेर जिले की बायतु विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया, जहां उन्होंने जीत हासिल कर विधायक बने। किंतु 2013 में इसी सीट से दोबारा मैदान में उतरने पर उन्हें बीजेपी प्रत्याशी कैलाश चौधरी ने हरा दिया।
बीजेपी में शामिल होना और टिकट विवाद : विधानसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए। वसुंधरा राजे गुट में उनकी एंट्री के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें बाड़मेर-जैसलमेर से टिकट मिला, जबकि दिग्गज नेता जसवंत सिंह जसोल भी दावेदारी कर रहे थे। पार्टी द्वारा जसवंत सिंह को टिकट न देकर सोनाराम को टिकट देने से बड़ा विवाद खड़ा हो गया।
जसवंत सिंह के खिलाफ ऐतिहासिक चुनाव : 2014 का चुनाव पश्चिमी राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बना। जसवंत सिंह ने बगावत करते हुए निर्दलीय मैदान संभाला। यह चुनाव पार्टी राजनीति से हटकर जातीय समीकरणों पर आधारित हो गया। अंततः कर्नल सोनाराम ने जीत हासिल की और चौथी बार सांसद बने, जबकि जसवंत सिंह हार गए।
पार्टी बदलने का सिलसिला : 2014 में बीजेपी से जीतने के बाद समय के साथ पार्टी में उनकी स्थिति कमजोर हो गई और उन्हें आगे किसी भी चुनाव में टिकट नहीं मिला। इससे नाराज होकर वे फिर से कांग्रेस में लौट आए। कांग्रेस ने उन्हें 2023 में गुढ़ामालानी विधानसभा सीट से टिकट दिया, लेकिन यहां उन्हें बीजेपी उम्मीदवार केके बिश्नोई ने पराजित कर दिया।
संसदीय समितियों में योगदान : संसद सदस्य रहते हुए वे कई प्रमुख समितियों से जुड़े रहे। 14 अगस्त 2014 से प्राक्कलन समिति, 1 सितंबर 2014 से रक्षा संबंधी स्थायी समिति, 3 सितंबर 2014 से पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति, 3 दिसंबर 2014 से लोकसभा सदस्यों के साथ अधिकारियों के व्यवहार संबंधी समिति और 2 जून 2016 से रक्षा पर संसद की स्थायी समिति की उप-समिति में शामिल रहे।
सम्मान और उपलब्धियां : सेना में रहते हुए उन्हें राष्ट्रपति द्वारा विश्व सेवा पदक (VSM) मिला। इसके अलावा सेनाध्यक्ष चीफ और चीफ ऑफ एयर स्टाफ से प्रशस्ति पत्र भी प्राप्त हुए। स्कूली शिक्षा और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान वे शिक्षा और खेल दोनों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले छात्रों में गिने जाते थे।
निजी जीवन और निधन : कर्नल सोनाराम का परिवार जोधपुर में बसता है। उनकी बेटी रूपल का पहले ही निधन हो चुका था, जबकि बेटा डॉ. रमन चौधरी व्यवसाय और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े हैं। सोनाराम की खुद की कंस्ट्रक्शन कंपनी भी थी। करीब दस साल पहले उनका आंत का ऑपरेशन हुआ था, वही समस्या दोबारा बढ़ने पर दिल्ली के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां ऑपरेशन के बावजूद उनकी हालत बिगड़ी और 85 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।